त्रिपुरा के स्थानीय प्रसिद्ध दुर्गा बाड़ी मंदिर में 525 सालों में पहली बार इस दुर्गा पूजा में जानवरों की बलि नहीं दी जाएगी। त्रिपुरा हाई कोर्ट ने धार्मिक स्थलों पर जानवरों की बलि दिए जाने की सदियों पुरानी परंपरा पर रोक लगा दी है। दुर्गा बाड़ी मंदिर के पुजारी दुलाल भट्टाचार्जी ने कहा कि हम त्रिपुरा हाई कोर्ट के फैसले का पालन करेंगे। भट्टाचार्जी के पुत्र ने बताया कि पश्चिम त्रिपुरा जिला प्रशासन के आदेश को देखते हुए मंदिर में जानवर की बलि नहीं दी जाएगी। पिछले साल तक इस मंदिर में एक भैंसे, कई बकरों और कबूतरों की बलि दी जाती रही थी।
त्रिपुरा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायाधीश अरिंदम लोध ने 27 सितंबर को फैसला देते हुए कहा था कि राज्य के मंदिरों में सरकार समेत कोई भी व्यक्ति जानवरों या पक्षियों की बलि नहीं देगा। बता दें कि दुर्गा बाड़ी मंदिर में पिछले 70 साल से सरकार की तरफ से ही पूजा का आयोजन किया जाता है। वहीं, तांत्रिकों का मानना है कि कोई भी पूजा बिना पशु बलि के पूरी नहीं होती है। हम नहीं चाहते किसी की धार्मिक आस्था को चोट पहुंचे।
त्रिपुरा के इतिहास और विरासत का अध्ययन करने वाले एक विशेषज्ञ ने बताया कि यह इतिहास है कि दस भुजाओं वाली देवी को देखने के बाद राज्य की रानी कृष्ण किशोर बेहोश हो गयी थीं। इसके बाद पुजारियों की सलाह पर दुर्गा देवी की दो भुजाओं को दिखाया गया, जबकि उनकी बाकी आठ भुजाओं को दुर्गा बाड़ी मंदिर में उनके पीछे छुपा दिया गया। बता दें कि राज्य का प्रसिद्ध दुर्गा बाड़ी मंदिर 114 साल पुराने उज्जयंत महल के सामने खड़ा है जिसे पूर्वी भारत में सबसे बड़े महलों में से एक माना जाता है।