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द्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से एमपी की 100 विधानसभा सीटों पर क्या होगा असरद्रौपदी मुर्मू के राष्ट्रपति बनने से एमपी की 100 विधानसभा सीटों पर क्या होगा असर




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द्रौपदी मुर्मू के रूप में देश को पहली जनजातीय राष्ट्रपति पर मिल गई हैं. भाजपा के इस दांव का देश के कई राज्यों में विपक्ष भी प्रबल विरोध नहीं कर पाया है.भाजपा ने एमपी के संदर्भ में जो चुनावी फायदा तय किया होगा, उसकी छोटी झलक तो राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग के जरिए नजर आ ही गई. अब देखना होगा विधानसभा चुनाव में सौ सीटों पर इस निर्णय का कितना असर होगाा.

देश को पहली जनजातीय राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के तौर पर मिल गई. भाजपा के इस दांव का देश के कई राज्यों में विपक्ष भी प्रबल विरोध नहीं कर पाया. जनजातीय समाज के किसी व्यक्ति को देश का सर्वोच्च पद मिलना पूरे समाज के लिए गौरव की बात है. ये तब और दिखा जब कई राज्यों में राष्ट्रपति चुनाव के लिए पार्टी लाइन से हटकर क्रॉस वोटिंग भी हुई. मध्य प्रदेश में कई कांग्रेसी विधायकों  ने विपक्ष के राष्ट्रपति उम्मीदवार को वोट करने के बजाय द्रौपदी मुर्मू के पक्ष में ही मतदान किया. ये क्रॉस वोटिंग बहुत सामान्य घटना नहीं है. पार्टी के साथ महज बेईमानी इसे आप कह नहीं सकते. ये अपनी जाति,अपने समुदाय, अपने समाज के प्रति समर्पण की एक बानगी है.

द्रौपदी जी का मध्य प्रदेश से कोई ताल्लुक कभी नहीं रहा. वे पहली बार एमपी आई भीं तो राष्ट्रपति पद के उमीदवार बतौर समर्थन जुटाने. भाजपा ने पूरा प्रयास किया कि इस आगमन को जनजातीय अस्मिता से जोड़ दिया जाए. कई बड़े नेता जब उनसे मिलने गए तो उन्होंने पारंपरिक जनजातीय परिधान पहने हुए थे. संगीत भी वही बजाया गया जो जनजातीय समाज बजाता है. यानी भाजपा ने एमपी के संदर्भ में जो चुनावी फायदा तय किया होगा, उसकी छोटी झलक तो राष्ट्रपति चुनाव में क्रॉस वोटिंग के जरिए नजर आ ही गई.

अब जरा विधासनभा चुनावों के संदर्भ में बात करें तो एमपी की तकरीबन 47 विधानसभा सीटें जनजातीय समाज के आरक्षित हैं और लगभग इतनी ही सीटों पर भले ही आरक्षण उनके लिए न हो लेकिन फिर भी उनकी संख्या बहुत है. यानी 94 सीटों पर तो इस समाज का अच्छा खासा प्रभाव है. पिछली बार तो जनजातीय समाज ने कांग्रेस से लगभग इतनी ही सीटों पर अपना कैंडिडेट मांग भी लिया था. ये और बात है कि उनकी मांग पूरी नहीं हुई. फिर भी कांग्रेस को इस समाज का जमकर समर्थन मिला. कांग्रेस को भले ही बहुमत न मिला हो लेकिन कुल मिली 114 सीटों में मंडला, डिंडोरी, उमरिया, अनूपपुर, बालाघाट, छिंदवाड़ा, शहडोल, झाबुआ, अलीराजपुर, बड़वानी, धार जिलों के आदिवासी वोटर का अच्छा आशीर्वाद मिला था. भाजपा की चिंता भी यही समाज है..

भाजपा और संघ दोनों इस बात को लेकर चिंतित हैं कि इतनी मेहनत और प्रयास के बाद भी जनजातीय समाज में पार्टी की वैसी पकड़ क्यूं नहीं बन पा रही है, जैसी बनना चाहिए थी. बीते दिनों भोपाल के हबीबगंज के विश्व स्तरीय रेलवे स्टेशन का नाम गौंड रानी कमलापति के नाम पर किए जाने की वजह भी यही थी. इसके पहले जबलपुर में आदिवासी राजा संग्राम शाह, शंकरशाह की स्मृति में हुए कार्यक्रम में गृह मंत्री अमित शाह भी इसी वजह से पहुंचे थे. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई तरह की घोषणाएं भी इस समाज के लिए पिछले दिनों की हैं.

इन सबके बावज़ूद ये जनजातीय समाज अभी भी भाजपा के लिए कमज़ोर कड़ी बना हुआ है. दिलचस्प ये है कि भाजपा ने इस समाज से आने वाले कई नेताओं को कंद्रीय मंत्री से लेकर संगठन में तक कई-बड़े पद देकर रखे हैं. फग्गन सिंह कुलस्ते, ओम प्रकाश धुर्वे, सुमेर सिंह सोलंकी, विजय शाह, बिसाहू लाल ये उन नेताओं के नाम हैं जो इसी समाज से आते हैं.

भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती है जयस नाम का संगठन. पिछले चुनाव में भी भाजपा ने उस पर दाने डालने की कोशिश की लेकिन वो भाजपा की बजाए कांग्रेस की तरफ झुक गया.  अब ये देखना दिलचस्प होगा कि द्रौपदी जी के राष्ट्रपति बनने के बाद भाजपा को इसका फायदा होगा या नहीं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये समाज गौरव का अनुभव तो कर रहा है कि उनके बीच का कोई व्यक्ति सर्वोच्च पद पर बैठा है. ये भावनाएं वोट में तब्दील होंगी या नहीं, इसी की फ़िक्र दोनों प्रमुख दलों को है.

ख़बर है कि एमपी में बड़े सरकारी कार्यक्रम जल्द कराए जा सकते हैं, जिनमें द्रौपदी जी को बतौर मुख्य अतिथि बुलाया जा सकता है. गैर राजनीतिक कार्यक्रम होने के बावजूद इससे जनजातीय समाज को जोड़ने में मदद तो मिलेगी ही. अब ये समाज जो भाजपा का वीकर सेक्शन कहा जाता था, क्या अब कांग्रेस, जयस या गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे दलों का साथ छोड़कर सिर्फ इस एक फैसले से भाजपा की तरफ मुड़ेगा या नहीं, यही सबसे बड़ा सवाल है और इसके जवाब के लिए 2023 तक इंतज़ार करना पड़ेगा.