शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में अमेरिका को दो भारतीय मामले में हस्तक्षेप ना करने को कहा है। सामना में छपे लेख में कहा गया है कि अमेरिका भारते के मामलों में अपनी नाक ना घुसेड़े। दरअसल अमेरिका के विदेश विभाग ने हाल ही में कहा था कि भारत में धर्म के नाम पर हिंसा बढ़ गई है और हिंदू संगठन अल्पसंख्यकों और मुसलमानों पर हमले कर रहे है। यह रिपोर्ट अमेरिका के विदेश विभाग ने तैयार की थी, जिसमे कहा गया है कि मोदी सरकार इन हमलों को रोकने में नाकाम रही है। अमेरिका के विदेश विभाग की इसी रिपोर्ट पर शिवसेना के मुखपत्र सामना में तीखा पलटवार किया गया है।America has wrong perception
खुद को दुनिया का पालनहार मानता है अमेरिका
सामना में छपे लेख का शीर्षक है अमेरिकी चुगलखोरी, जिसमे लिखा गया है कि अमेरिका में सरकार किसी भी क्यों ना हो, लेकिन ये लोग खुद को दुनिया का पालन हार मान लेते हैं। उन्हें लगता है कि वो ही एकमात्र सत्ता हैं और पूरी दुनिया की होशियारी इन लोगों के पास है, ये खुद को लोगों को सीख देने वाला स्वघोषित ठेकेदार मानते हैं। हर अमेरिकी सत्ताधारी को ऐसा लगता है कि उनके पास ही दुनिया का ठेका है। ऐसे में अगर भारत में अल्पसंख्यकों और मुसलमानों की सुरक्षा को लेकर ट्रंप सरकार के विदेश विभाग को चिंता है, लेकिन इसकी बिल्कुल भी जरूरत नहीं है।
मगरमच्छ के आंसू
सामना में लिखा है कि जब पहले देश में गोमांस रखने की खबरें सामने आई थी तो उस वक्त भी अमेरिका ने मगरमच्छ के आंसू बहाए थे। देश की सरकार को कटघरे में खड़ा किया था। इंटरनेशनल रिलिजियस फ्रीडम इंडिया 2018 की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2015-2017 के बीच भारत में जातीय हिंसा 9 फीसदी बढ़ी है और 822 घटनाओं में कुल 111 लोगों की मौत हुई है। इस रिपोर्ट को अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने तैयार किया है। अमेरिका के पास दिव्य दृष्टि है, यही वजह है कि इन लोगों को छोटे देशों में होने वाले मानवाधिकार उल्लंघन के मामले घर बैठे पता चल जाते हैं लेकिन ईराक में रासायनिक हथियारों के नाम पर इन लोगों ने जो किया उसे हर कोई जानता है।
इराक का जिक्र
सामना के संपादकीय में लिखा है कि ईराक में रासायनिक हथियार थे या नहीं इसकी पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन इसकी आड़ में पूरे इराक को बर्बाद कर दिया गया। सद्दाम हुसैन को फांसी पर लटका दिया गया। लेख में वियतनाम, अफगानिस्तान, अरब स्प्रिंग का भी जिक्र करते हुए अमेरिका पर निशाना साधा गया है। इसमे कहा गया है कि इन तमाम देशों के मामलों में अमेरिका ने अपनी नाक घुसे़ड़ी थी। लेख में कहा गया है कि अमेरिका भारत के मामलों में भी अपनी नाक घुसेड़ने की कोशिश कर रहा है। भारत ने अमेरिका के दबाव पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया यही वजह है कि ट्रंप तिलमिलाए हैं।
अमेरिका को हस्तक्षेप की इजाजत नहीं
संपादकीय मे लिखा गया है कि आखिर अमेरिका को भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने की इजाजत किसने दी। अमेरिका को हिंदुस्तान के मामलो में हस्तक्षेप करना छोड़ देना चाहिए। अमेरिका की गुप्तचर विभाग के प्रमुख डेन कोट्स ने कहा था कि भारत में चुनाव के दौरान जातीय हिंसा हो सकती है, लेकिन बंगाल को छोड़ पूरे देश में शांतिपूर्ण चुनाव हुए। ऐसे में ट्रंप सरकार को खुद की स्थिति का आंकलन करना चाहिए, बजाए इसके कि वह भारत के मामलों में हस्तक्षेप करे।