रहीम खान- भरवेली (स्वतंत्र पत्रकार)
बालाघाट: इसे विडम्बना कहे या दुर्भाग्य की एक ओर राजनेता विकास में प्रगति के मुद्दे पर जब चर्चा करते है तो कहते है कि इस कार्य में दलगत भावना से ऊपर उठकर कार्य होना चाहिये। लेकिन जब बात वास्तविक चर्चा की आती है तो वहां पर राजनीतिक विचारधारा हावी हो जाती है। और विपक्षी नेताओं को पूरी तरह से उपेक्षित करके अपने लोगों को प्राथमिकता दी जाती है। कुछ यही स्थिति 18 अगस्त को बालाघाट जिले के इतिहास में दूसरी बार आयोजित इन्वेस्टर समिट कार्यक्रम में देखने मिली। जहां पर 72 उद्योगों और 450 करोड़ रूपये से मिलेगा 7000 से अधिक रोजगार की बातों का दावा किया गया है। यह सपना कब सच होगा यह तो आने वाला समय बता पायेगा। क्योंकि 23 फरवरी,2014 को भी नगर के इसी हाल में एक इन्वेस्टर समिट आयोजित की गई थी जिसमें लाखों रूपये खर्च किये गये थे। पर 7 साल बाद भी उसका परिणाम जमीन पर देखने नहीं मिला। इतना ही नहीं इसके पूर्व भी प्रदेश के अन्य स्थानों पर इसी प्रकार की समिट राज्य सरकार द्वारा आयोजित की गई थी पर उसके परिणाम क्या निकले इसका कोई अता-पता आज तक नहीं है। इसलिये बालाघाट में आयोजित कार्यक्रम कितना सार्थक साबित होगा, अभी इसके समक्ष प्रश्न चिन्ह है। इस इन्वेस्टर समिट की महत्वपूर्ण बात यह रही कि इसमें मैंगनीज से संबंधित अनेक प्रस्ताव पारित किये गये, परन्तु इसे जानबूझकर की गई गलती कहे या कोई राजनीतिक दबाव जिसके चलते वारासिवनी विधानसभा क्षेत्र के निर्दलीय विधायक और वर्तमान मध्यप्रदेश खनिज विकास निगम के अध्यक्ष प्रदीप जैसवाल को इस कार्यक्रम में आमंत्रित ही नहीं किया गया। जबकि इस समय वह राज्य सरकार के कैबिनेट स्तर के दर्जा प्राप्त निगम अध्यक्ष है। क्या कलेक्टर को यह नहीं मालूम है कि निगम अध्यक्ष सत्ताधारी राज्य सरकार के एक संवेधानिक पद पर पदस्थ है ? क्या उनके आने से कार्यक्रम में किसी का पद बौना हो रहा था जिसके कारण उन्हें आमंत्रित नहीं किया गया। एक तरफ बात विकास की जाती है दूसरी तरफ पार्टी के ही संवैधानिक पद पर बैठे पदाधिकारी की खुली उपेक्षा की जाती है। महत्वपूर्ण बात तो यह है कि जब आप एक राजनैतिक दल के संगठन पदाधिकारियों को बुला रहे है तो यह जरूरी नहीं है कि विधानसभा चुनाव में जनता के द्वारा चुने गये निर्वाचित जनप्रतिनिधियों को भी बुलाओं। पूरा कार्यक्रम ही मुट्टीभर लोगों के इर्दगिर्द ही सिमटा नजर आ रहा था।
उल्लेखित है कि जैसवाल ने भाजपा सरकार के उस समय अपना समर्थन दिया जब उसके पास विधायकों की कमी थी। किंतु उप चुनाव में पूर्ण बहुमत आने के पश्चात भी सरकार ने उन्हें इसलिये नहंी हटाया कि क्योंकि वह बुरे समय में सरकार के साथ खड़े थे। इसी के तहत उन्हें खनिज विकास निगम का अध्यक्ष का पद दिया गया है। पूर्ण रूप से यह गलती जानबूझ कर की गई है। जिसका जवाब देर सबेरे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के समक्ष जिला कलेक्टर को तो देना ही होगा । दूसरी गलती बालाघाट जिले में अन्य दल के तीन विधायक है उनको भी इस जनहितैषी कार्य में आमंत्रित करना था। भले ही वह भाजपा के विधायक नहीं थे। किंतु उनको भी इस कार्यक्रम से दूर रखा गया। एक तरफ आप करोड़ों रूपये के जिले के विभिन्न स्थानों पर उद्योग लगाने की बात करते है दूसरी तरफ उसी क्षेत्र के वर्तमान जनप्रतिनिधियों की उपेक्षा करने में भी पीछे नहीं रहते। ऐसे भेदभाव से परिपूर्ण सोच को देखकर समझ आता है कि यह कार्य कितने साफ नियत के साथ किया गया है। आज आपने जिन विधायकों को कार्यक्रम में नहीं बुलाया कल उनके क्षेत्र में जाकर कारखाना लगाने की सोचेगें और जब वह आपका विरोध करेगें तो आपको सारा कार्यक्रम धरा का धरा रह जायेगा। ये कैसी विकास की सोच है जिसकी नींव में ही भेदभाव छुपा हो वहां बहुत कुछ बेहतर होने की आप कल्पना भर कर सकते है। खनिज निगम अध्यक्ष को नहीं बुलाने से आम जनता के बीच नकारात्मक संदेश गया कि जरूर कोई न कोई साजिश या षडयंत्र के तहत उनको इससे दूर रखा गया है। अगर वह राज्य सरकार के अंग नहीं होते तब सवाल खड़े नहीं होते। लेकिन वह भाजपा सरकार के अंग है और उनके क्षेत्र में यह कार्यक्रम हो रहा है और उनको ही आप बैनर फ्लैक्स के साथ कार्यक्रम से दूर रख रहे है जो कहीं भी न्याय संगत नहीं है। फिलहाल इस कार्यक्रम के बहाने एक बात साफ हो गई कि बालाघाट जिले में कितनी शासकीय भूमि खाली पड़ी है और उसका उपयोग अब नियमों के सहारे कैसे किया जा सकता है