जलवायु परिवर्तन (Climate Change) पर हुए नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह पता लगाने के प्रयास किया है कि दुनिया ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming) के लिए इंसान (Human Beings) कितने जिम्मेदार हैं. वैसे तो यह हमेशा ही बहस का विषय का रहा है कि जलवायु परिवर्तन के लिए इंसान कि कितनी भूमिका है. लेकिन नई रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके लिए इंसान ही जिम्मेदार है.
हाइलाइट्स
जलवायु परिवर्तन पिछले कई दशकों से बहुत ज्यादा प्रभावी हो गया है.
जलवायु परिवर्तन पिछले कई दशकों से बहुत ज्यादा प्रभावी हो गया है.
नई रिपोर्ट का कहना है कि इसके लिए इंसानी गतिविधियां ही जिम्मेदार हैं.
पृथ्वी की जलवायु में बदलाव एक प्राकृतिक प्रक्रिया है. इसमें हमारे ग्रह के औसत तापमान में बदलाव तक शामिल है पिछले कई दशकों से वैज्ञानिक इस बात से चिंतित हो रहे हैं कि पृथ्वी पर गर्मी (Heating of Earth) इस तरह से बढ़ रही है कि उसकी आवासीयता तक को खतरा हो गया है और इसके लिए मानवीय गतिविधियों (Anthropogenic activities) का ऐसा योगदान है जिससे पृथ्वी के लिए अपने तापमान को संतुलित रखना पाना मुश्किल होता जा रहा है और अगर यही हाल रहा तो इंसान का यहां रहना मुश्किल हो जाएगा. इस प्रक्रिया को जलवायु परिवर्तन (Climate Change) नाम देते हुए नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस बात की पड़ताल की है कि आखिर इसके लिए मानव कितना जिम्मेदार है.
ग्रीनहाउस गैसें की वजह से
वैज्ञानिकों ने अभी तक के शोधों में पाया है कि जलवायु परिवर्तन के लिए ग्रीन हाउ गैसें और उनमें भी विशेष तौर पर कार्बन डाइऑक्साइड जिम्मेदार है जो कि अधिकाशंतः जीवाश्म ईंधन के जलने के कारण पैदा होती है. पिछले 30 से भी ज्यादा सालों से सभी वैज्ञानिक जलवायु परिवर्तन के कारणों पर अलग-अलग तरह से अध्ययन कर पता लगा रहे हैं कि जलवायु परिवर्तन के क्या क्या कारण हैं और लगभग हर रिपोर्ट में एक ही वजह सामने आई है, वह है बढ़ता वैश्विक तापमान.
इंसान की ही वजह से
इतना ही नहीं वे अब और ज्यादा आश्वस्त होते जा रहा है कि जलवायु परिवर्तन का कारण मानवीय गतिविधियां ही हैं. उनकी ताजा रिपोर्ट में उन्होंने कहा है कि यह बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि मानव प्रभावों के कारण ही वायुमडंल, महासागर और जमीन गर्म हो रहे हैं. उल्लेखनीय है कि यह हमेशा से ही बहस का विषय का रहा है कि जलवायु परिवर्तन में मानव की कितनी भूमिका है.
बाकी कारकों को हटाएं तो
नेशनल एकेडमी ऑफ साइंटिस्ट के पूर्व अध्ययन स्वर्गीय राल्फ सिसरोन कह चुके हैं कि जलवायु परिवर्तन वास्तव में मानवजनित समस्या ही है और यह वैसी ही है जैसे कि सिगरेट जानलेवा होती है. प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के जलवायु वैज्ञानिक गैब वेची का कहना है कि इंसानों ने ही गर्मी फैलाई है इसे दर्शाने का एक तरीका यह है कि बाकी सारे कारकों को हटा कर देखा जाए.
क्या क्या गर्म कर सकता है पृथ्वी को
वैज्ञानिक यह गणना कर सकते हैं कि किन कारको की वजह से ऊष्मा पृथ्वी पर कैद हो सकती है और कम्प्यूटर सिम्यूलेशन की मदद से सटीकता से जलवायु का वर्तमान, इतिहास और भविष्य का आकलन कर सकती है और वे विकिरण का वाट प्रति वर्ग मीटर के रूप में इसका मापन करते हैं. पहले उन्हें यह जानने का प्रयास किया क्या सूर्य ही पृथ्वी की गर्म कर रहा है या नहीं.
कार्बन डाइऑक्साइड का अवशोषण
उन्होंने पाया कि सूर्यसामान्य रूप से 1361 वाट वर्ग प्रतिमीटर की ऊष्मा हर साल देता है और इससे पृथ्वी पर जीवन का बढ़िया संतुलन बना हुआ है. सूर्य से आने वाली रोशनी या ऊर्जा में बदलाव बहुत कम होता है. जो कि उसके विकरण का दसवें हिस्से से ज्यादा नहीं होता है. लेकिन अमेरिका की पर्यावरण संरक्षण एजेंसी के मुताबिक जीवाश्व ईंधन से जल कर बनी कार्बन डाइऑक्साइड अब 2.07 वाट प्रति वर्ग मीटर ऊष्मा अवशोषित कर रही है.
सूर्य नहीं जिम्मेदार
कार्बनडाइऑक्साइड का अवशोषण सूर्य के विकिरण के बदलाव का 20 गुना ज्यादा है जबकि मीथेन 0.5 वाट प्रतिवर्ग मीटर की दर से अवशोषण करता है. सूर्य का सौरचक्र 11 साल तक चलता है लेकिन इसका भी पृथ्वी के तापमान पर असर दिखाई नहीं देता है. यानि कुल मिलाकर ग्लोबल वार्मिंग में सूर्य की भूमिका नहीं है.
एक अन्य कारक ज्वालामुखी और खगोलीय विकिरण हो सकते हैं. लेकिन वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पिछले 150सालों में उनकी भी वार्मिंग में नगण्य भूमिका है. जब कार्बन डाइऑक्साइड पर ध्यान दिया जाता है तो वैज्ञानिक पाते हैं जीवाश्वम ईंधन से पैदा होने वाला कार्बन 12 वाला कार्बनडाइऑक्साइड वायुमंडल में ज्यादा मात्रा में पहुंच रहा है. इससे साफ जाहिर है कि वार्मिंग का जिम्मेदार मानवजनित गतिविधियां ही हैं.
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