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छत्तीसगढ़ में 9 महीने से कर्मचारियों को वेतन नहीं, बिजली का बिल देने को भी पैसे नहीं दे रही कांग्रेस सरकार




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राजधानी में हिंदी ग्रंथ अकादमी के संचालक और अध्यक्ष को हटाए जाने के बाद से सिस्टम ठप है। यहां के स्टाफ को लगभग 9 महीने से तनख्वाह नहीं मिली है। बिजली का बिल अदा नहीं होने से पिछले डेढ़ महीने पहले बिजली विभाग ने कनेक्शन काट दिया। उसके बाद से पूरा ऑफिस अंधेरे में है। भीषण गर्मी और उमस से परेशान ऑफिस स्टाफ भीतर अंधेरे में बैठ नहीं पा रहा है। उनका ज्यादातर समय अकादमी दफ्तर के बाद बरामदे में कट रहा है।

अकादमी में कोई किताबें खरीदने आता है तभी वे उठकर अंदर जाते हैं। यहां किताब खरीदने आने वाले ग्राहकों को भी अंधेरे में परेशानी हो रही है। कौन सी किताब कहां है? ये पहले से मालूम है, इस वजह से स्टाफ ढूंढकर दे रहा है।

अकादमी में सहायक संचालक, कंप्यूटर आपरेटर, ड्राइवर, प्यून, सफाई कर्मचारी समेत 8 स्टाफ हैं। सरकार बदलने के बाद 20 दिसंबर को निगम, मंडल व आयोगों के अध्यक्ष व संचालकों से इस्तीफे ले लिए गए। उसी समय हिंदी अकादमी के अध्यक्ष का भी इस्तीफा हो गया। अब तक नए अध्यक्ष की पोस्टिंग नहीं की गई है। डेढ़ साल पहले संचालक बनाए गए शशांक शर्मा ने भी त्यागपत्र दे दिया।

संचालक का कार्यकाल तीन साल का होता है। अकादमी के अध्यक्ष उच्च शिक्षा विभाग के मंत्री होते हैं। वरिष्ठ पत्रकार रमेश नैयर यहां करीब एक दशक तक संचालक रहे। लगभग आठ महीने से यहां संचालक नियुक्त नहीं है। जानकारों के अनुसार संचालक को ही आहरण वितरण का अधिकार है। उनके न रहने से कर्मचारियों का वेतन, बिजली बिल समेत कई भुगतान लंबित हैं। अकादमी के स्टाफ ने विभागीय सचिव व मंत्री से भी मुलाकात कर अपनी समस्या बताई है। वहां से हर बार आश्वासन ही मिला है। अब वे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से जन-चौपाल में मिलने की तैयारी कर रहे हैं।

क्या काम है अकादमी का

जिस तरह माध्यमिक शिक्षा मंडल बड़ी हाई व हायर सेकेंडरी के विद्यार्थियों के लिए किताबें छापता है उसी तरह अकादमी कालेज के छात्र-छात्राओं के लिए पुस्तकें प्रकाशित करता है। वह प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए भी किताबें छापता है। बताते हैं कि हाल ही में पीएससी में मुख्य नगर पालिका अधिकारी की भर्ती परीक्षा में टॉपर रहे पति-पत्नी अनुभव सिंह और विभा सिंह ने अकादमी की किताबों से नोट्स बनाकर ही परीक्षा में सफलता पाई है। बताते हैं कि अकामदी, पुस्तकों व कापियों के लिए केंद्र सरकार के मानव संसाधन विकास मंत्रालय से अनुदान मिलता है। जबकि स्थापना व्यय राज्य सरकार वहन करती है।

अकादमी के प्रबंध मंडल में बड़े लोग हैं। इसमें अध्यक्ष विभागीय मंत्री, संचालक के अलावा सभी विवि के कुलपति भी हैं। इनके अलावा, ज्य सरकार उच्च शिक्षा व साहित्य से जुड़े 11 लोगों का मनोनयन करती है। कुल 32 सदस्य मंडल में रहते हैं।

आखिरी उम्मीद ‘गांधीगिरी’

लगभग 9 महीने होने के बाद भी सैलरी का कुछ पता नहीं चल रहा है, इससे तंग आकर कर्मचारी अब गांधीगिरी करने जा रहे हैं। मीडिया के नाम एक पत्र जारी कर उन कर्मचारियों ने बताया कि 20 सितंबर को दोपहर 12:30 बजे हिंदी ग्रंथ अकादमी के कार्यालय के सामने झाड़ू पोछा लगा कर गांधीगिरी करी जाएगी। उसके बाद हम मानवाधिकार आयोग में शिकायत भी करेंगे।

यह छतीसगढ़ सरकार की नाकामी ही कही जाएगी कि 9 महीने से कर्मचारियों को देने के लिए तनख्वाह नहीं, ऑफिस की बिजली का बिल चुकाने के लिए पैसे नहीं है। ऐसा हो ही नहीं सकता कि यह मामला अब तक भूपेश बघेल तक ना पहुंचा हो। जरूरत बस इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखाने की है।