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बारूद से भरी ट्रेन लेकर पाकिस्‍तान में घुस गया था ये जांबाज, लड़ाकू विमान भी नहीं बिगाड़ पाए थे कुछ




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(भारत और पाकिस्‍ताान के बीच पिछले काफी दिनों से तनातनी का माहौल है. पुलवामा हमले से लेकर भारतीय सेना द्धारा की एयर स्‍ट्राइक. उसके बाद से लगातार दोनों देशों के बीच हालात बेहद खराब हैं. ऐसी स्‍थितियों में एक शख्‍स हैं, जो दुश्‍मन देश  की सरजमीं पर  जाकर उनसे दो-दो हाथ करने की ताकत रखते हैं. उनकी उम्र भले ही 83 वर्ष की हो लेकिन उनके हौसलो में कोई कमी नहीं है. उनका कहना है कि अगर उनको मौका मिले तो वे आज भी दुश्‍मनों को मात दे सकते हैं. हम बात कर रहे हैं वीर चक्र से सम्‍मानित उदयपुर निवासी रेलवे  पायलट दुर्गाशंकर पालीवाल की, जिन्‍होंने 1971 के पाकिस्तानी हवाई हमले में काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

उस वक्‍त जब समय भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सीमा में करीब 30 किलोमीटर तक कब्ज़ा कर लिया था और जब सेना का असलहा खत्‍म होने को आया था तब बारूद और असलहा उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी दुर्गाशंकर पालीवाल को दी गई थी. उन्‍होंने भारतीय सेना को सीमा के उस पार जाकर असलहा और बारूद पहुचानें का काम किया था. कैसे किया था उन्‍होंने ये सबकुछ आइए जानते हैं उनकी ही जुबानी… )

ये 1971 के युद्ध की बात है. भारत और पाक के बीच ये जंग 3 दिसंबर को शुरू हुई थी और पूरे 13 दिन तक चली थी. इसी दौरान 11 दिसंबर को भारतीन सेना को बारूद और हथियारों की जरूरत थी. दुश्‍मन देश के भीतर घुसकर सेना को ये चीजें उपलब्‍ध करवानी थी. ऐसे में 11 दिसंबर को ये टास्‍क मुझे दिया गया था.ऑफिसर ने बताया कि बारूद और हथियार से भरी ट्रेन की लेकर मुझे दुश्‍मन देश पाकिस्‍तान में जाना है और वहां हथियारों की सप्‍लाई करके अपने देश लौटना था.

दुर्गाशंकर पालीवाल

इस काम के लिए मुझे सिर्फ 12 घंटे दिए गए थे. मैं निकल पड़ा. 25 बोगी वाली ट्रेन लेकर पाकिस्तानी सीमा में प्रवेश करना था. यहां मुझे बाड़मेर के समीप मुनाबाव रेलवे स्टेशन होते हुए पाकिस्तान के खोखरापार और फिर परचे की बेरी रेलवे स्टेशन तक पहुंचना था.  ये सब कुछ इतना आसान नहीं था, क्‍योंकि हालात उस वक्‍त बेहद खराब थे. कभी भी कुछ भी हो सकता था. कहीं से भी कोई गोलीबारी या बमबारी हो सकती थी लेकिन मैं डरा नहीं, क्‍योंकि सोच लिया था अब तो चाहें कुछ हो जाए. मुझे पीछे नहीं मुड़ना है. बस इसलिए आगे बढ़ता रहा. अब तक रात के 12 बज चुके थे. मैं पाकिस्‍तान के बॉर्डर के आगे खोखरापर पहुंच गया था. यहां मुझे ऑफिसर ने 27  किलोमीटर और परचे की बेरी स्‍टेशन पहुंचने के बारे में बताया.

मैं दोबारा निकल पड़ा. इस दौरान पाकिस्तानी सीमा में खोखरापर से कुछ ही दूरी पर एक विमान दिखा जो की मेरी ट्रेन पर नज़र रख रहा था. ज़रा सी देरी में वो विमान फिर से पाकिस्तान की ओर लौट गया. लेकिन वह विमान खतरा भांप चुका था और सुबह 6 बजे छह मिराज विमान मौके पर पहुंच कर बमबारी करने लगे. इन विमानों ने मेरी  ट्रेन को घेर लिया था लेकिन मैं एक पल के लिए भी घबराया नहीं. मैंने अपनी ट्रेन की रफ़्तार बढ़ा दी और सिंध हैदराबाद की ओर जाने लगा. पाकिस्तानी विमानों ने कई बम गिराए लेकिन गनीमत ये रही कि  ट्रेन को कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाए.

दुर्गाशंकर पालीवाल

इसी तरह से विमानों में भी बम खत्म हो गए थे और रीलोड करने के लिए वे सिंध हैदराबाद की ओर उड़ान भरते हुए निकल गए. इस समय मैंने रिवर्स में ट्रेन को 25 किलोमीटर तक खींच ले गया और परचे की बेरी पहुंचकर अपने बटालियन को भी घटना की सूचना दे दी. बटालियन ने करीब 15 मिनट में पूरी ट्रेन का माल खाली कर दिया और एंटी एयरक्राफ्ट मिसाइल रिलोड कर दी.

वहां से लौटते हुए फिर से पाकिस्तानी विमानों ने मेरी ट्रेन का एक बार फिर पीछा किया और खोखरापर से 5 किलोमीटर से पहले रेल लाइन पर एक हज़ार पौंड का बेम फेंक दिया. इस बम से निकलती हुई चिंगारियों से मेरा हाथ और मुंह भी जल गया था लेकिन उसकी परवाह किये बिना मैं बस अपनी कोहनियों से ट्रेन चलाना जारी रखा.

एक वक्‍त के बाद हाथ में बन्दूक लेकर  मैं ट्रेन से निकल गया और और करीब 2 किलोमीटर आगे उन्होंने भारतीय वायुसेना का हेलीकॉप्टर को इशारा कर उतरवाया और अधिकारी को सूचना दे दी.अब तक मेरा टॉस्‍क पूरा हो चुका था, लेकिन हां मेरी तबियत खराब हो चुकी थी. मुझे फौरन हॉस्‍पटिल में एडमिट कराया गया. मगर सारी तकलीफ उस वक्‍त खत्‍म हो गई, जब मुझे राष्‍ट्रपति से सम्‍मानित होने के बारे में सूचना मिली. आखिरकार 30 अक्टूबर 1972 को वो दिन आया और राष्ट्रपति वीवी गिरी ने वीरचक्र से सम्मानित किया.

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