(बालाघाट, वारासिवनी, कटंगी, लांजी, मोहगांव-मलाजखंड में होगें चुनाव)
रहीम खान (वरिष्ठ पत्रकार )
बालाघाट: मध्यप्रदेश चुनाव आयोग द्वारा भविष्य में सम्पन्न होने वाले नगर पालिका चुनाव को लेकर दिये गये नये अपडेट के अंतर्गत अब अध्यक्ष का चुनाव चुने गये पार्षदों के द्वारा किया जायेगा न कि जनता के द्वारा। इस निर्णय से उन लोगों के चेहरे मुरझा गये जो लंबे समय से अध्यक्ष बनने का ख्वाब पाले हुए थे। क्योंकि जो परिदृश्य उभर कर सामने आया है उसमें सबसे पहले पार्षद बनना जरूरी है उसके बाद अगर आपकी पार्टी के पार्षद अधिक और पार्टी हाईकमान आपसे सहमत है तो बात बनेगी, अन्यथा पार्षद के रूप में ही कार्य करना पड़ेगा। यह फैसला प्रदेश में 15 माह की कमलनाथ सरकार द्वारा लिया गया था, जबकि भाजपा इससे सहमत नहीं थी। लेकिन समय पर निर्णय नहीं लेने के कारण भाजपा को भी इसी पद्धति पर चुनाव कराने के लिये मजबूर होना पड़ रहा है।
जिले में कांग्रेस और भाजपा दो दलों का ही वर्चस्व है, इस कारण आने वाले चुनाव में इन दोनों की दलों से अध्यक्ष और पार्षद अधिक से अधिक चुने जाने की संभावना है। बालाघाट में 33 वार्ड, वारासिवनी में 15 वार्ड, कटंगी में 15 वार्ड, लांजी में 15 वार्ड, मोहगांव-मलाजखंड में 15 वार्ड के लिये चुनाव होगें। जो नया फरमान आया उसमें अब पार्टी से पार्षद टिकट पाने के लिये उम्मीदवारों को पसीना बहाना पड़ेगा। जहां पर एक अनार सौ बीमार वाली कहावत चरितार्थ होती है। पद एक है पर दोनों की दलों मंे दावेदार अधिक है। जिसे टिकट नहीं मिलेगी वह बागी बनकर भी चुनाव लड़ेगा। पार्षद पद पर विजय होने के बाद ही अध्यक्ष पद की संभावनायें तलाशी जायेगी। यही कारण है कि चुनाव आयोग के आदेश के बाद पूरे जिले में नगर पालिका चुनाव को लेकर एक नई तरह की हलचल की शुरूआत हो गई है। अनेक वार्ड आरक्षित होने के कारण काफी रद्दोबदल भी वार्डो की स्थिति में किया गया है। चूंकि चुनाव छोटा है इसकारण बगावत की संभावनायें भी अधिक हो सकती है।
बालाघाट में भाजपा भारी –
निकाय चुनाव में 2014 में यहां पर भाजपा के 33 में से 20 पार्षद थे, जबकि कांग्रेस के 6 और 7 निर्दलीय थे। इस दृष्टिकोण से यहां भाजपा का पल्ला भारी था। अतीत पर नजर दौडाये जाये तो 1994 के नपा चुनाव में यहां पर पार्षदों के द्वारा अध्यक्ष चुनाव गया था, जिसके चलते कांग्रेस के भीम फूलसुंघे अध्यक्ष पद पर सुशोभित हुए थे। लेकिन 1999 से अध्यक्ष पद हेतु सीधे चुनाव की प्रक्रिया अपनाई गई जिसमें निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में श्रीमती अनुभा मुंजारे, 2004 में पुनः श्रीमती मुंजारे, निर्वाचित हुई थी। यह विजयश्री उन्हें खाली कुर्सी भरी कुर्सी में प्राप्त हुई थी लेकिन चुनाव जनता के द्वारा किया गया था। 2009 में यहां पर भाजपा के रमेश रंगलानी अध्यक्ष पद पर निर्वाचित हुए थे, उसके बाद 2014 में पुनः भाजपा के अनिल धुवारे ने जीत प्राप्त की। यह सब जनता के द्वारा चुने गये थे। लेकिन 2021 में परिस्थितियां बदली है और अब पुनः 1994 वाली स्थिति निर्मित हो गई इसलिये अभी यह देखना महत्वपूर्ण है कि भविष्य के चुनाव में किस राजनीतिक दल के कितने पार्षद जीत प्राप्त करते है इस पर ही अध्यक्ष की राह क्लीयर होगी।
वारासिवनी में बदला समीकरण –
वर्ष 2014 में वारासिवनी जहां पर 15 वार्ड है, यहां पर अधिक पार्षद कांग्रेस के जीतने के साथ जनता द्वारा चुनाव में कांग्रेस के विक्की पटेल अध्यक्ष बनने में सफल हुए थे। उस समय वर्तमान विधायक प्रदीप जैसवाल कांग्रेस में थे। किंतु 2021 में यहां पर विधायक जैसवाल निर्दलीय है और वह भाजपा का समर्थन कर रहे है। ऐसी स्थिति में आगामी चुनाव में उनकी भूमिका क्या होगी ? क्या वह भाजपा का समर्थन करेगें। तब वह अपने लोगों को किस प्रकार से और कितने वार्डो में वार्ड पार्षद की टिकट दिलाते है, यह देखने लाये बात है। इस पालिका के चुनाव में हमेशा उतार चढ़ाव की स्थिति देखी गई है। वर्ष 1994 पर नजर दौडाई जाये तो टी.डी गुप्ता एवं निरंजन दास समय पर प्रशासक रहे। इसके बाद 1995 में श्रीमती लता पिपरेवार अध्यक्ष बनी, वहीं 1996 में प्रेमलाल गोखले कार्यकारी नपा अध्यक्ष थे। 1999 में अध्यक्ष का पद शशि येरपुड़े को मिला, जबकि 2000 में इस पद पर निर्दोष माॅडल अध्यक्ष बने। 2004 में आलोक खरे एवं निर्दोष माॅडल का अलग अलग तिथियों में कार्यकाल रहा। वहीं 2005 के चुनाव में अध्यक्ष की कुर्सी पर डाॅ. योगेन्द्र निर्मल काबिज हुए थे। लेकिन इसी वर्ष में पुनः कार्यकारी अध्यक्ष के रूप में अनिश बेग भी पदस्थ हुए थे। डाॅ. निर्मल वर्ष 2005 समाप्त होने से पूर्व फिर एक बार अध्यक्ष निर्वाचित हुए। यह ऐसा दौर था जब वारासिवनी की राजनीति में खासी उथल पुथल रही और उतार चढ़ाव से गुजरते हुए डाॅ. निर्मल ने अपना पांच वर्ष का अध्यक्षीय कार्यकाल पूरा किया। फिर 2010 के चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार तत्कालिन विधायक प्रदीप जैसवाल की पत्नी श्रीमती स्मिता जैसवाल ने जनता की अदालत में जीत दर्ज करते हुए अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण किया। उसके बाद 2014 के चुनाव में कांग्रेस के विक्की पटेल अध्यक्ष निर्वाचित हुए और उन्होंने भी अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण किया। आगामी 2021 के चुनाव मे ंयहां अध्यक्ष पद महिला सामान्य वर्ग के खाते में गया है। देखना यह है कि यहां किस दल के कितने पार्षद निर्वाचित होते है उस आधार पर ही अध्यक्ष पद की लाईन क्लीयर होगी।
लांजी मे निर्दलीय अध्यक्ष –
जिले के छत्तीसगढ़ एवं महाराष्ट्र राज्य की सीमा पर स्थिति नगर परिषद लांजी की बात की जाये तो यहां पहला चुनाव 26 जुलाई,2010 को हुआ था। तब परिषद गठन में अध्यक्ष पद के लिये पहली बार आरक्षण प्रक्रिया हुई थी। जिसमें यह पद अन्य पिछडा वर्ग महिला के खाते में लिये आरक्षित हुआ था। वहीं 2015 के चुनाव की बारी आई तो अध्यक्ष पद अनारक्षित के खाते में चला गया। 2021 का आरक्षण मे ंलांजी नगर परिषद मे ंसामान्य महिला आरक्षण हुआ। लांजी में अतीत के दोनों चुनाव पर नजर दौडाई जाये तो बड़ी रोचक स्थिति देखने मिलती है। 2010 में भाजपा प्रत्याशी श्रीमती वनिता योगेश रामटेककर ने 2896 मत लेकर 812 मतों से जीत दर्ज की थी। जबकि उनकी निकटतम प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी की श्रीमती मीरा नानाजी समरिते को 2086 मत मिले थे। फिर 2015 के चुनाव में अनारक्षित पद के लिये अध्यक्ष पद का आरक्षण हुआ, जिसमें बसपा की टिकट पर श्रीमती मीरा नानाजी समरिते (2764 मत) ने 207 मतों से जीत दर्ज कराई थी। औरउनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी भाजपा के योगेश रामटेककर (2557 मत) को पराजय का सामना करना पड़ा। इस प्रकार से दोनों की नपा चुनाव में यहां कांग्रेस कुछ नहीं कर पाई थी। इस बार देखना है कि क्या कुछ होता है।
कटंगी में कांग्रेस का प्रभाव –
15 वार्ड वाली कटंगी नगर परिषद चुनाव में भी अन्य परिषद की तरह रोचकता की स्थिति देखी गई है। यहां 1994 से 2009 के बीच हुए चार चुनाव में कटंगी की जनता ने भाजपा और कांग्रेस दोनों को बराबरी का मौका दिया। 2014 के चुनाव में कांग्रेस ने यहां अध्यक्ष पद पर जीत हासिल की थी। घटनाक्रम के अनुसार आरक्षण पर नजर दौडाई जाये तो 1994 में अध्यक्ष पर अनारक्षित खाते में आया था। जिसमें कांग्रेस के सुनील जैन ने जीत प्राप्त की थी। 1994 के चुनाव में अन्य पिछड़ा वर्ग महिला के खाते में अध्यक्ष पद आया था। जहां भाजपा की गीता भोजराज देशमुख ने जीत प्राप्त किया था। 2004 में अनारक्षित कोटे में सीट आने पर दूसरी बार कांग्रेस के सुनील जैन ने अध्यक्ष पद पर जीत प्राप्त किया था। 2009 का चुनाव में एक बार फिर सत्ता परिवर्तन हुआ और अनारक्षित खाते में गये अध्यक्ष पद पर भाजपा के मेष देशमुख ने जीत प्राप्त किया। वर्ष 2014 में पुनः अनारक्षित महिला आरक्षण पर चुनाव लड़ते हुए कांग्रेस की श्रीमती अर्चना अनिल जैन ने अध्यक्ष पद पर जीत प्राप्त करते हुए अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण किया। यहां रोटेशन के आधार पर चले आ रहे आरक्षण को लिया जाये तो अनारक्षित संवर्ग में तीन बार आरक्षण हुआ जिसमें एक बार महिला वहीं अन्य पिछड़ा वर्ग महिला के खाते में एक बार आरक्षण हो चुका है। वर्ष 2020 के आरक्षण में आरक्षण नगर परिषद अन्य पिछड़ा वर्ग सामान्य हुआ है। अतः अध्यक्ष पद की रोचकता इस बार भी पूर्व की तरह बनी रहेगी।
मलाजखंड में भाजपा का दबदबा –
वर्ष 2021 में होने वाले जिले के पांच नगर परिषद चुनाव में से एक आदिवासी बाहुल्य मलाजखंड नगरपालिका अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिये आरक्षित होना तय माना जा रहा है। 2020 में हुई आरक्षण प्रक्रिया के तहत इस पालिका में अध्यक्ष पद अनुसूचित जनजाति मुक्त के लिये आरक्षण हो चुका है। इसके पूर्व वर्ष 2014 में यहां मीना मर्सकोले ने जीत प्राप्त किया था और अपना पांच वर्ष का कार्यकाल पूर्ण किया। वहीं अब अनुसूचित जनजाति सामान्य के लिये आरक्षित हुए मलाजखंड नगर पालिका में कांग्रेस एवं भाजपा दोनों ही दल के पार्षद उम्मीदवार अपनी अपनी तरह से मेहनत करने में लगे है। यहां पर बसपा की तरफ से भी नपा अध्यक्ष रह चुके है। वहीं क्षेत्र के वर्तमान विधायक संजय उइके भी इस पालिका में अध्यक्ष पद पर अपना पांच वार्षिय कार्यकाल पूर्ण कर चुके है। 15 वार्ड वाले इस नगर परिषद में आरक्षण को लेकर अभी मसला उलझा हुआ है जो कोर्ट के आदेश आने के बाद सुलझेगा, फिर भी यह आरक्षित परिषद है यहां पर अध्यक्ष पद आरक्षित वर्ग को ही जायेगा। जबकि पार्षद में स्थितियां भिन्न है।
बहरहाल आगामी अक्टूबर-नवम्बर में संभावित नगर पालिका एवं परिषद के चुनाव को लेकर राजनीतिक गतिविधिया अपने आप बढ़ गई है। वहीं दूसरी ओर बालाघाट में विधायक गौरीशंकर बिसेन, वारासिवनी में विधायक प्रदीप जैसवाल, कटंगी में विधायक टामलाल सहारे, लंाजी में विधायक हीना कावरे, बैहर में विधायक संजय उइके की प्रतिष्ठा दांव पर होगी। क्योंकि स्थानीय निकाय के इन चुनाव का प्रभाव कहीं न कहीं 2023 में होने वाले विधानसभा के चुनाव पर अवश्य ही पड़ेगा। चूंकि अध्यक्ष पद का चुनाव जनता की जगह पार्षदों के द्वारा किया जायेगा इसलिये इन विधायकों पर जिम्मेंदारी होगी कि वह अधिक से अधिक पार्षद अपने दल के जीताये ताकि नगर सरकार पर उनका वर्चस्व व उनका अध्यक्ष निर्वाचित हो सके। यह कार्य जितना ज्यादा सरदर्द नपा चुनाव लडने वालों के लिये है उससे ज्यादा सरदर्द क्षेत्रीय विधायकों के लिये है। जहां उन्हें पार्षद जीता कर अध्यक्ष बनाना और इन सब कार्यो में समन्वय बनाना आसान नहीं है।