पिछले शुक्रवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने जो एलान किया, उसे बड़ा बताकर मीडिया चुप हो गया है। ख़ासकर हिन्दी पाठकों के दिमाग़ में गोबर भर देने के ज़िद पर अड़ा हिन्दी मीडिया। अख़बार और टीवी दोनों।
क्या किसी ने बताया आपको कि 1400 मामले वापस ले लिए गए, वे मामले क्या थे, किन लोगों के ख़िलाफ़ चल रहे थे, उनकी गंभीरता क्या थी? लेकिन वित्त मंत्री ने टैक्स अधिकारियों के कथित आतंक के कंधे पर बंदूक रखकर सारे मामले वापस कर लिए। जहां आई ए एस और आई पी एस बोल नहीं पा रहे हैं, वहां सिर्फ आयकर अधिकारी ही थे जो स्वतंत्र रूप से नोटिस भेज रहे थे और बिजनेस घरानों को परेशान कर रहे थे। कितनी मासूम दलील है। दिल आ जाता है ऐसी मूर्खता के सावन पर।
उसी तरह से जो फैसला लिया गया वो नौकरी वालों के हित में था या बिजनेस के हित में?
aunindyo chakravarty ने इसे विस्तार से समझाया है कि किस तरह से बिजनेस कंपनियां नौकरी जाने का भय दिखा कर सरकार से बड़ी रियायतें वसूल ले गईं। इससे नौकरी जाने या नई नौकरी मिलने की संभावना पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा।
अलग-अलग नज़रिए से चीज़ों को देखने समझने का सिलसिला जारी रहे। इस लेख को पढ़ें ज़रूर। हिन्दी के अख़बार और चैनल का उपभोग कर रहे हैं तो सवालों के साथ कीजिए। ज़रा दिमाग़ लगाइये कि ये जो बता रहा है उसमें सूचना कितनी है। कितनी तरह की सूचना है। या सिर्फ जयजयकार है। बाकी आपकी नियति फिक्स हो चुकी है। वो नहीं बदलने वाली।