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बस्तर के इन गावों में दशहरे की अनोखी परंपरा, यहां रावण दहन की बजाय मचती है ‘लूट’




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विजयादशमी का नाम आते ही रामलीला व रावण का पुतला दहन की छवि मानस पटल पर होती है, जिसमें दशहरा के अंत मे रावण के पुतले दहन किया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के कोंडागांव जिले के कुछ गांवों में चार दशक से भी अधिक समय से एक परंपरा चल रही है, जहां रावण दहन की बजाय वध किया जाता है और रावण की नाभि से निकले अमृत का तिलक किया जाता है. इसके पीछे ग्रामीणों की अपनी ही एक मान्यता है.

बस्तर संभाग के कोण्डागांव जिले के ग्राम भुमका और हिर्री में चार दशक पहले से अनोखे तरीके से दशहरा मनाया जाता है. इन गांव में मिट्टी का रावण का पुतला बनाया जाता है. भुमका गांव के कलाकर मोहन सिंह कुंवर ने बताया कि वे पिछले 25 साल से रावण का पुतला बना रहे हैं. शुरुआती दौर में मटके से रावण का सिर बनाया जाता था. गांव में दशहरा बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. विजय दशमी के दिन रामलीला का मंचन होता है . जिसे देखने आसपास के हजारो ग्रामीण रामलीला मैदान में पहुंचते है.

इसलिए नहीं करते हैं दहन ग्रामीण भरतद्वाज वैद्य व देवलाल निषाद बताते हैं कि रामलीला के अंत में राम रावण का वध करता है. इन दोनों गांव में रावन दहन नहीं किया जाता है. क्योंकि रामायण ग्रन्थ में उल्लेख है कि राम ने रावण का वध किया था उसी के अनुसार गांव में रावण दहन नहीं बल्कि उसका वध किया जाता है. रामलीला मंचन के बाद आखिरी में राम रावण का वध करते है. राम का तीर रावण को लगते ही राम की सेना रावण की मूर्ति पर हमला कर उस पर प्रहार करती है. वहीं राम के तीर लगाने से रावण की नाभि से अमृत के रूप में लाल गुलाल का घोल बहने लगता है, जिसका टिका लगाने के लिए ग्रामीणों के बीच होड़ मची रहती है.

मचती है लूट
गांव में अमृत लुटाने की परम्परा पर ग्रामीण ललित कुंवर का कहना है कि जिस अमृत के कारण रावण अजर अमर था उसका टिका लगाकर हम अपने और परिवार के बेहतर स्वास्थ्य की कामना करते हैं. इसलिए ही तिलक रूपी अमृत के लिए ग्रामीणों में लूट मचती है. बहरहाल आधुनिकता की दौड़ में आज लोग अपनी संस्कृति और धार्मिक ग्रन्थ को भूलते जा रहे हैं. ऐसे समय में आदिवासी बाहुल्य भुमका और हिर्री गांव के ग्रामीण आज भी रामायण में लिखी बातों का अनुसरण कर एक सन्देश देने की कोशिश में लगे हैं.