गाड़ी चलानी नहीं आती तो फिलहाल ड्राइविंग लाइसेंस भूल जाइए। क्योंकि, परिवहन विभाग अब अत्याधुनिक सेंसर युक्त मशीनों से ड्राइविंग टेस्ट ले रहा है। आवेदकों को परखने में मोबाइल एप ‘हैम्स’ भी कारगर साबित हो रहा है। इस एप के जरिये आवेदकों के ड्राइविंग टेस्ट की रिकॉर्डिंग भी हो रही है, जो तय फीस जमा करने पर आवेदकों को मुहैया करा दी जाती है। इन्हीं नियमों का असर है कि ड्राइविंग टेस्ट में 40 फीसदी आवेदक फेल हो रहे हैं।
हार्नेशिंग ऑटो मोबाइल सेफ्टी (हैम्स) की जा रही जांच अपर परिवहन आयुक्त सुनीता सिंह ने बताया कि अब उन्हीं लोगों का ड्राइविंग लाइसेंस बनाया जाएगा जिन्हें वाकई में गाड़ियां चलानी आती हैं। अपर आयुक्त के मुताबिक ड्राइविंग लाइसेंस बनाते समय जांच में किसी भी प्रकार की कमी ना रह जाए, इसके लिए मोबाइल एप हार्नेशिंग ऑटो मोबाइल सेफ्टी (हैम्स) के जरिये भी जांच की जा रही है।
हैम्स की मदद से अधिकारी टेस्ट के समय चालक की बारीकी से जांच करते हैं। हैम्स यह पता लगाने में मदद करता है कि चालक ने गाड़ी नियमों के तहत चलाई या नहीं? गाड़ी चलाते समय कोई दुर्घटना तो नहीं की? सीट बेल्ट लगाया या नहीं? टेस्ट के समय चालक की आंखों पर भी नजर रखी जाती है।
आखिर क्या है हैम्स ? हैम्स एक मोबाइल एप है जो ड्राइविंग टेस्ट के दौरान सीट पर आगे लगा दिया जाता है। मोबाइल कैमरे के जरिये इस बात की जांच की जाती है कि चालक ने सही तरीके से गाड़ी चलायी या नहीं? हैम्स के जरिए टेस्ट की विधिवत रिकॉर्डिंग की जा रही है।
यदि किसी वाहन चालक को इस बात की आपत्ति होती है कि उसने गाड़ी ठीक से चलाई और उसे लाइसेंस जारी किया जाना चाहिए तो उसे रिकॉर्डिंग भी उपलब्ध कराई जाती है।
आईटीडीआर में अत्याधुनिक मशीनों व हैम्स के जरिये लाइसेंस बनाने की प्रक्रिया शुरू किए जाने के बाद प्रतिदिन औसतन 40 फीसदी चालक टेस्ट में फेल रहे हैं। इन लोगों को ड्राइविंग सीखने के बाद दोबारा आवेदन करने के लिए कहा जाता है।
-सुनीता सिंह, अपर परिवहन आयुक्त