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सुप्रीम कोर्ट श्रीरामजन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील ने दी चौकाने वाली दलील !




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अयोध्या विवाद मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में आज भी जारी रही. सुनवाई के दौरान श्रीरामजन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील पीएन मिश्रा ने हदीस के हवाले से इस्लामी कानून के ज़रिए ज़मीन के खरीद और इस्तेमाल के नियमों का जिक्र किया. उन्होंने हज़रत मोहम्मद साहब, उनके अनुयायियों हजरत उमर, सईद बुखारी और यहूदियों के बीच हुए वाकयों का बयान किया. उन्होंने कहा कि मस्जिद के लिए कई कायदे नियम और बुनियादी चीज़े होती हैं. मस्जिद की जमीन और इमारत की शर्तें, वक्फ करने वाला ज़मीन का वाजिब मालिक होना चाहिए, अज़ान की जगह, वजूखाना ज़रूरी है. कम से कम रोजाना दो बार अज़ान और नमाज़ हो. वज़ू के लिए पानी का स्रोत हो. मस्जिद में घंटी, प्राणी, या मूर्तियों का चित्र ना हों. जिस भूखंड पर मस्जिद हो वहां किसी दूसरे धर्म का उपासना स्थल ना हो. मस्जिद में कोई रिहायश, खाना बनाने की जगह यानी चूल्हा वगैरह ना हो. पीएन मिश्रा ने कहा कि विवादित स्थल पर सीता रसोई का होने का भी प्रमाण है. कब्रें ना हों. जिसके पीछे नमाज़ अदा करनी पड़े. मस्जिद का रखरखाव का ज़िम्मा किसी और धर्म के लोग नहीं कर सकते. रामलला देवता हैं. भक्त आते रहे हैं. इस्लाम के मुताबिक ना तो वो मस्जिद है और वहां नमाज़ नहीं हो सकती.

पीएन मिश्रा ने कहा, ‘बाबर के वंशज किसी इमारत के मालिक हो सकते हैं लेकिन वह इमारत मस्जिद नहीं हो सकती. हिंदू सदियों से वहां पूजा करते रहे लेकिन मुसलमानों का अकेले कब्जा कभी नहीं रहा.वह इमारत हमारे कब्जे में थी. मुसलमान शासक होने की वजह से जबरन वहां नमाज़ अदा करते थे. 1856 से पहले वहां कोई नमाज नहीं होती थी. 1934 तक वहां सिर्फ जुमे की नमाज़ होती रही’. इस जस्टिस चन्द्रचूड़ ने पूछा- क्या कोई शासक सरकारी या अपनी निजी मिल्कियत वाली ज़मीन पर मस्जिद बना सकता है? इस पर पीएन मिश्रा ने जवाब दिया कि मुगल काल में भी ऐसे वाकयात हुए थे. लेकिन बादशाह को काज़ी ने जवाब दिया था कि अपनी कमाई से खरीदी ज़मीन पर मस्जिद बनाने के बाद उसके मेंटेनेंस का भी इंतज़ाम करना बनाने वाले की ज़िम्मेदारी है. मसजिद अल हरम, अल अक्सा और मस्जिद नबवी का रुख काबा की ओर नहीं है. इसके अलावा दुनिया भर की सभी मस्जिदों की दीवार काबा की ओर है यानी नमाज़ी का सजदा का रुख काबा की ओर रहता है.

पीएन मिश्रा ने कहा कि अंतिम बार 16 दिसंबर 1949 को वहां नमाज़ अदा की गई. इसके बाद ही दंगे हुए और प्रशासन ने नमाज़ बंद करा दी.1934 से 1949 के दौरान मस्जिद वाली इमारत की चाभी मुसलमानों के पास रहती थी लेकिन पुलिस अपने पहरे में जुमा की नमाज़ के लिए खुलवाती थी और सफाई होती इसके बाद नमाज़ लेकिन इस पर बैरागी और साधु शोर मचाते और नमाज़ में खलल पड़ता जिससे तनाव बढ़ता था. 22-23 दिसंबर की रात जुमा के लिए नमाज़ की तैयारी तो हुई लेकिन नमाज़ नहीं हो पाई.

श्री रामजन्मभूमि पुनरोद्धार समिति के वकील पीएम मिश्रा की दलीलें पूरी हो गईं तो हिन्दू महाभा की ओर से हरिशंकर जैन ने बहस शुरू की. उन्होंने कहा कि यह जगह शुरू से हिदुओं के अधिकार में रही. आज़ादी के बाद भी हमारे अधिकार सीमित क्यों रहें? क्योंकि यह तो 1528 से 1885 तक कहीं भी और कभी भी मुसलमानों का यहां कोई दावा नहीं था. मार्टिन ने बुकानन के रिसर्च को आगे बढ़ाते हुए उसी हवाले से 1838 में इस जगह का ज़िक्र किया है. उस किताब में भी हिन्दू पूजा परिक्रमा की जाती थी. तब किसी मस्जिद का ज़िक्र नहीं था. ट्रैफन थैलर ने भी किसी मस्जिद का ज़िक्र नहीं किया है. हैरत है कि तब के मुस्लिम इतिहासकारों ने भी मस्जिद का ज़िक्र नहीं किया.

हरिशंकर जैन ने दलील दी, ‘हिंदुओं का 1855 से 1950 तक पूजा पाठ होता रहा लेकिन अंग्रेजों ने पूजा के अधिकार को सीमित कर दिया था. आज़ादी मिलने और संविधान लागू होने के बाद भी जब अनुच्छेद 25 लागू हुआ फिर भी हमे पूजा उपासना का पूरा अधिकार नहीं मिला’. अनुच्छेद 13 का हवाला देते हुए जैन ने कहा कि आज़ादी से पहले चूंकि हमारा कब्ज़ा था तो वह बरकरार रहना चाहिए. आक्रांताओं ने हमारे धर्मस्थल नष्ट किए लूटपाट की. इस्लाम के मुताबिक ये लूट उनके लिए माल के गनीमत था. जैन ने कुरान के सूरा : 8 का हवाला देते हुए कहा कि धर्म की आड़ में युद्ध से मिला माल सेनापति को मिलता था और वो सबको बांटते थे.

जैन ने कहा कि मंदिर एक बार बन गया तो वो सर्वदा के लिए मन्दिर ही रहता है. राम और कृष्ण हमारे देश की सांस्कृतिक धरोहर हैं. ये स्थापित दलील है कि बाबर ने मन्दिर तोड़कर मस्जिद का रूप दिया. संविधान की मूल प्रति में तीसरे चैप्टर में भी राम की तस्वीर है. राम संवैधानिक पुरुष भी हैं. जैन ने कहा कि राम अयोध्या में महल में पैदा हुए थे. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि ये तो विश्वास की बात है. जैन ने कहा कि विश्वास नहीं यही सही है क्योंकि सभी ग्रंथ यही कहते हैं. हिन्दू महासभा के दूसरे वकील वरिंदर कुमार शर्मा ने कहा कि जो मांग याचिका में नहीं थी वो फैसला कैसे किया?

इसके बाद शिया बोर्ड की तरफ से दलील शुरू की गई. एमसी धींगरा ने कहा कि 1936 में शिया, सुन्नी वक्फ बोर्ड बनाने की बात तय हुई और दोनों की वक्फ सम्पत्तियों की सूची बनाई जाने लगी. 1944 में बोर्ड के लिए अधिसूचना जारी हुई. वो मस्जिद शिया वक्फ की संपत्ति थी. हमारा मुतवल्ली तो शिया था लेकिन गलती से इमाम सुन्नी रख दिया. हम इसी वजह से मुकदमा हारे. रिकॉर्ड में दर्ज है कि 1949 में मुतवल्ली जकी शिया था.

कोर्ट ने कहा कि आप हिन्दू पक्ष का विरोध नहीं कर रहे हैं ना, बस इतना ही काफी है. सीजेआई ने कहा कि हाईकोर्ट में आपकी अपील 1946 में खारिज हुई और आप 2017 में SLP लेकर सुप्रीम कोर्ट आए. इतनी देरी क्यों? इस पर शिया बोर्ड ने कहा कि मारकाट मची थी. हमारे दस्तावेज़ और रिकॉर्ड भी सुन्नियों के पास थे. धींगरा ने कहा कि हमारे दस्तावेज़ सुन्नी पक्षकारों ने जब्त किए हुए थे. सोमवार से सुन्नी वक्फ बोर्ड दलील शुरू करेगा.