नई दिल्ली– उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने शुक्रवार रात करीब सवा 11 बजे राज्यपाल बेबी रानी मौर्य को अपना इस्तीफा सौंप दिया। वे सिर्फ 115 दिन ही मुख्यमंत्री रह पाए। इससे पहले BJP से 2002 में भगत सिंह कोश्यारी 123 दिन CM रहे थे।
इस्तीफे के बाद रावत ने कहा कि संवैधानिक संकट की वजह से उन्होंने यह कदम उठाया है। उन्होंने मौका देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद दिया। वहीं, भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक ने कहा कि आलाकमान के कहने पर मुख्यमंत्री ने इस्तीफा दिया है। उन्होंने बताया कि अगला मुख्यमंत्री कोई विधायक ही होगा। शनिवार को होने वाली विधायक दल की बैठक में इस पर फैसला लिया जाएगा।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस्तीफे पर बात नहीं की
इससे पहले रात पौने 10 बजे रावत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। इसमें उन्होंने अपने कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाईं। इसके बाद वे प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म कर चले गए। पत्रकारों ने उनसे इस्तीफे के बारे में सवाल भी किया, लेकिन वे बिना जवाब दिए निकल गए।
पहले कहा गया था कि तीरथ सिंह रावत भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा को इस्तीफा सौंप चुके हैं। अब राज्य के नए मुख्यमंत्री के तौर पर धन सिंह रावत और सतपाल महाराज के नाम चर्चा में हैं। भाजपा ने केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को राज्य के लिए केंद्रीय पर्यवेक्षक बनाया है। वह शनिवार को बैठक में मौजूद रहेंगे।
हफ्तेभर से तीरथ को हटाए जाने के कयास लग रहे थे
पिछले एक हफ्ते से ही ये कयास लगाए जा रहे थे कि उत्तराखंड में एक बार फिर मुख्यमंत्री का चेहरा बदल सकता है। उनके इस्तीफे के पीछे संवैधानिक मजबूरी को वजह बताया जा रहा था। वे अभी राज्य के किसी सदन के सदस्य नहीं थे। यही बात उनके मुख्यमंत्री बने रहने के आड़े आ रही थी। रावत को भाजपा आलाकमान ने बुधवार को दिल्ली तलब किया था। वहां गृह मंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा ने उनसे मुलाकात की थी।
साढ़े 3 महीने में ही कुर्सी पर संकट आया
मुख्यमंत्री बनने के बाद लगातार विवादित बयान देकर भाजपा की फजीहत कराने वाले तीरथ सिंह रावत की साढ़े तीन माह में ही विदाई हो गई। सूत्रों के मुताबिक, पार्टी ने दिल्ली बुलाकर उनसे इस्तीफा मांग लिया और उन्होंने पार्टी अध्यक्ष जे.पी. नड्डा को इस्तीफा सौंप भी दिया है।
कुंभ के दौरान तीरथ सिंह रावत ने जिस तरह से भीड़ को जमा होने की छूट दी और उसके बाद कोरोना जांच के नाम पर फर्जीवाड़े में उनके करीबियों का नाम उछला, उससे उनकी स्थिति काफी खराब हो गई। वैसे भी तीरथ जिस तरह से काम कर रहे थे, उससे भाजपा को लगने लगा था कि आगामी चुनाव में उसकी नैया पार नहीं लगने वाली। तीरथ को हालांकि भाजपा केंद्र में भी पद दे सकती है, क्योंकि वह पौड़ी गढ़वाल सीट से सांसद भी हैं।
नए CM के लिए सतपाल महाराज का नाम सबसे आगे
नए CM पद के लिए भाजपा अब किसी को बाहर से लाने की बजाय विधायकों में से चुनने के पक्ष में है। फिलहाल सतपाल महाराज का पलड़ा सबसे भारी लग रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत भी पूरा जोर लगा रहे हैं, लेकिन उनको विधायकों का समर्थन मिलना मुश्किल लग रहा है।
धार्मिक समुदायों में पैठ से सतपाल महाराज का पलड़ा भारी
राज्य के अगले मुख्यमंत्री के लिए सतपाल महाराज, धन सिंह समेत 4 वरिष्ठ विधायकों के नाम की चर्चा है। इनमें राज्य के पर्यटन, सांस्कृतिक और सिंचाई मंत्री सतपाल महाराज का नाम सबसे आगे है। वे भाजपा के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य भी हैं। सतपाल मानव उत्थान सेवा समिति के संस्थापक हैं। इस समिति के लगभग 3 हजार आश्रम हैं।
देवस्थानम बोर्ड बनाने और चार धाम क्षेत्रों के विधायकों को बोर्ड में सदस्य के तौर पर शामिल करने पर विवाद था। चार धामों के पुरोहित इससे नाराज थे। त्रिवेंद्र सिंह रावत ने मुख्यमंत्री रहते हुए यह कदम उठाया था। इस नाराजगी को दूर करने के लिए भाजपा सतपाल महाराज पर दांव लगा सकती है, क्योंकि धार्मिक समुदायों में उनकी अच्छी पैठ है।
तीरथ सिंह रावत के सामने संवैधानिक समस्या क्या थी?
त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफे के बाद तीरथ सिंह रावत ने 10 मार्च को उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। अब संविधान के मुताबिक पौड़ी गढ़वाल से भाजपा सांसद तीरथ को 6 महीने के भीतर विधानसभा उपचुनाव जीतना था, तभी वह CM रह पाते। यानी 10 सितंबर से पहले उन्हें विधायकी जीतनी थी। कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि तीरथ सिंह गंगोत्री से चुनाव लड़ेंगे। आम आदमी पार्टी ने तो यहां उनके खिलाफ अपना कैंडिडेट कर्नल अजय कोठियाल को बना भी दिया था।
चुनाव आयोग द्वारा सितंबर से पहले उपचुनाव कराने से इंकार करने के बाद CM रावत के सामने विधायक बनने का संवैधानिक संकट खड़ा हो गया। हालांकि वह 6 माह पूरा होने से पहले इस्तीफा देकर दोबारा शपथ ले सकते थे, लेकिन भाजपा को अगले साल के शुरू में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले ऐसा करना ठीक नहीं लग रहा था।
विधानसभा चुनाव को लेकर क्या स्थिति है?
सूत्रों ने बताया कि उत्तराखंड उपचुनाव को लेकर अभी भी चुनाव आयोग को फैसला करना बाकी है। सूत्र ने कहा कि ये चुनाव कोरोना संक्रमण के हालात पर ही निर्भर करते हैं। हालांकि, अभी इसके लिए तीरथ सिंह रावत के पास करीब-करीब दो महीने का समय है।