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अरब यात्री इब्न बतूता ने हिंदुस्तान में चखा समोसा, जानिये क्या था समोसे का इतिहास




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42 वर्ष के हरिशंकर दूबे, नोएडा में समोसे बेचते हैं. समोसे से होने वाली कमाई से ही परिवार का भरण-पोषण होता है. बस्ती के रहने वाले हैं. खोड़ा में कमरा किराये पर लेकर रहते हैं.उन्हें नहीं पता कि समोसा कहां से हिंदुस्तान आया जबकि पिछले चार वर्षों से समोसा बनाने व बेचना ही उनका व्यवसाय है. हरिशंकर को यह भी नहीं पता कि समोसा आखिर तिकोना ही क्यों बनता है, बचपन से ही समोसे को तिकोना देखा, व जब समोसा बनाने प्रारम्भ किए तो तिकोना ही बनाया. हरिशंकर दूबे की ही तरह कई समोसे बेचने, बनाने वसमोसे खाने वालों को नहीं पता कि समोसा कहां से हिंदुस्तान आया व कैसे हमारे स्वाद में मिलकर बच्चों से लेकर बड़ों तक का पसंदीदा बन गया.

कहां से हिंदुस्तान आया समोसा?
समोसा, ईरान से हिंदुस्तान आया व भारतीय स्वाद में घुल-मिल गया. रेहड़ी एवं फुटपाथ से लेकर बड़े-बड़े होटलों की दहलीज पर इतराने लगा. हर भारतीय घर के स्वाद में चटखारे मारने लगा. बच्चों से लेकर बूढ़ों तक के दिल का अजीज पकवान बन गया. छुट्टी हो या पिकनिक, अतिथि आए हों या दोस्त, समोसे के स्वाद के बिना कोई भी पार्टी पूरी नहीं होती. सभा हो या संगोष्ठी चाय के साथ समोसा ही भाता है.

अपने इर्द-गिर्द देख लीजिए कोई ऐसा मार्केट नहीं जहां आपको मुस्कराता समोसा न दिखें.गर्मागर्म ऑयल में तलता समोसा अपनी तरफ न खींचे. लेकिन आपका यह समोसा भारतीय नहीं है बल्कि दूर देश से हिंदुस्तान आया हुआ है. 

लेखन में समोसे का जिक्र?
लेखन में समोसे का जिक्र कई सौ वर्ष पहले से मिलता है. बताया जाता है कि सबसे पहले समोसे का जिक्र ईरान के इतिहासकार अबुल फाजी बेहकी (995-1077 ई। ) ने किया. उन्होंने समोसे का वर्णन ‘समबुश्क’ एवं ‘समबुस्ज’ नाम से किया. मुस्लिम व्यापारी समोसे को हिंदुस्तान लाए. यह 13वीं एवं 14वीं शताब्दी का दौर था जब समोसा व्यंजन हिंदुस्तान आया व इस डिश को मुस्लिम राजवंशों का सरंक्षण मिला. यह उनके प्रिय पकवान में शामिल हो गया.
 

अरब यात्री इब्न बतूता ने हिंदुस्तान में चखा समोसा
मशहूर सूफी संत धनी खुसरो ने भी अपनी रचनाओं में समोसे को लेकर दिल्ली के सुल्तान के प्यार का जिक्र किया है. अरब यात्री इब्न बतूता ने भी सबसे पहले समोसा हिंदुस्तान में ही चखा व इसके स्वाद से मुरीद होकर अपनी यात्रा संस्मरण में समोसे का जिक्र ही कर डाला.

इब्न बतूता 14वीं शताब्दी में हिंदुस्तान आए व उन्होंने मोहम्मद बिन तुगलक के दरबार में समोसे का स्वाद चखा. उन्होंने इस पकवान का जिक्र समबुश्क नाम से किया. उन्होंने लिखा कि कैसे कीमा के साथ बादाम, पिस्ता व अखरोट वाला समोसा उन्हें परोसा गया. धनी खुसरो ने तो एक कहावत ही कह डाली- समोसा क्यों नहीं खाया? जूता क्यों न पहना.अंग्रेज जब हिंदुस्तान आए तो उन्होंने भी इस पकवान का स्वाद यहीं चखा. हालांकि ऐसा नहीं है कि समोसा सिर्फ हिंदुस्तान में ही बनता है लेकिन पाक को छोड़कर, भारत की तरह समोसा शायद ही दुनिया के किसी दूसरे देश में बनता हो. पुर्तगाल, ब्राजील व मोजाम्बिक में ‘समोसा’ पेस्ट्री की तरह बनता है.

ईरान से भारत आने वाला समोसा 20वीं शताब्दी तक कई तरह से बदल चुका है. अब आपको मार्केट में कई तरह के समोसे मिल जाएंगे. पहले अरब में बनने वाले समोसे में मांस, प्याज, पालक व पनीर पड़ता है. हिंदुस्तान में भी यह इसी रूप में आया लेकिन कालांतर में हिंदुस्तान में समोसे के भीतर आलू व मटर भरा जाने लगा. व इसके बाद समोसा इसी रूप में गांव, कस्बों व शहरों में मशहूर हो गया. समोसा कैसे तिकोना हुआ, इस बात का जिक्र कहीं नहीं मिलता है.