भविष्य में क्या होगा? इसके प्रति जिज्ञासा बेहद आम है. लेकिन दुनिया में जितनी जिज्ञासा नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों ने जगाई है उतनी शायद ही किसी और भविष्यवेत्ता की भविष्यवाणियों ने पैदा की हो.
नास्त्रेदमस की मौत 453 साल पहले 2 जुलाई 1566 को हुई थी. लेकिन उनकी भविष्यवाणियों पर आज भी शोध होते हैं और चर्चा होती है. आज भी 450 साल पहले पहेलियों में लिखी गई उनकी भविष्यवाणियों को लोग मौजूदा घटनाओं से जोड़कर देखते हैं. फिर चाहे वह नरेंद्र मोदी का दोबारा प्रधानमंत्री बनना हो या फिर दूसरे भविष्यवेत्ताओं की तरह 2019 में विनाश के संकेत की भविष्यवाणी.
कौन थे नास्त्रेदमस?
सैकड़ों साल बाद की भविष्यवाणी करने के लिए मशहूर नास्त्रेदमस का जन्म 14 दिसम्बर 1503 को फ्रांस के एक छोटे से गांव सेंट रेमी में हुआ था. उनका नाम मिशेल दि नास्त्रेदमस था. बचपन से ही उनकी अध्ययन में खास दिलचस्पी रही. उन्होंने लैटिन, यूनानी और हीब्रू भाषाओं के अलावा गणित, शरीर विज्ञान और ज्योतिष शास्त्र जैसे गूढ़ विषयों पर विशेष महारत हासिल कर ली थी.
नास्त्रेदमस ने किशोरावस्था से ही भविष्यवाणियां करना शुरू कर दी थीं. ज्योतिष में उनकी बढ़ती दिलचस्पी ने माता-पिता को चिंता में डाल दिया क्योंकि उस समय कट्टरपंथी ईसाई ज्योतिष विद्या को अच्छी नजर से नहीं देखते थे. ज्योतिष से उनका ध्यान हटाने के लिए उन्हें मेडिकल साइंस पढ़ने मांट पेलियर भेज दिया गया.
कहते हैं कि डॉक्टरी की पढ़ाई के दौरान उनके शहर में प्लेग की बीमारी फैली, जिसकी वजह से उन्होंने पढ़ाई बीच में छोड़ दी और बीमारों की देखभाल करने लगे. बाद में उन्होंने अधूरी पढ़ाई पूरी कर डिग्री हासिल की. कुछ साल बाद एक बार फिर प्लेग की महामारी फैली, जिसमें उनकी पत्नी और बच्चे की मौत हो गई. नास्त्रेदमस को इस झटके से उबरने में लगभग 10 साल लग गए. इस दौरान वह फ्रांस, इटली और स्पेन में शहर दर शहर भटकते रहे.ऐसा कहा जाता है कि- एक बार नास्त्रेदमस अपने मित्र के साथ इटली की सड़कों पर टहल रहे थे, उन्होनें भीड़ में एक युवक को देखा और जब वह युवक पास आया तो उन्होंने उस युवक को आदर से सिर झुकाकर नमस्कार किया. मित्र ने हैरान होते हुए इसका कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि यह व्यक्ति आगे जाकर पोप का आसन ग्रहण करेगा. वास्तव में वह व्यक्ति फेलिस पेरेती था, जिन्हें 1585 में पोप चुना गया.
नास्त्रेदमस के बारे में ऐसी कई कहानियां हैं, लेकिन इनमें से किसी के लिए कोई सबूत नहीं है.
पहेलियों में करते थे भविष्यवाणी
ऐसा कहा जाता है कि नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों के बारे में जब फ्रांस की महारानी कैथरीन को पता चला, तो उन्होंने अपने बच्चों का भविष्य जानने के लिए नास्त्रेदमस को बुलाया. लेकिन नास्त्रेदमस ज्योतिष शास्त्र से यह जान चुके थे कि महारानी के दोनों बच्चे अल्पायु में ही गुजर जाएंगे. ऐसी स्थिति में वह सच कहने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. तब उन्होंने अपनी बात को पहेलियों के जरिए पेश किया. इस तरह वह अपनी बात भी कह गए और महारानी के मन को कोई चोट भी नहीं पहुंची. तभी से नास्त्रेदमस ने यह तय कर लिया कि वे अपनी भविष्यवाणियां इसी तरह पहेलियों में ही जाहिर करेंगें.
1550 के बाद नास्त्रेदमस ने डॉक्टरी के पेशे को छोड़ अपना पूरा ध्यान ज्योतिष विद्या की साधना में लगा दिया. उसी साल से अन्होंने अपना वार्षिक पंचांग भी निकालना शुरू कर दिया. उसमें ग्रहों की स्थिति, मौसम और फसलों आदि के बारे में पूर्वानुमान होते थे. कहा जाता है कि उनमें से ज्यादातर भविष्यवाणियां सही साबित हुईं.
नास्त्रेदमस ने 1555 में अपने पहेलियों के जरिए साल 2019 में किसी बड़े वैश्विक संघर्ष का इशारा कर दिया था. नास्त्रेदमस ने लिखा था-
“In the city of God, there will be a great thunder
Two brothers torn apart by Chaos while the fortress endures
The great leader will succumb
The third big war will begin when the big city is burning”
नास्त्रेदमस ने 1555 में भविष्यवाणियों से संबंधित अपने पहले ग्रंथ ‘सेंचुरी’ का पहला भाग पूरा किया, जो सबसे पहले फ्रेंच और बाद में अंग्रेजी, जर्मन, इटालवी, रोमन, ग्रीक भाषाओं में प्रकाशित हुआ.नास्त्रेदमस की ‘सेंचुरीज’ किताब ने उन्हें यूरोप के साथ-साथ पूरी दुनिया में मशहूर कर दिया. उसके बाद उन्होंने आने वाले सैकड़ों सालों के पंचांग बनाए. ‘सेंचुरीज’ में कुल मिलाकर दस सेंचुरी हैं. यहां सेंचुरी का मतलब शताब्दी नहीं है, बल्कि 100 पहेलियों के संकलन को एक सेंचुरी कहा गया है. किसी एक सेंचुरी में पूरी 100 पहेलियां न होने के कारण कुल पहेलियों की संख्या 943 है.
इस किताब के कुछ व्याख्याकारों का मानना है कि इस किताब के कई पहेलियों में प्रथम विश्व युद्ध, नेपोलियन, हिटलर और कैनेडी आदि से संबंधित घटनाएं स्पष्ट रूप से देखी जा सकती हैं. व्याख्याकारों ने नास्त्रेदमस के कई पहेलियों में तीसरे विश्वयुद्ध का पूर्वानुमान और दुनिया के विनाश के संकेत को भी समझ लेने का दावा किया है.हालांकि, ज्यादातर शैक्षणिक और वैज्ञानिक संस्थानों से जुड़े लोगों का कहना है कि ये व्याख्याएं गलत अनुवाद या गलतफहमी का परिणाम हैं और कुछ गलतियां तो जानबूझकर भी की गईं हैं.
वो भविष्यवाणियां जो ‘सच’ हुईं
बता दें, नास्त्रेदमस की भविष्यवाणियों को मानने वालों ने ‘सेंचुरीज’ में दर्ज भविष्यवाणियों का भावार्थ किसी घटना के होने के बाद उससे जोड़कर देखने की कोशिश की है.
मिसाल के तौर पर एक पहेली है- ‘इटली के नजदीक एक राजा पैदा होगा, जिससे राज्य को काफी नुकसान होगा, वो किसी के साथ रिश्ते (राजनीतिक) बनाएगा, तो वो राजा कम और कसाई ज्यादा नजर आएगा.’ नास्त्रेदमस ने उसका नाम पोउ-ने-लोरोन बताया है. अक्षरों का क्रम बदलकर देखने में यह नेपोलियन जैसा बनता हुआ दिखता है.
उसने आगे लिखा, ‘छोटे बालों वाला सत्ता हथिया लेगा, उस समुद्री शहर में जिस पर दुश्मनों का कब्जा होगा, वो अपने दुश्मनों को निकाल बाहर करेगा, 14 सालों तक शासन करेगा.’ आश्चर्यजनक रूप से ये बातें नेपोलियन की जिंदगी से मिलती हैं.
इसी प्रकार, कुछ पहेलियों को हिटलर और सत्रहवीं सदी में लगी लंदन की आग से जोड़कर देखा गया है. उसने कहा था कि दुनिया 3 एंटी-क्राइस्ट यानी ईसाइयत विरोधी लोगों से आतंकित रहेगी. पहले दो तो नेपोलियन और हिटलर माने गए हैं जबकि तीसरे के बारे में अब भी कयास ही लगाए जा रहे हैं. कुछ उसे मध्य एशिया में पैदा हुए ओसामा बिन लादेन या सद्दाम हुसैन मानते हैं, कुछ कहते हैं कि वह चीन या मंगोलिया से आएगा.
भारत के बारे में क्या भविष्यवाणियां कीं?
10वीं सेंचुरी की 75वीं एक पहेली है – ‘काफी इंतजार के बाद भी वो यूरोप नहीं आएगा, वो एशिया में अवतरित होगा, ईश्वर का अवतार होगा, पूर्व के सभी राजा उसकी सत्ता स्वीकारेंगे’. नास्त्रेदमस के पहेलियों की व्याख्या करने वाले इसे भारत से जोड़कर देखते हैं.
सेंचुरी 10 की 96वीं पहेली में कहा गया है – ‘सागर के नाम वाले धर्म की जीत होगी, अदुलउनकातिफ जाति के लड़के से, जिद्दी और रोने वाली जाति डरेगी, दोनों ही अलेफ और अलेफ के हाथों घायल होंगे.’
सागर के नामवाला धर्म तो हिंदू ही है, तो क्या इस पहेली में नास्त्रेदमस ने हिंदू और ईसाई धर्म के आपस में लड़ने की बात कही है या किसी अन्य धर्म के हाथों हिंदू धर्म का प्रताड़ित होना बताया है और आखिर में भारत की जीत बताई है?
पहली सेंचुरी की 50वीं पहेली में जिक्र है- ‘वो जमीन जहां तीन समुद्रों के पानी मिलते हैं वहां एक शख्स पैदा होगा, बृहस्पतिवार (गुरुवार) जिसकी पूजा का दिन होगा, जमीन और समुद्र में उसकी ख्याति, शासन और ताकत बढ़ेगी. वो दुनिया को मुश्किल में डालेगा.’
कइयों ने इसे दक्षिण भारत से जोड़कर देखा है. इसके समर्थन में वे यह भी कहते हैं कि सिर्फ हिंदू धर्म में ही गुरुवार पूजा जाता है. तो क्या यह मान लिया जाए कि दुनिया का अगला शासक दक्षिण भारत में पैदा होगा?
नास्त्रेदमस ने की थी अपनी मौत की भविष्यवाणी
ऐसा कहा जाता है कि नास्त्रेदमस को अपनी मृत्यु का पूर्वाभास हो गया था. इसीलिए उन्होंने 17 जून 1566 को अपनी वसीयत तैयार करवाई. एक जुलाई को पादरी को बुलाकर उन्होंने अपने अंतिम संस्कार के निर्देश दिए. इसके बाद 2 जुलाई 1566 को इस मशहूर भविष्यवक्ता का निधन हो गया.
एक व्याख्या के अनुसार, “नास्त्रेदमस ने अपने संबंध मे जो कुछ गिनी-चुनी भविष्यवाणियां की थी, उनमें से एक यह भी थी कि उनकी मौत के 225 साल बाद कुछ समाजविरोधी तत्व उनकी कब्र खोदेंगे और उनके अवशेषों को निकालने की कोशिश करेंगे, लेकिन तुरंत ही उनकी मौत हो जाएगी. वास्तव मे ऐसी ही हुआ. फ्रांसिसी क्रांति के बाद 1791 में तीन लोगों ने नास्त्रेदमस की कब्र को खोदा, जिनकी तुरंत मौत हो गयी.”