नागरिकता संशोधन कानून बने हुए एक पखवाड़े से ज्यादा समय बीत चुका है लेकिन देशव्यापी प्रदर्शन जारी हैं। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक मोदी सरकार का यह कदम राजधानी दिल्ली के कूटनीतिक समुदाय के लिए मुश्किलें खड़ी कर रहा है। कूटनीतिज्ञों ने सार्वजनिक तौर पर भले ही सीएए को भारत का अंदरूनी मामला बताया हो लेकिन उन्होंने हालात पर चिंता व्यक्त की है।
कई उपमहाद्वीपों के 16 कूटनीतिज्ञों से बात-चीत कर इस मुद्दे पर राय जानी है। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने विदेशी राजदूतों को पुलवामा हमला, बालाकोट एयर स्ट्राइक, जम्मू कश्मीर से आर्टिकल 370 का हटाया जाना और यहां तक अयोध्या मंदिर पर भी ब्रीफिंग दी थी। लेकिन नागरिकता संशोधन कानून और इसकी जटिलताओं पर कोई बात नहीं की है।
जी-20 देशों के एक राजदूत ने कहा कि सरकार ने कश्मीर से लेकर अयोध्या मसले तक की जानकारी दी थी लेकिन सीएए पर कोई बात नहीं की। जिसमें अंतर्राष्ट्रीय सीमाएं भी जुड़ी हुई हैं। अधिकांश कूटनीतिज्ञों का मानना है कि देश में प्रदर्शन सिर्फ मुस्लिम समुदाय तक सीमित नहीं हैं।
सीएए पर भारत सरकार को पहला कूटनीतिक झटका तब लगा था जब बांग्लादेश के विदेश मंत्री और गृहमंत्री ने अपना दौरा रद्द कर दिया। उसके बाद जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने भी अपना दौरा टाल दिया। कई विदेशी कूटनीतिज्ञों का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की आलोचनाओं पर पीएम मोदी पर ध्यान दे सकते हैं लेकिन गृहमंत्री अमित शाह के बारे में वो सुनिश्चित नहीं हैं।
एक डिप्लोमैट का कहना है कि सरकार अपने दोस्तों के लिए स्थिति को मुश्किल बनाती जा रही है। इस दर से कुछ दोस्त दूर हो जाएंगे जो अन्य कई मुद्दों पर सरकार का समर्थन करते रहे हैं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 12 दिसंबर को नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2019 को अपनी मंजूरी दे दी, जिसके बाद यह एक कानून बन गया है। इस कानून के विरोध में देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। पूर्वोत्तर के राज्यों के अलावा दिल्ली, यूपी और बंगाल समेत कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन देखने को मिले।
नागरिकता संशोधन अधिनियम के अनुसार हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदायों के जो सदस्य 31 दिसंबर 2014 तक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत आए हैं और जिन्हें अपने देश में धार्मिक उत्पीड़न का सामना पड़ा है, उन्हें गैरकानूनी प्रवासी नहीं माना जाएगा, बल्कि भारतीय नागरिकता दी जाएगी।