छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बिलासपुर हाई कोर्ट (High Court) ने कहा है कि किसी भी सरकारी दफ्तर में चयन या भर्ती के लिए उचित तरीके से विज्ञापन जारी कर प्रक्रिया का पालन करना जरूरी है. ऐसा नहीं करने पर भ्रष्टाचार के साथ ही भाई-भतीजावाद को बढ़ावा मिलेगा. नियुक्ति और ज्वॉइनिंग के 25 दिनों बाद इसे निरस्त करने के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी. प्रक्रिया का पालन नहीं होने के आधार पर हाई कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया है. दरअसल बिलासपुर (Bilaspur) में रहने वाले चोवराम सिरमौर की नियुक्ति 11 मई को कोरबा (Korba) के शासकीय पॉलीटेक्निक कॉलेज में इलेक्ट्रिशयन के पद पर एडहॉक में हुई थी. वर्कशाॅप इंस्ट्रक्टर के पद पर नियुक्ति के लिए उसे कॉल लेटर जारी किया गया. नियुक्ति की जानकारी देते हुए पुलिस वेरीफिकेशन के लिए कहा गया और 4 मार्च 1995 को उसे इस पद पर नियुक्त कर दिया गया. अविभाजित मध्यप्रदेश के संचालक तकनीकी शिक्षा के आदेश से नियुक्ति के 25 दिन बाद 27 मार्च 1995 को प्रक्रिया का पालन नहीं होने के आधार पर उसकी नियुक्ति निरस्त कर दी गई.
नहीं किया नियमों का पालन
इस आदेश के खिलाफ चोवराम ने हाई कोर्ट में याचिका प्रस्तुत कर कहा था कि नियुक्ति निरस्त करने से पहले उसे सुनवाई का अवसर नहीं दिया गया. यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के खिलाफ है. वहीं राज्य सरकार की तरफ से बताया गया कि उस समय भर्ती के लिए निर्धारित प्रावधानों के मुताबिक रोजगार कार्यालय से योग्य अभ्यर्थियों की सूची मंगाई जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया. गंभीर अनियमितता के आधार पर संचालक तकनीकी शिक्षा ने नियुक्ति निरस्त कर दी थी. मामले पर जस्टिस प्रशांत मिश्रा की बेंच में सुनवाई हुई. हाई कोर्ट ने प्रक्रिया का पालन नहीं होने की शिकायत पर संचालक तकनीकी शिक्षा से शासकीय पॉलीटेक्निक कॉलेज बिलासपुर के प्रिंसिपल को मामले की जांच के लिए कहा था.
जांच में सामने आया था कि नियुक्ति से पहले विज्ञापन जारी नहीं किया गया था. न ही रोजगार कार्यालय से नाम मंगवाए गए थे. इस आधार पर नियुक्ति निरस्त कर दी गई थी. हाई कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी है कि सरकारी कार्यालयों में नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी कर सभी प्रक्रिया का पालन अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए. ऐसा न कर ओपन मार्केट से अभ्यर्थियों का चयन करने से भ्रष्टाचार के साथ ही भाई-भतीजावाद की प्रवृति को बढ़ावा मिलता है.