उच्चतम न्यायालय में अयोध्या में भूमि विवाद के दौरान रामलला विराजमान के वकील सीएस वैद्यनाथन की बहस सातवें दिन जारी रही। वैद्यनाथन ने कहा कि विवादित स्थल पर ये पूर्ण मस्जिद नहीं थी और मंदिर ही था, जिसमें हिंदू पूजा करते थे। उन्होंने कहा कि मुसलमान सड़क पर भी नमाज पढ़ते हैं तो इसका मतलब यह नहीं है सड़क को मस्जिद मान लिया जाए और उसके बाद वे उस पर मालिकाना हक जताएं।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता में पांच जजों की पीठ के समक्ष वैद्यनाथन ने कहा कि नमाज पढ़ने से मालिकाना हक नहीं मिल जाता, मस्जिद में कोई चित्र नहीं होता ये इस्लामिक कायदों के खिलाफ है। जबकि हिंदू खंबों पर खुदे चित्रों की पूजा करते हैं।
पत्थर का जिक्र: जस्टिस भूषण ने पूछा कि 1950 में कमिश्नर की रिपोर्ट में एक पत्थर का जिक्र आया है, जिसमें रामजन्मभूमि लिखा था, पत्थर में ये शब्द कब कुरेदे गए। इस बीच, राम जन्मस्थान उद्धार समिति ने वकील ने कहा कि ये शब्द 1901 में कुरेदे गए। समिति के सौजन्य से यह काम अयोध्या कमिश्नर ने करवाया। उस वक्त देश में ब्रिटेन के सम्राट भारत भ्रमण पर आ रहे थे।
सही व्याख्या नहीं: इस बीच, मुस्लिम पक्ष के वकील ने हस्तक्षेप किया और किया और संविधान पीठ के 1994 के फैसले में ‘नमाज कहीं भी पढ़ी जा सकती है’ को स्पष्ट नहीं किया गया है। ये इस्लाम की सही व्याख्या नहीं है।
शिवालय भी पाए गए थे: वैद्यनाथन ने बताया कि पुरातत्व विभाग द्वारा की गई खुदाई में शिवालय भी पाए गए थे। इसमें पिलर पर खड़ा एक मंडप जैसी संरचना थी। ईंटों की एक ध्वस्त दीवार थी। खुदाई में ईसा पूर्व तीसरी सदी में अशोक के समय, उसके बाद गुप्तकाल और फिर पहली सदी एडी के कुषाण काल और फिर सातवीं सदी एडी में राजपूत काल के अवशेष मिले थे।
पुरातात्विक सबूत दिखाएं : रंजन गोगोई
इस बीच, मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि पुरातात्विक सबूत दिखाएं। रामलला के वकील ने हाईकोर्ट के आदेश पर विवादित स्थल का पुरातात्विक सर्वे किया गया था। यह रिपोर्ट 2003 में आई थी, जिसमें बताया गया था कि विवादित स्थल के नीचे हिंदू मंदिर के अवशेष थे। इस रिपोर्ट के आधार पर ही हाईकोर्ट ने माना था कि मंदिर को तोड़कर ही मस्जिद बनाई गई।
मस्जिद की तरह इस्तेमाल होती थी
पीठ के अन्य जज जस्टिस बोब्डे ने रामलला के वकील से पूछा कि सवाल ये भी है क ये मस्जिद बनी थी या मस्जिद की तरह इस्तेमाल की जाती थी। वैद्यनाथन ने कहा कि सड़क पर भी नमाज पढ़ी जाती है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि सड़क ही मस्जिद बन जाए, इस हिसाब से यह मस्जिद नहीं थी। लोग यहां नमाज पढ़ते रहे जिससे उनका कब्जा रहे, लेकिन इसमें आस्था का पूर्ण अभाव था।