Home समाचार बाजार ने समझी मोटे अनाज की कीमत तो उगाने लगा किसान…

बाजार ने समझी मोटे अनाज की कीमत तो उगाने लगा किसान…




IMG-20240704-WA0019
IMG-20220701-WA0004
WhatsApp-Image-2022-08-01-at-12.15.40-PM
1658178730682
WhatsApp-Image-2024-08-18-at-1.51.50-PM
WhatsApp-Image-2024-08-18-at-1.51.48-PM

खरीफ में धान रबी में गेहूं सरसों और जायद में खेतों को खाली वाले किसान मुरारी लाल शर्मा जब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली सरसों अनुसंधान केंद्र भरतपुर और कृषि विज्ञान केंद्र पर आयोजित होने वाली सेमिनारों मं शामिल हुए तो वह खाद्यान्न मार्केट की चाल भी समझ गए। धान की खेती को नमस्ते कर ज्वार बाजरा उड़द मूंग अरहर और तिल का उत्पादन करने लगे। अधिकांश किसान ज्वार का उत्पादन पशुओं के चारे के लिए करते हैं लेकिन मुरारी लाल बाजरा तिल उड़द और ज्वार बाजार में बेचने के लिए करते हैं। मोटे अनाज की फसलों से उनके खेत आज भी लहलहा रहे हैं।

किसान मुरारी लाल शर्मा जब भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली, सरसों अनुसंधान केंद्र भरतपुर और कृषि विज्ञान केंद्र पर आयोजित होने वाली सेमिनारों मं शामिल हुए तो वह खाद्यान्न मार्केट की चाल भी समझ गए। धान की खेती को नमस्ते कर ज्वार, बाजरा, उड़द, मूंग, अरहर और तिल का उत्पादन करने लगे। अधिकांश किसान ज्वार का उत्पादन पशुओं के चारे के लिए करते हैं, लेकिन वाटी गांव के मुरारी लाल बाजरा, तिल, उड़द और ज्वार बाजार में बेचने के लिए करते हैं। मोटे अनाज की फसलों से उनके खेत आज भी लहलहा रहे हैं।

सदर तहसील के गांव वाटी के किसान मुरारी लाल कहते हैं कि करीब बीस साल पहले उनके खेत में चना, जौ और गेहूं की फसलें रबी में होती थीं, जबकि खरीफ में ज्वार, तिल, अरहर, बाजरा, उड़द और जायद में मूंग की खेती होती थी। सर्द मौसम में बाजरा की रोटियां बनती और बाकी दिनों में गेहूं, चना और जौ के आटे की रोटियां बनाई जाती थीं। उस समय गेहूं और चावल का उत्पादन बहुत कम होता था। कृषि क्षेत्र में तेजी से परिवर्तन आया और गेहूं, चावल का उत्पादन बढ़ गया। मोटे अनाजों के उत्पादन में कमी आ गई। मगर, सेमिनारों से उनको जानकारी हुई बाजार में एक बार फिर से मोटे अनाज की मांग में बढ़ोतरी हो रही है तो उन्होंने खरीफ में बाजरा, ज्वार, उड़द और तिल की खेती करना शुरू कर दिया। उनके पास 11 बीघा जमीन खुद की है और इतनी ही जमीन अपने भाई की भाड़े पर लेकर कर रहे हैं। आज करीब पंद्रह बीघा में मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं। ग्रामीण लहजे में वह कहते हैं कि हम तो किसान है, मोटा अनाज उगाते हैं, मोटा खाते हैं और दूर की सोचते हैं। उनका मतलब था कि गेहूं-चावल खाने से शरीर को वो ताकत नहीं मिल पाती है, जो पहल गुरचनी (गेहूं, चना, जौ और मक्का, ज्वार और बाजरा) की रोटी से मिलती थी। दूध को सफेद पानी कहने वाले मुरारी कहते हैं कि गुरचनी रोटी हो और गरमा दूध, उससे बढि़या कोई भोजन नहीं है। वह दूसरे भी कहते हैं कि मोटा अनाज उगाओ, आने वाला समय उसी का है। –मोटे अनाज के सेवन करने से पेट से संबंधित रोगों नहीं होते हैं। ब्लड प्रेशर और मधुमेह जैसी बीमारियों से बचा जा सकता है। मोटे अनाज के सेवन करना सेहत के लिए अच्छा रहता है।

– फिजिशियन डॉ. अशीष गोपाल, सरल हेल्थ केयर — एक जमना था, जब मोटे अनाज की रोटिया खाते थे और मीलों पैदल चले जाते थे। दिन भर काम करते थे। शरीर में रोग भी नहीं लगते थे। थकान भी कम महसूस होती थी। आजकल के युवाओं को बाजरा, चना, ज्वार और मक्का की रोटी अच्छी नहीं लगती है। हम तो सवां कोदो भी खाया करते थे, इनका तो आजकल की पीढ़ी नाम तक नहीं जानती है।