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प्राइवेट चंदूलाल मेडिकल कॉलेज का अधिग्रहण इसलिए विवादों में:चार साल से नहीं हो रहा एडमिशन, बंद होने की कगार पर था कॉलेज, 80 करोड़ कर्ज भी




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रायपुर/दुर्ग– दुर्ग स्थित चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कालेज के अधिग्रहण को लेकर एक बड़ा कदम उठाया गया। इस संबंध मेें बुधवार को विधानसभा में विधेयक पेश हुआ। अब गुरुवार को इसके पारित होते ही प्रदेश को एक और सरकारी मेडिकल कालेज मिल जाएगा। बीते 12 सालों से कालेज का संचालन विवादों में रहा है।

पिछले 4 साल से तो यहां जीरो इयर की स्थिति है। यानि सालाना 150 नए डाक्टर तैयार होने थे जो नहीं हो पाए। सीधे-सीधे 4 सालों में 600 डाक्टरों से प्रदेश को वंचित होना पड़ा। वहीं, मेडिकल के क्षेत्र में कैरियर बनाने के इच्छुक नीट क्वालिफाई छात्र भी एडमिशन से वंचित रहे। सरकार के इस कदम से 2022 में कालेज को मान्यता मिलने की उम्मीद जगी है। नेशनल मेडिकल कमीशन की टीम जल्द ही निरीक्षण के लिए आ सकती है। कॉलेज का अधिग्रहण इसलिए विवादों में आया कि कर्जदार कॉलेज को सरकारी किया जा रहा है। इस पर करीब 80 करोड़ का कर्ज है। बीते चार सालों से एडमिशन न होने से संस्था की माली हालत लगातार खराब हो रही थी।

25 एकड़ जमीन कुल
16.5 करोड़ (वर्तमान 600 रु./ वर्ग फुट)
10 लाख वर्ग फुट निर्माण
50 करोड़ (तत्काकि 500रु./वर्ग फुट)
मेडिकल उपकरण व अन्य
10 करोड़ (ज्यादातर मशीनें अपग्रेडेड नहीं)
संस्था पर बैंकों के लोन
80 करोड़ (समय-समय पर लिया गया)

सड़क से राजभवन तक उठाई आवाज, अधिग्रहण की मांग उठी
2016 में 64 छात्रों का एडमिशन रद्द होने के बाद प्रबंधन की हालत खस्ताहाल होती गई और फैकल्टी ने कॉलेज छोड़ना शुरू कर दिया। अपनी पढ़ाई को लेकर छात्रों ने सड़क से राजभवन तक अपनी आवाज पहुंचाई। मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलकर मेडिकल छात्रों के संगठन ने कॉलेज के अधिग्रहण की मांग शुरू कर दी। स्वयं को दूसरे कॉलेज में मर्ज करने के लिए छात्र हाईकोर्ट गए, तो सरकार ने सीट खाली नहीं होने का हवाला दिया। हाईकोर्ट ने कमेटी बनाकर 2017 तक दाखिला लेने वाले बच्चों के भविष्य को देखते हुए उनकी समस्याओं का हल निकालने का आदेश दिया।

डिग्री प्रमाणीकरण में अड़चन आई तो कोर्ट पहुंचे छात्र
नेशनल मेडिकल कमीशन के नियम अनुसार सीएम भूपेश मेडिकल कॉलेज की अनुमति रद्द होने से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद भी डिग्री मान्य होने में अड़चन आई। इसे लेकर छात्रों ने सड़क पर उतरकर विरोध-प्रदर्शन किया। उन्होंने कोर्ट तक का दरवाजा खटखटाया। कोर्ट के आदेश के बाद नेशनल मेडिकल कमीशन ने 2013, 14 और 15 बैच के छात्रों की डिग्री प्रमाणित कर दी।

सीएम ने 2 फरवरी को अधिग्रहण की घोषणा की, 50 करोड़ का आंकलन
इसी साल 2 फरवरी को कचांदुर पहुंचे सीएम भूपेश बघेल ने मेडिकल कॉलेज के अधिग्रहण का एलान किया। कैबिनेट में प्रस्ताव के बाद कलेक्टर के माध्यम से कॉलेज की परिसंपत्ति और देनदारियों का आंकलन कराया गया। हेल्थ, पीडब्ल्यूडी, राजस्व और फारेस्ट डिपार्टमेंट ने इसकी रिपोर्ट कलेक्टर को दी। प्रशासनिक टीम ने करीब 50 करोड़ का आंकलन किया और रिपोर्ट सौंप दी।

अधिग्रहण के बाद सरकारी मेडिकल कॉलेज 7 हो जाएंगे, सीटें 1370
चंदूलाल काॅलेज के अधिग्रहण के बाद प्रदेश में सरकारी मेडिकल कालेजों की संख्या बढ़कर 7 हो जाएगी और एमबीबीएस की सीटें 1370। यानि हर साल राज्य को हजार से अधिक डाक्टर मिलने लगेंगे। इनके अलावा राज्य में इस साल 2 निजी मेडिकल काॅलेज भी खुलने जा रहे हैं। कोरबा, महासमुंद और कांकेर में भी 3 सरकारी कॉलेज खोलने की प्रक्रिया चल रही है। यहां 450 सीटें मिलेंगी।

कॉलेज की आर्थिक स्थिति लगातार खराब होती चली गई… अब राहत मिलेगी
वर्ष 2000 चंदूलाल चंद्राकर मेमोरियल हास्पिटल प्रा. लिमिटेड नाम की संस्था ने भिलाई के नेहरू नगर चौक पर निजी अस्पताल खोला। इसके करीब 12 साल बाद इसी संस्था ने कचांदुर में प्राइवेट मेडिकल कॉलेज की बुनियाद रखी। मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के इंस्पेक्शन के बाद वर्ष 2013 में इस कॉलेज को पहला बैच मिला। वर्ष 2014-15 तक यह कॉलेज प्रदेश के अग्रणी निजी कॉलेजों में आ गया, लेकिन वर्ष 2016 में नीट के गठन के साथ दिक्कतें हुईं। दरअसल 2016 तक कॉलेज को मिली कुल 150 सीटों में 50% यानी 75 सीटों पर मैनेजमेंट ने अपने स्तर से दाखिला लेने की छूट थी।

बची हुई 75 सीटों पर सरकार द्वारा एडमिशन किए जाते थे, लेकिन 2016 में सरकार ने मैनेजमेंट कोटा खत्म कर दिया। इस संदर्भ में आर्डर आने से पहले ही मेडिकल कॉलेज मैनेजमेंट अपनी 75 सीटों पर निर्धारित फीस लेकर दाखिला दे दिया, जिसे एमसीआई ने रद्द कर दिया। इसे बहाल करने के लिए कॉलेज प्रबंधन हाईकोर्ट भी गया, लेकिन वहां से राहत नहीं मिली। मैनेजमेंट द्वारा लिए गए दाखिले में उन्हीं 11 एडमिशन को परमिशन दी गई, जिन्होंने नीट की परीक्षा पास की थी। फिर 2017 बैच के लिए इंस्पेक्शन हुआ और सभी 150 सीटों पर सरकार की ओर से दाखिला भी दे दिया गया। 2016 में 64 मेडिकल छात्रों से ली गई फीस और अन्य राशि देने में मैनेजमेंट की आर्थिक स्थिति बिगड़ गई। नियुक्त डॉक्टर और स्टॉफ को वेतन देने के भी लाले पड़ गए। ऐसे में 2018 तक काफी संख्या में डॉक्टर और स्टॉफ ने मेडिकल कॉलेज की नौकरी छोड़ दी। इसके चलते वर्ष 2019-20-21 तक नया बैच नहीं मिला। इसके बाद की सभी इंस्पेक्शन रिपोर्ट कॉलेज प्रबंधन के खिलाफ गई और इस तरह मेडिकल कॉलेेज में ताला लग गया। इसके बाद इस कॉलेज को बेचने की कोशिशें शुरू हुई। अलग-अलग शैक्षणिक संस्थाओं ने संपर्क किया, पर बात नहीं बनी।

इसलिए विवाद
यह विवाद मंगलवार को केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया और पीयूष गोयल समेत भाजपा नेताओं ने सोशल मीडिया पोस्ट कर निजी मेडिकल कॉलेज अधिग्रहण को लेकर सवाल उठाए थे। इस पर सीएम बघेल ने भी पलटवार किया। पढ़िए पूरा मामला…

सरकारी पैसे से कॉलेज खरीद रहे
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सोशल मीडिया पर लिखा कि भूपेश बघेल अपने रिश्तेदारों के निजी कॉलेज को बचाने उसे सरकारी पैसे से खरीद रहे हैं। वो भी एक ऐसा कॉलेज जिस पर धोखाधड़ी के आरोप एमसीआई द्वारा लगाए गए थे। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि कर्ज में डूबे कालेज का अधिग्रहण कर जनता के पैसे का दुरुपयोग करना सरासर धोखा है।

जनता की संपत्ति नहीं बेच रहे
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने आरोपों के जवाब में कहा कि मेडिकल कॉलेज पर जैसे कयास लगाए जा रहे हैं, वे सब निराधार हैं। यह प्रदेश के एक मेडिकल कॉलेज और सैकड़ों छात्रों के भविष्य को बचाने का प्रयास है। मुख्यमंत्री ने लिखा, अगर जनहित का सवाल होगा तो सरकार निजी मेडिकल कॉलेज भी खरीदेगी और नगरनार का संयंत्र भी। हम उनकी तरह जनता की संपत्ति बेच नहीं रहे हैं।

राज्यपाल खुद सक्रिय रहीं
चंदूलाल चंद्राकर मेडिकल कॉलेज की मान्यता 2018 में ही रद्द हो चुकी है। यहां के छात्र अपने भविष्य को लेकर परेशान हैं। उन्होंने कई बार राज्यपाल अनुसूइया उइके से मुलाकात की। राज्यपाल भी कई बार मुख्यमंत्री से इस समस्या के समाधान निकालने की बात बोल चुकी हैं। अभी 13 जुलाई को भी मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच इस पर चर्चा हो चुकी थी।

अधिग्रहण में कोई दिक्कत नहीं
मैं भरोसा दिलाता हूं कि कॉलेज का अधिग्रहण और उसके बाद किसी तरह की देनदारी-लेनदारी में कोई दिक्कत नहीं होगी।
-टीएस सिंहदेव, स्वास्थ्य मंत्री