अनुकूल जलवायु होने पर भी मोरी क्षेत्र के कई गांवों में लगे सेब के बागीचों में तो बीस साल इंतजार के बाद भी फल नहीं आ रहे हैं, जबकि इसी प्रखंड के आराकोट क्षेत्र में कई किसानों ने रूटस्टॉक से तैयार सेब की हाईब्रिड प्रजाति किंग रॉट, गालाशिनीगो, आईडी-1, आईडी-2, आईडी-3, रूटस्टॉक एम-9, एम-111 व जनेवा आदि प्रजाति के सेब के पेड़ लगाकर महज एक साल के भी फसल लेनी शुरू कर दी है। खन्यासणी गांव में सूरत चौहान ने उद्यान विभाग से पौध लेकर 50 पेड़ लगाए, लेकिन बीस साल बाद भी बागीचे में सेब के पेड़ों पर कभी फल नहीं लगे। कमोबेश यही स्थिति गांव के मोहन सिंह व राजमोहन के 500 सेब के पेड़ों वाले बागीचों की भी है। इनके बागीचों से इस बार महज 40 पेटी सेब उत्पादन का अनुमान है। इसके उलट मोरी प्रखंड के आराकोट में महेंद्र राणा एवं आदित्य राणा ने कोका कोला कंपनी के सीएसआर मद से चल रही योजना के तहत इंडो डच हॉर्टिकल्चर कंपनी के सहयोग से अपने बागीचे में सेब की ऐसी प्रजाति लगाई कि वह एक साल में ही फल देने लगी है। महेंद्र राणा ने बताया कि उन्होंने सोलन हिमाचल के वाईएस परमार विवि व कुछ प्राइवेट नर्सरियों से तीन साल पुरानी पौध लेकर अपना 200 पेड़ का सेब का बागीचा तैयार किया। सहायक उद्यान अधिकारी एनके सिंह का कहना है कि बीते साल जिले में राष्ट्रीय बागवानी मिशन की 3.7 करोड़ और इस वर्ष 2.61 करोड़ की योजना है। किसान यदि मांग करें तो उन्हें केंद्रीय बागवानी बोर्ड में पंजीकृत नर्सरियों से उन्नत किस्म की सेब की पौध मुहैया कराई जाएगी। कोका कोला कंपनी के 65 करोड़ के सीएसआर मद से जिलों में किसानों को कौन सी प्रजाति एवं कहां से मंगा कर दी जा रही है, इसकी जानकारी नहीं है।