Home समाचार इसरो कंट्रोल रूम का संपर्क लैंडर विक्रम से टूटने की वजह ये...

इसरो कंट्रोल रूम का संपर्क लैंडर विक्रम से टूटने की वजह ये है!




IMG-20240704-WA0019
IMG-20220701-WA0004
WhatsApp-Image-2022-08-01-at-12.15.40-PM
1658178730682
WhatsApp-Image-2024-08-18-at-1.51.50-PM
WhatsApp-Image-2024-08-18-at-1.51.48-PM

इसरो के महत्वकांक्षी मून मिशन (moon mission) चंद्रयान 2 (Chandrayaan 2) का लैंडर विक्रम चांद की सतह से केवल 2.1 किलोमीटर की दूरी पर था. लोगों में गजब की खुशी थी. इसरो का बैंगलोर स्थित कंट्रोल रूम में खुशहाली छाई हुई थी. तभी संपर्क लैंडर से कंट्रोल रूम का संपर्क टूट गया. संपर्क टूटने के बाद पूरे के कंट्रोल रूम में मायूसी छा गई. इस सन्नाटे से बीच बाहर निकल चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर वैज्ञानिकों के बीच दाखिल हुए और उनका हौसला बढ़ाया. इसरो के वैज्ञानिक ने बताया कि ऐसा नहीं है. उन्होंने कहा, ‘पहले हमें लगा कि एक थ्रस्टर से कम थ्रस्ट मिलने की वजह से ऐसा हुआ लेकिन कुछ प्राथमिक जांच से ऐसा लग रहा है कि एक थ्रस्टर ने उम्मीद से ज्यादा थ्रस्ट लगा दिया.’

किसी अंतरिक्षयान के लिए कितना खास है थ्रस्टर?

थ्रस्टर किसी अंतरिक्षयान में लगाने वाला एक स्मॉल रॉकेट इंजन होता है. इसका इस्तेमाल स्पेसक्राफ्ट के रास्ते को बदलने के लिए किया जाता है. इससे स्पेसक्राफ्ट की ऊंचाई कम या ज्यादा की जाती है. इसरो ने आधिकारिक बयान में कहा गया है कि अभी डेटा का विश्लेषण किया जा रहा है. लेकिन इसरो के वैज्ञानिक ने मीडिया को बताया, ‘लैंडर विक्रम के लेग्स को रफब्रेकिंग के समय हॉरिजोंटल रहना था और फाइन ब्रेकिंग से पहले लैंडिंग सरफेस पर वर्टिकल लाना था. उस समय थ्रस्ट जरूरत से ज्यादा हो गया होगा जिससे विक्रम अपना रास्ता भटक गया. ये वैसी ही बात है कि किसी तेज रफ्तार कार पर अचानक ब्रेक लगाया जाता है और उसका संतुलन बिगड़ जाता है.’

लैंडर विक्रम ने चांद से 30 किलोमीटर की दूरी पर अपने कक्ष से नीचे उतरते समय 10 मिनट्स तक सटीक रफब्रेकिंग हासिल की थी. इसकी गति 1680 मीटर प्रति सेकंड से 146 मीटर प्रति सेकंड हो चुका था. इसरो के टेलीमेट्री, ट्रैकिंग ऐंड कमांड नेटवर्क केंद्र के स्क्रीन पर देखा गया कि विक्रम अपने तय पथ से थोड़ा हट गया और उसके बाद संपर्क टूट गया.

चांद पर स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग दो तरीके से होती है- सॉफ्ट लैंडिंग और हार्ड लैंडिंग. सॉफ्ट लैंडिंग में स्पेसक्राफ्ट की स्पीड को धीरे-धीरे कम करके आराम से चांद पर लैंड करवाया जाता है. हार्ड लैंडिंग में स्पेसक्राफ्ट को चांद की सतह पर क्रैश करवाया जाता है. सोवियत संघ के लुना 2 मिशन में स्पेसक्राफ्ट को चांद पर हार्ड लैंडिंग करवाई गई. 1962 में अमेरिका ने अपने रेंजर 4 मिशन में इसी तरह की लैंडिंग करवाई थी. उसके बाद ब्रेकिंग रॉकेट्स की मदद से चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग शुरू हुई. इसमें रॉकेट की मदद से स्पेसक्राफ्ट की स्पीड कम करके सॉफ्ट लैंडिंग होती है.

रॉकेट स्पेसक्राफ्ट की गति की दिशा के विपरित में छोड़ा जाता है, ताकि उसकी वजह से स्पेसक्राफ्ट के गति में रुकावट पैदा हो और उसकी स्पीड कम हो जाए.