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‘मिलारेपा’ कैसे बना 80 लोगों को मौत के घाट उतारने वाला ‘तिब्बत का बुद्ध’




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कई बौद्ध संन्यासियों या साधुओं के जीवन के बारे में आपने सुना होगा लेकिन क्या आप तिब्बत में बुद्ध के अवतार माने गए उस साधु की कहानी जानते हैं, जिसने एक, दो नहीं बल्कि करीब 80 लोगों को मौत के घाट उतार दिया था? हत्याओं के बाद कैसे वो अध्यात्म की इस चरम अवस्था तक पहुंचा कि न केवल साधु बल्कि उसे तिब्बत में बुद्ध का अवतार तक कहा गया? यही नहीं, बल्कि जिस गुरु से ज्ञान पाने के लिए उसने पूरा जीवन लगा दिया, कैसे वही गुरु उसका शिष्य बन गया? ये अछूती कहानी आपको जानना चाहिए.

इस साधु को मिलारेपा नाम से जाना जाता है और बौद्ध धर्म से जुड़ी कुछ किताबों में मिलारेपा को तिब्बत का बुद्ध तक कहा गया है. मिलारेपा के जन्म के साल के बारे में एकराय नहीं है, लेकिन 11वीं सदी में मिलारेपा का जन्म एक संपन्न परिवार में हुआ था, इस पर एकराय है. कम उम्र में ही मिलारेपा के सिर से पिता का साया उठ गया था. पिता की मुत्यु के बाद मिलारेपा के चाचा ने उसका सब कुछ हड़प लिया और फिर उसके, उसकी मां और छोटी बहन के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करने लगा.

बदला लेने के लिए सीखी तंत्र विद्या मिलारेपा अपने चाचा के दुर्व्यवहार के चलते बदले और गुस्से की भावनाओं के साथ बड़ा हुआ और वयस्क होते ही अपना घर छोड़ कर चला गया. उसने तंत्र विद्या सीखी और कुछ तांत्रिक क्रियाओं में महारत हासिल की. सालों बाद जब वह तंत्र विद्या में महारत हासिल कर वापस लौटा तो उसे चता चला कि उसकी मां और छोटी बहन चल बसे थे. ये जानकर वह आगबबूला था और उसने बदला लेने का मन बना लिया था.

कुछ ही समय में उसे पता चला कि उसके चाचा के बेटे की शादी का आयोजन होने वाला था. इसी मौके पर उसने बदले के इरादे से तंत्र शक्तियों का प्रयोग किया और पूरे आयोजन पर ओले बरसा दिए. इन ओलों में दबकर 80 से 85 लोग मारे गए और मिलारेपा का बदला पूरा हुआ. वह खुश तो हुआ लेकिन ज़्यादा समय तक खुश रह नहीं पाया. उसे अपने किए पर पछतावा होने लगा और वह अपराध बोध से ग्रस्त हो गया.

मिलारेपा अपने अपराध बोध से मुक्त होना चाहता था और अपने किए गुनाह के लिए प्रायश्चित कर और ज्ञान हासिल कर उसी जन्म में दोषमुक्त होना चाहता था. इसके लिए उसने कई गुरुओं के पास जाकर विनती की लेकिन उसे कहीं रास्ता नहीं मिला. फिर उसे गुरु मार्पा का पता मिला और वह उस शहर में पहुंचा और मार्पा से ज्ञान के लिए विनती की, लेकिन मार्पा उसकी कड़ी परीक्षा और मन की शुद्धि के लिए उसे सालों तक इंतज़ार कराना चाहता था. इस कहानी पर सद्गुरु की व्याख्या कहती है कि मार्पा अहंकार से भी ग्रस्त था.

सालों के बाद मिली दीक्षा
मार्पा ने खेत, मकान और आश्रम में कई तरह के मज़दूरी और चाकरी वाले काम मिलारेपा से सालों तक करवाए. इन सालों में मिलारेपा ने छुपकर मार्पा से ज्ञान पाने की कोशिश की लेकिन कई बार मार्पा ने अपने शिष्यों और शक्तियों से मिलारेपा को पिटवाया भी. कई सालों तक मार्पा का हर आदेश मानते रहे मिलारेपा को मार्पा की पत्नी की मदद मिली और उसके बाद मार्पा ने उसे दीक्षा देने का निश्चय किया. दीक्षा के बाद मार्पा ने मिलारेपा को एक अंधेरी कोठरी में साधना करने को कहा.

फिर मिलारेपा का गुरु बन गया शिष्य
अंधेरी कोठरी में साधना करते हुए मिलारेपा को सपने में देवी डाकिनी ने दर्शन दिए और कहा कि वह अपने गुरु मार्पा से उस ज्ञान के बारे में पूछे, जिसके बारे में उसने नहीं बताया. कठोर साधना के तीसरे ही दिन मिलारेपा जब यह प्रसंग सुनाने के लिए मार्पा के पास पहुंचा तो मार्पा हैरान था और उसने माना कि उस ज्ञान के बारे में उसे भी नहीं पता था. इस ज्ञान की गुत्थी को सुलझाने के लिए मिलारेपा को लेकर मार्पा अपने गुरु नारोपा के पास भारत पहुंचा.

मार्पा की बातें सुनने के बाद नारोपा ने तिब्बत की दिशा में सिर झुकाकर कहा ‘अंधकार में डूबे उत्तर में आखिर एक प्रकाश दिखा’. इसके बाद नारोपा ने मार्पा और मिलारेपा को जीवन के संपूर्ण ज्ञान के बारे में सब कुछ विस्तार से बताया. इसके बाद मार्पा और मिलारेपा तिब्बत लौटे तो मार्पा गुरु के बजाय मिलारेपा के शिष्य की तरह हो गया था. मिलारेपा ने लंबा जीवन जिया और अपने ज्ञान को लोगों तक पहुंचाया. सद्गुरु की व्याख्या के मुताबिक तिब्बती संस्कृति में पिछले कई सौ सालों के दौरान जो बड़ी चीजें हुई हैं, उनका आधार मिलारेपा ने ही तैयार किया.

त्सांगन्योन हेरुका की किताब ‘हंड्रेड थाउज़ेंड सॉंग्स ऑफ मिलारेपा’ इस बात की तस्दीक़ करती है कि मिलारेपा ने अपने जीवन में एक लाख गीतों की रचना की. इसी कारण उसे संत कवि भी कहा जाता है. ‘लाइफ ऑफ मिलारेपा’ किताब में भी मिलारेपा के गीतों के इस चक्र का ब्योरा है. मिलारेपा की कहानी इस आदर्श का बखान करती है कि एक हत्यारा भी सही मायनों में प्रायश्चित और कठोर साधना से अवतार या सिद्ध साधु बन सकता है.