बालोद (Balod) जिले के डौंडीलोहारा में रहने वाले मोहनलाल देशमुख उर्फ कोंदा बोल और सुन नहीं सकता. इस शख्स पर आरोप था कि उसने 30 जनवरी 2017 को गांव की ही युवती से दुष्कर्म (Rape) किया था. घटना गांव से दूर एक खेत(Field) में हुई थी. कहा जा रहा है कि युवती(Girl) ने गांव आकर परिजनों को इस घटना की जानकारी दी. इसके बाद आरोपी युवक (Accused youth) के खिलाफ प्रकरण (Case) दर्ज किया गया. जांच पूरी होने के बाद पुलिस ने कोर्ट (Court) में चालान प्रस्तुत किया. फिर बालोद की स्पेशल कोर्ट (Special Court) ने आरोपी के मूक बधिर होने के कारण जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के माध्यम से उसकी मदद के लिए अधिवक्ता (Advocate) नियुक्त किया था. फिलहाल सुनवाई के बाद कोर्ट ने इस मामले में सजा सुना दी है.
ये है पूरा मामला:
चालान पेश होने के बाद आरोपी के परिजनों (Relatives) ने भी अपनी तरफ से अधिवक्ता नियुक्त किया था. मामले की सुनवाई पूरी होने के बाद कोर्ट ने 22 जून 2018 को दिए गए फैसले में आरोपी को दोषी ठहराया था. लेकिन, सीआरपीसी की धारा के तहत उसके मूक-बधिर होने के कारण इसकी पुष्टि और सजा के लिए मामले को हाईकोर्ट (Highcourt) रेफर किया गया था. मामले पर जस्टिस शरद कुमार गुप्ता की बेंच में सुनवाई हुई.
इस मामले में हाईकोर्ट ने एडवोकेट (Advocate) सरफराज खान को न्याय मित्र नियुक्त किया. वहीं राज्य शासन की तरफ से उप महाधिवक्ता हरप्रीत सिंह अहलुवालिया ने पक्ष रखा. हाईकोर्ट ने पाया कि आरोपी के पढ़ने में असमर्थ होने के बाद भी कोर्ट ने उसे संकेत भाषा या रिश्तेदारों के जरिए समझाने का प्रयास नहीं किया. वहीं, उसे मेडिकल टेस्ट के लिए भी नहीं भेजा गया, जिससे पुष्टि होती कि वो कितने फीसदी मूक बधिर है. हाईकोर्ट ने ये निष्कर्ष दिया कि आरोपी मूक-बधिर होने के कारण कोर्ट की प्रक्रिया नहीं समझ सका. साथ ही हाईकोर्ट ने माना कि आरेापी अपने जुर्म (Crime) की प्रकृति और गंभीरता को बखूबी समझता है. इसके बावजूद उसने ऐसा किया. ट्रायल कोर्ट के आदेश को बरकरार रखते हुए हाईकोर्ट ने आरोपी को 7 साल कैद की सजा सुनाई है.