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महाराष्ट्र-हरियाणा विधानसभा चुनाव: कांग्रेस के लिए सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठा पाना आसान नहीं…




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महाराष्ट्र और हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए 21 अक्तूबर को मतदान होगा। दोनों ही राज्यों में देखा जाए तो पिछले विधानसभा चुनाव से समीकरण कुछ खास अलग नहीं है। साल 2014 में देश में लोकसभा चुनाव हुए थे और उसी साल इन दोनों राज्यों के विधानसभा चुनाव। इस बार भी वही स्थिति है। साल 2014 में भाजपा ने 282 सीटें जीती थी, जिसे 2019 में 303 में तब्दील किया और इस बार पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल हुई। भाजपा की अगुआई वाले एनडीए का प्रदर्शन महाराष्ट्र और हरियाणा में भी शानदार रहा। हरियाणा में कांग्रेस का सूपड़ा साफ करते हुए भाजपा ने सभी 10 सीटों पर कब्जा किया, जबकि महाराष्ट्र में एनडीए ने 48 में से 41 सीटों पर जीत दर्ज की। साल 2014 में भी हरियाणा और महाराष्ट्र में क्रमश: सात और 42 सीटों पर जीत मिली थी।

2019 लोकसभा चुनाव के परिणामों को देखते हुए भाजपानीत एनडीए दोनों ही राज्यों में विधानसभा चुनाव के लिए भी उत्साहित है। दोनों ही राज्यों में पिछले विधानसभा चुनावों में भाजपा ने सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाया था और कांग्रेस को हार मिली थी। अब सवाल है कि कांग्रेस और यूपीए के घटक दल इस बार कैसी तैयारी में हैं!

तीन राज्यों में सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने में कामयाब रही थी कांग्रेस दिसंबर 2018 में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव हुए थे और इन राज्यों में कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने में कामयाब रही थी। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में तो डेढ़ दशक से जमी भाजपा सरकार को कांग्रेस ने सत्ता से बेदखल कर दिया था। तीनों राज्यों में सरकार बना लेना कांग्रेस की बड़ी कामयाबी थी। गुजरात में भी इसने अपना प्रदर्शन सुधारा था।

अब हरियाणा और महाराष्ट्र की बात करें तो साल 2014 में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने दोनों राज्यों में मुख्यमंत्री का चेहरा स्पष्ट नहीं किया था। सीएसडीएस और लोकनीति ने 2014 विधानसभा चुनाव के बाद जो सर्वे किया था, उसमें भी मनोहर लाल खट्टर और देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर उतने लोकप्रिय नहीं थे।

इस बार तो दोनों पहले से ही मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। दोनों ही राज्यों में कांग्रेस सत्ता विरोधी लहर का फायदा भी उठाना चाहती है, लेकिन सवाल वही है कि कांग्रेस के लिए यह कितना आसान हो पाएगा?

भाजपा को सत्ता से हटाना बहुत आसान नहीं! 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा, भारतीय राजनीति में बहुत बड़ी ताकत बनकर उभरी है। इस साल लिए गए फैसलों से उसने खुद को एक मजबूत शासन के तौर पर स्थापित भी किया है। ऐसे में उसे नजरअंदाज करना बहुत मुश्किल होगा।

भाजपा ने 2014 में यूपीए सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाया था। वहीं, दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी सत्ता विरोधी लहर देखने को मिली थी और आम आदमी पार्टी ने खुद को विकल्प के तौर पर पेश किया था। वहीं, साल 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव में भाजपा के विरोध में जदयू ने राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन बनाया तो उसे जीत हासिल हुई।

विपक्षी एकता पर्याप्त नहीं 2019 के लोकसभा नतीजों से इतना तो स्पष्ट है कि भाजपा को हराने के लिए केवल चुनाव पूर्व गठबंधन पर्याप्त नहीं है। लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने और सरकार बनाने में कामयाब रही कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन नहीं दोहरा सकी। लोकसभा चुनाव 2019 में वह सफलता हासिल करने में असफल रही।

यह कहना सही नहीं होगा कि इन दोनों राज्यों में भाजपा की राजनीतिक सफलता केवल नरेंद्र मोदी के करिश्मे का एक कार्य है। हरियाणा और महाराष्ट्र में भाजपा ने मौजूदा सामाजिक समीकरणों को फिर से साधा है। इन समीकरणों के जरिए भाजपा ने अपने विरोधियों को चौंकाया है।

सर्वे के नतीजे देते हैं सबूत मुख्य रूप से जाटों और मराठों जैसे प्रमुख सामाजिक समूह को मजबूत करने की दिशा में विपक्ष को आगे बढ़ाने में रणनीति निहित है। दूसरी ओर इसने प्रमुख समुदायों और वर्गों के बीच भी अपनी पैठ बढ़ाई है, जो महसूस करते हैं कि भाजपा के अलावा मजबूत विकल्प मिल पाना उतना आसान नहीं।

इसे सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वे में यह बात स्पष्ट हुई है। भले ही विपक्ष ने प्रमुख सामाजिक समूहों के बीच अपने प्रदर्शन में सुधार किया हो, लेकिन भाजपा के पास उनके समर्थन का एक बड़ा हिस्सा है। महाराष्ट्र में भाजपा के पास शिवसेना जैसी सहयोगी पार्टी है, जिसके पास मराठों का मजबूत समर्थन है।

भाजपा के लिए भविष्य में भी यह बहुत अच्छे संकेत हैं कि समाज के विभिन्न वर्गों में इसकी पैठ और मजबूत होती चली जा रही है। वहीं, कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों के लिए मुश्किलें बढ़ सकती हैं। न केवल महाराष्ट्र और हरियाणा के चुनावों में, बल्कि देश के अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में भी कांग्रेस और विपक्षी दलों के लिए भाजपा को हरा पाना बड़ी चुनौती होगी।