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पहाड़ों पर बादल फटने से होती है बड़ी तबाही, जानें क्यों होता है ये




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उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में कई जगहों पर बादल फटने और भारी बारिश से कोहराम मचा हुआ है. कई जगहों पर भूस्खलन से पहाड़ टूट कर सड़कों पर आ गिरे हैं. उत्तरकाशी, लामबगड़, बागेश्वर, चमोली और टिहरी में तो हालात बहुत बुरे हैं. स्कूल-कॉलेज बंद हैं. मौसम विभाग ने आज यानी सोमवार को भी बारिश का अलर्ट जारी किया है. कई स्थानों पर बादल फटने से लोगों के मलबे में दबे होने की खबर है. एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीम को मौके पर रवाना कर दिया गया है. क्या आप जानते हैं कि बादल फटना किसे कहते हैं? बादल क्यों फटता है? इससे क्या होता है?

बादल फटने का मतलब ये नहीं होता कि बादल के टुकड़े हो गए हों. मौसम वैज्ञानिकों के अनुसार जब एक जगह पर अचानक एकसाथ भारी बारिश हो जाए तो उसे बादल फटना कहते हैं. आप इसे ऐसे समझ सकते हैं कि अगर पानी से भरे किसी गुब्बारे को फोड़ दिया जाए तो सारा पानी एक ही जगह तेज़ी से नीचे गिरने लगता है. ठीक वैसे ही बादल फटने से पानी से भरे बादल की बूंदें तेजी से अचानक जमीन पर गिरती है. इसे फ्लैश फ्लड या क्लाउड बर्स्ट भी कहते हैं. अचानक तेजी से फटकर बारिश करने वाले बादलों को प्रेगनेंट क्लाउड भी कहते हैं.

क्यों अचानक से फट जाता है बादल?

कहीं भी बादल फटने की घटना तब होती है जब काफी ज्यादा नमी वाले बादल एक जगह पर रुक जाते हैं. वहां मौजूद पानी की बूंदें आपस में मिल जाती हैं. बूंदों के भार से बादल का घनत्व बढ़ जाता है. फिर अचानक भारी बारिश शुरू हो जाती है. बादल फटने पर 100 मिमी प्रति घंटे की रफ्तार से बारिश हो सकती है.

क्यों ज्यादातर बादल पहाड़ों पर ही फटते हैं?

पानी से भरे बादल पहाड़ी इलाकों फंस जाते हैं. पहाड़ों की ऊंचाई की वजह से बादल आगे नहीं बढ़ पाते. फिर अचानक एक ही स्थान पर तेज़ बारिश होने लगती है. चंद सेकेंड में 2 सेंटीमीटर से ज्यादा बारिश हो जाती है. पहाड़ों पर अमूमन 15 किमी की ऊंचाई पर बादल फटते हैं. हालांकि, बादल फटने का दायरा ज्यादातर एक वर्ग किमी से ज्यादा कभी भी रिकॉर्ड नहीं किया गया है. पहाड़ों पर बादल फटने से इतनी तेज बारिश होती है जो सैलाब बन जाती है. पहाड़ों पर पानी रूकता नहीं इसलिए तेजी से पानी नीचे आता है. नीचे आने वाला पानी अपने साथ मिट्टी, कीचड़ और पत्थरों के टुकड़े ले आता है. इसकी गति इतनी तेज होती है कि इसके सामने पड़ने वाली हर चीज बर्बाद हो जाती है.

सिर्फ पहाड़ों पर ही नहीं फटते बादल, मैदानी इलाकों में भी फटते हैं

पहले धारणा थी कि बादल फटने की घटना सिर्फ पहाड़ों पर ही होती है. लेकिन मुंबई में 26 जुलाई 2005 को बादल फटने की एक घटना के बाद यह धारणा बदल गई है. अब यह माना जाता है कि बादल कुछ खास स्थितियों में फटता है. वे स्थितियां जहां भी बन जाएं बादल फट सकता है. कई बार बादल के मार्ग में अचानक से गर्म हवा का झोंका आ जाए तो भी बादल फट जाते हैं. मुंबई की घटना इसी वजह से हुई थी.

बादल फटने की भयावह घटनाएं

  • 14 अगस्त 2017- पिथौरागढ़ जिले के मांगती नाला के पास बादल फटने से 4 की मौत. कई लापता.
  • 11 मई 2016 में शिमला के पास सुन्नी में बादल फटा, भारी तबाही.
  • 16-17 जून 2013 – केदारनाथ में बादल फटे. 10 से 15 मिनट तक तेज बारिश और भूस्खलन से करीब 5 हजार लोग मारे गए.
  • 6 अगस्त 2010 – लेह में बादल फटा. एक मिनट में 1.9 इंच बारिश. भारी तबाही.
  • 26 नवंबर 1970 – हिमाचल प्रदेश में बादल फटने से एक मिनट में 1.5 इंच बारिश हुई थी.
  • 7 जुलाई 1947 – रोमानिया के कर्टी-दे-आर्गस में बादल फटा. 20 मिनट में 8.1 इंच बारिश हुई थी.
  • 12 मई 1916 – जमैका के प्लम्ब प्वाइंट में बादल फटा. 15 मिनट में 7.8 इंच बारिश हुई थी.
  • 29 नवंबर 1911 – पनामा के पोर्ट वेल्स में बादल फटने से 5 मिनट में 2.43 इंच बारिश हुई थी.
  • 24 अगस्त 1906 – अमेरिका के वर्जीनिया स्टेट के गिनी में बादल फटने से सबसे अधिक 40 मिनट बारिश हुई. करीब 9.25 इंच बारिश हुई. इससे भारी तबाही हुई है.