इटली का नाविक क्रिस्टोफर कोलंबस आज ही के दिन भारत के समुद्री रास्ते की खोज पर निकला था. इस बात को तो सभी जानते हैं कि कोलंबस ने 1492 में अपनी यात्रा की शुरुआत की थी. लेकिन इसकी जानकारी कम ही लोगों को है कि वो तारीख 3 अगस्त की थी. 3 अगस्त 1492 को क्रिस्टोफर कोलंबस भारत की खोज पर निकला और गलती से उसने अमेरिकी द्वीप खोज लिए.
कोलंबस ने अमेरिकी द्वीपों को ही भारत मान लिया और उसे इंडीज का नाम दे दिया. कोलंबस गलत था. लेकिन पूरी जिंदगी वो इसी गलती के साथ जिया कि उसने भारत को खोज निकाला है. अपनी मौत तक उसे ये जानकारी नहीं हो सकी कि दरअसल वो अमेरिकी द्वीपों को भारत समझ रहा है. कोलंबस के समुद्री सफर की बड़ी ही रोचक दास्तान है.
जब समुद्री रास्ते से भारत खोज पर निकला कोलंबस
क्रिस्टोफर कोलंबस का जन्म 1451 में जिनोआ में हुआ था. उसके पिता जुलाहे थे. बचपन में कोलंबस अपने पिता के काम में मदद किया करता था. बाद में जाकर उसे समुद्री यात्राओं का चस्का लग गया और इसी को उसने अपना रोजगार बना लिया.
कोलंबस के वक्त में यूरोप के व्यापारी भारत समेत एशियाई देशों के साथ व्यापार किया करते थे. जमीन के रास्ते आकर वो यूरोपिय देशों को अपना माल बेचते और यहां से मसाले वगैरह अपने साथ ले जाते. व्यापार का रास्ता ईरान और अफगानिस्तान से होकर निकलता था. 1453 में इस इलाके में मुस्लिम तुर्कानी साम्राज्य स्थापित हो गया, जिसने यूरोपिय व्यापारियों के लिए ये रास्ते बंद कर दिए. एशियाई देशों के साथ यूरोप का व्यापार बंद हो गया. यूरोप के व्यापारी परेशान हो गए.
इसी दौर में कोलंबस के मन में समुद्र के रास्ते भारत जाने का विचार आया. ये किसी को पता नहीं था कि वहां से भारत कितनी दूर है और किस दिशा में सफर करने पर भारत पहुंचा जा सकेगा. कोलंबस को अपने ज्ञान पर भरोसा था. उसे यकीन था कि समुद्र में पश्चिम के रास्ते निकला जाए तो भारत पहुंचा जा सकता है. लेकिन उसकी इस बात पर यकीन करने वाला कोई नहीं था.
2 महीने से भी ज्यादा के सफर के बाद कोलंबस के जहाजों ने धरती छुई
3 जहाजों और 90 नाविकों के साथ की सफर की शुरुआत
कोलंबस को इस सफर के लिए बहुत सारे पैसे और बहुत सारे नाविक चाहिए थे. अपने विचार को लेकर वो पुर्तगाल के राजा के पास गया. लेकिन राजा ने उसके सफर का खर्च उठाने से इनकार कर दिया. इसके बाद स्पेन के शासकों ने उसकी बात गौर से सुनी और यात्रा का खर्च उठाने को तैयार हो गए.
यात्रा के खर्च का इंतजाम हो जाने के बाद भी कोलंबस की मुश्किलें खत्म नहीं हुई. उसे अपने साथ जाने के लिए कोई नाविक नहीं मिल रहा था. किसी नाविक को कोलंबस की बातों पर यकीन नहीं था. उस वक्त लोगों को लगता था कि धरती टेबल की तरह चपटी है और वो समुद्र के लंबे सफर पर निकलेंगे तो एक दिन ऐसा आएगा कि समुद्र खत्म हो जाएगा और वो कहीं नीचे गिर जाएंगे.
बड़ी मुश्किल से कोलंबस ने अपने साथ जाने के लिए 90 नाविकों को तैयार किया. 3 अगस्त 1492 को कोलंबस ने तीन जहाजों- सांता मारिया, पिंटा और नीना के साथ स्पेन से अपने सफर की शुरुआत की. कई हफ्ते गुजर गए लेकिन सफर खत्म नहीं हुआ. दूर-दूर तक फैले समंदर में जमीन का नामो निशान नहीं दिख रहा था. कोलंबस के साथ गए नाविक घबराने लगे.
2 महीने से ज्यादा के सफर के बाद कोलंबस के जहाजों ने छुई धरती
उसके कई साथी वापस लौटने की बात कहने लगे लेकिन कोलंबस अपनी बात पर अड़ा रहा. हालत ऐसी हो गई कि नाविकों ने कोलंबस को धमकी देने शुरू कर दी कि अगर वो वापस लौटने को राजी नहीं हुआ तो वेलोग उसको मार डालेंगे. कोलंबस ने किसी तरह से उन्हें समझाबुझाकर कुछ दिन और सफर करने पर राजी कर सका.
कोलंबस ने अमेरिकी द्वीपों को भारत समझ लिया था, उसे आखिर तक अपनी गलती के बारे में पता नहीं चल सका
9 अक्टूबर 1492 को कोलंबस को आसमान में पक्षी दिखाई देने लगे. उसने जहाजों को उसी दिशा में मोड़ने का आदेश दिया जिधर पक्षी जा रहे थे. 12 अक्टूबर 1492 को कोलंबस के जहाजों ने धरती को छुआ. कोलंबस को लगा कि वो भारत पहुंच चुका है. लेकिन दरअसल वो बहामास का आइलैंड सैन सल्वाडोर था. वहां के निवासी उसे गुआनाहानी कहते थे.
कोलंबस वहां 5 महीने तक रूका. उसने इस दौरान कई कैरिबियाई द्वीपों की खोज की. जिसमें जुआना (क्यूबा) और हिस्पानिओला (सैंट डोमिनगो) शामिल थे. कोलंबस ने वहां से काफी दौलत इकट्ठा की.
इसके बाद अपने 40 साथियों को वहीं छोड़कर वो वापस स्पेन लौट गया.
15 मार्च 1493 को कोलंबस स्पेन वापस पहुंचा. वहां उसका भव्य स्वागत हुआ. स्पेन के राजा ने उसे ढूंढ़े हुए देशों का गवर्नर बना दिया. इसके बाद भी अपनी मौत से पहले तक कोलंबस ने तीन बार अमेरिकी द्वीपों की यात्रा की. अपने आखिरी वक्त तक उसे ये नहीं पता था कि उसने जिन इलाकों की खोज की है वो भारत नहीं बल्कि अमेरिकी द्वीप हैं.