बिहार में विधान सभा चुनाव में अभी वक्त है, लेकिन प्रदेश में नए राजनीतिक समीकरण बनने की आहट मिलने लगी है. किशनगंज संविधान सभा सीट पर मिली जीत से उत्साहित AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी मुस्लिम-दलित फॉर्मूले के तहत एक नया मोर्चा बनाने की तैयारी में लग गए हैं. वे बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी के साथ 29 दिसंबर को किशनगंज में मंच साझा करने वाले हैं. जाहिर है बिहार की राजनीति में इसका असर पड़ना लाजिमी है.
ओवैसी का ‘जय भीम और जय मीम’ फॉर्मूला
दरअसल ‘जय भीम और जय मीम’ ( दलित-मुस्लिम गठजोड़) ही वह फॉर्मूला है जिसके आधार पर असदुद्दीन ओवैसी बिहार में अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहते हैं. अगर जीतन राम मांझी के साथ ओवैसी का गठबंधन होता है तो दलित और मुस्लिम का एक नया समीकरण हो सकता है.
ओवैसी के AIMIM ने सीमांचल में बनाई पैठ ऐसे तो बिहार में ज्यादातर मुस्लिम आरजेडी के वोटर माने जाते हैं, लेकिन ओवैसी के मजबूत होने से निश्चित तौर पर आरजेडी को झटका लग सकता है. यही बात जेडीयू के साथ भी मानी जा रही है क्योंकि हाल के दिनों में सीमांचल के इलाके में जेडीयू ने मुस्लिम वोटरों के बीच काफी पैठ बनाई है.
बिहार में दलित-मुस्लिम गठजोड़ बड़ा फैक्टर
दरअसल कांग्रेस के जमाने में मुस्लिम और दलित का समीकरण प्रभावी रहा है. लेकिन हाल के वर्षों में ऐसा कोई समीकरण सामने नहीं आया था. अब अगर यह गठबंधन हो गया तो महागठबंधन के साथ-साथ एनडीए को भी नुकसान पहुंच सकता है.
बदल सकते हैं बिहार के सियासी समीकरण
सीटों के समीकरण के लिहाज से भी देखें तो सीमांचल इलाके के तहत आने वाली 24 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम मतदाताओं की आबादी बड़ी है और उसका प्रभाव भी अधिक है. कटिहार, अररिया, पूर्णिया और किशनगंज जिलों में जिस तरह AIMIM ने अपना विस्तार किया है ऐसे में दलित-मुस्लिम मतों को एकजुट करने में औवैसी और मांझी कामयाब रहते हैं तो बिहार के सियासी समीकरण काफी हद तक बदल सकते हैं.
मगध क्षेत्र में जीतनराम मांझी का खासा प्रभाव
वहीं, जीतन राम मांझी का बिहार के मगध इलाके में अच्छा खासा जनाधार है. मगध इलाके में 28 विधानसभा सीटें आती है, जिनमें गया, जहानाबाद, औरंगाबाद और नवादा जिले की सीटें शामिल हैं. जीतन राम मांझी के मुसहर समाज का यहां की हर विधानसभा सीट पर 10 हजार से लेकर 40 हजार तक वोट हैं.
सत्ता की चाबी का नया सेंटर बन सकते हैं मांझी-ओवैसी
इस समीकरण का एक विशेष पहलू ये भी है कि बिहार में विधान सभा की कुल 243 सीटें हैं, जिनमें से मगध और सीमांचल में 50 सीटें आती हैं. अगर इन दोनों ही इलाके में दलित-मुस्लिम मतों को एकजुट करने में औवैसी और मांझी सफल होते हैं तो बिहार में सत्ता की चाबी का का एक नया केंद्र भी बन सकता है.