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जाते-जाते सोनिया गांधी के लिए बहुत बड़ा गिफ्ट छोड़ गए अरुण जेटली




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पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी के दिग्गज चेहरा रहे अरुण जेटली के बारे एक बाद बेहद प्रचलित है कि राजनीतिक रिश्तों को अलग रख दें तो व्यक्ति संबंध उनके हर पार्टी के नेताओं से बने हुए थे। राजनीति ही नहीं समाज का ऐसा कोई वर्ग नहीं रहा, जिसमें जेटली ने अपनी छाप नहीं छोड़ी थी। लेकिन, वे जाते-जाते कांग्रेस की सबसे बड़ी नेता और पार्टी की मौजूदा अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक भविष्य के लिए भी अपनी तरफ से कोई बड़ा तोहफा छोड़कर जाएंगे, इसका अंदाजा तो शायद खुद सोनिया को भी नहीं रहा होगा। मगर यह बात पूरी तरह सच है। मौजूदा राजनीतिक विद्वेष के माहौल में भी वे अपने निधन से महज हफ्ते भर पहले ही सोनिया के गढ़ यानि रायबरेली संसदीय सीट के भविष्य को संवारने का काम कर गए हैं।

जेटली के सांसद फंड से होगा रायबरेली का विकास

अरुण जेटली राज्यसभा में उत्तर प्रदेश से बीजेपी का प्रतिनिधित्व करते थे। इस नाते बतौर सांसद पूरे उत्तर प्रदेश के विकास पर ध्यान देने की भी उनकी जिम्मेदारी थी। पिछले शनिवार को उनके निधन के बाद खुलासा हुआ है कि अपनी मौत से ठीक एक हफ्ते पहले ही उन्होंने सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र के विकास की अपनी ओर से पहल की थी। जब जेटली एम्स में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे थे, तब भी उनकी ओर से रायबरेली जिला प्रशासन को क्षेत्र के विकास के लिए एक चिट्ठी लिखी गई थी। इस चिट्ठी में जेटली की ओर से रायबरेली में सौर ऊर्जा से जलने और ऊंचे खंभे वाले 200 लाइट्स लगाने का प्रस्ताव भेजा था। इसके लिए उन्होंने जिला प्रशासन को खुद के सांसद स्थानीय विकास निधि (एमपीएलएडी फंड) से फंड मंजूर करने की बात लिखी थी। गौरतलब है कि एक सांसद को सांसद स्थानीय विकास निधि (एमपीएलएडी फंड) के तहत 5 करोड़ रुपये आवंटित किए जाते हैं।

रायबरेली को रोशन करना जेटली की थी अंतिम इच्छा

संभावना है कि जेटली ने जाते-जाते सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र के लिए जो सौगात छोड़ी है, उसके चलते रायबरेली के लोग इस साल की दिवाली ज्यादा उत्साह से मनाएंगे। रायबरेली के लोगों को तो लगता है कि रायबरेली का विकास उनकी अंतिम इच्छा थी, इसलिए वह अस्पताल के बेड से क्षेत्र के लिए इतना बड़ा योगदान करके गए हैं। टीओआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक रायबरेली के जिलाधिकारी नेहा शर्मा ने कहा है कि , ‘यह उनकी अंतिम इच्छा की तरह थी कि दिवाली से पहले रायबरेली रोशन हो जाए। इस प्रोजेक्ट को जिला ग्रामीण विकास एजेंसी के साथ तालमेल करके पूरा किया जाएगा। हम प्रोजेक्ट पर तेजी से काम करेंगे।’ जिलाधिकारी की बातों से लगता है कि अब रायबरेली का अंधियारा जरूर दूर हो सकता है।

रायबरेली को ही क्यों चुना?

बता दें कि जब पिछले साल अक्टूबर में अरुण जेटली ने रायबरेली में एमपीलैड फंड से विकास की इच्छा जाहिर की थी, तब उसे सियासी चश्मे से देखा जा रहा था। क्योंकि, रायबरेली कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का संसदीय क्षेत्र ही नहीं, नेहरु-गांधी परिवार का गढ़ भी माना जाता रहा है। तब यही कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी रायबरेली में भी विकास का नया नरेटिव सेट करने की कोशिश कर रही है। लेकिन, जब आज जेटली की असल मंशा सामने आई है, तब लग रहा है कि उन्होंने तो सिर्फ यूपी के सांसद होने के नाते अपनी जिम्मेदारी निभाने की सोची थी। जेटली के प्रतिनिधि हीरो बाजपेयी के अनुसार, ’17 अगस्त को रायबरेली प्रशासन को उनकी सिफारिश सौंपी गई है।’ उन्होंने ये भी कहा कि ‘जिले के पिछड़ेपन के कारण जेटली जी ने रायबरेली को चुना था।’