सरकारी नौकरियों में जातिगत आरक्षण में बदलाव का असर नगरीय निकाय चुनाव पर देखने को मिल सकता है। नगरीय निकायों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए सीटें बढ़ सकती हैं। अगर, ऐसा हुआ तो जातिगत आरक्षण का असर मैदानी क्षेत्र के नगरीय निकायों पर ही पड़ेगा।
राज्य सरकार ने आबादी के आधार पर जातिगत आरक्षण के नियम में संशोधन किया है। मंत्रिमंडल ने सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग का आरक्षण 14 फीसद से बढ़ाकर 27 फीसद और अनुसूचित जाति वर्ग का आरक्षण 12 से बढ़ाकर 13 फीसद कर दिया है।
ओबीसी और एससी वर्ग के आरक्षण में जो इजाफा हुआ है, वह नगरीय निकाय चुनाव में ओबीसी और एससी वर्ग के लिए फायदेमंद होगा। इसका कारण यह है कि चुनाव में जातिगत आबादी के आधार पर ही सीटों का आरक्षण किया जाता है। वर्ष के अंत में 153 नगरीय निकायों में चुनाव होना है। इसमें 10 नगर निगम, 30 नगर पालिका और 105 नगर पंचायत शामिल हैं। अगर, नगर निगम की बात की जाए, तो अभी तक 10 नगर निगमों में महापौर की तीन सीट ओबीसी, पांच सीट अनारक्षित होती रही है।
रायगढ़ महापौर का सीट अनुसूचित जाति और अंबिकापुर महापौर का सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित रहता है। 10 में से महापौर की तीन सीट महिलाओं के लिए आरक्षित कर दी जाती हैं। आरक्षण का फॉर्मूला रोटेशन में लागू होता है।
मतलब, पिछली बार जो सीट अनारक्षित थी, अब वह अनारक्षित छोड़ दूसरे वर्ग के लिए आरक्षित होगी। राज्य सरकार ने जब ओबीसी वर्ग की आबादी पहले की तुलना में दोगुनी मान ली है, तो नगर निगमों में ओबीसी आरक्षित सीटों की संख्या भी बढ़ाई जा सकती है।ऐसा माना जा रही है कि ओबीसी के लिए चार से पांच महापौर की सीट आरक्षित की जा सकती है। एससी वर्ग की सीट एक बढ़ सकती है।
इस बार रायपुर, दुर्ग, भिलाई और कोरबा महापौर की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित हो सकती है। इसका कारण यह है कि 2014 में रायपुर अनारक्षित, दुर्ग अनारक्षित महिला, भिलाई अनारक्षित और कोरबा अनारक्षित महिला सीट घोषित की गई थी।
आबादी के आधार पर लोकसेवा में जातिगत आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाया गया है। इसका अभी राजपत्र में प्रकाशन होगा। नगरीय निकाय चुनाव के लिए आरक्षण उसके बाद होगा, तो निश्चित तौर पर जातिगत आरक्षण में हुए बदलाव का असर पर उस पर पड़ेगा।