पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने शुक्रवार को यहां कहा कि 2003 में नागरिकता अधिनियम में संशोधन के लिए वाजपेयी सरकार पर कभी सवाल नहीं उठाए गए, लेकिन मौजूदा सरकार की नीयत पर संदेह के चलते आज देशभर में प्रदर्शन हो रहे हैं। सिन्हा ने उस दलील को खारिज किया कि नागरिकता कानून में संशोधन भाजपा के चुनावी वादों में शामिल था। उन्होंने पूछा कि क्या घोषणापत्र संविधान से ”बढ़कर” है।
सिन्हा ने यहां सेंट जेवियर कॉलेज में एक कार्यक्रम से इतर कहा कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) संविधान के खिलाफ है क्योंकि यह धर्म के आधार पर भेदभाव करता है। भाजपा के पूर्व नेता सिन्हा ने कहा, ‘वे (प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह) पहले कही गई अपनी बातों के विपरीत बात कर रहे हैं।’ सिन्हा ने कहा, ‘आपको याद है कि 2003 में कोई प्रदर्शन (हुआ हो)। मुझे तो याद नहीं। कोई हो हल्ला नहीं हुआ था। हमने भारतीय नागरिकों के लिए एक राष्ट्रीय पंजी तैयार करने की बात कही थी, हालांकि इस बारे में कुछ स्पष्ट नहीं किया गया था क्योंकि नियम तैयार नहीं किए गए थे।’
वाजपेयी सरकार में मंत्री रहे सिन्हा ने कहा, ”सीएए ने इतना व्यवधान क्यों पैदा किया? क्योंकि लोगों को सरकार की मंशा पर शक है। वाजपेयी के समय में, वे सरकार की नीयत पर शक नहीं करते थे। मौजूदा हालात में, उन्हें इस कदम के पीछे की मंशा पर संदेह है।”
नागरिकता संशोधन कानून का क्यों हो रहा है विरोध?
असम में लोग इस कानून का विरोध कई वजहों से कर रहे हैं। इस कानून में तीन पड़ोसी देशों-बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से हिंदू सहित छह धर्मों के उन लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान है, जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए थे। बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदू असम में घुसपैठ करते रहे हैं। इनकी संख्या लाखों में है। नागरिकता संशोधन कानून बन जाने के बाद ये लोग भारत के नागरिक बन जाएंगे। असम के लोग नहीं चाहते कि बांग्लादेश से आए हिंदू भारत के नागरिक बने। उनका मानना है कि इससे उनकी (असम के लोगों) स्मिता खतरे में पड़ जाएगी। उन्हें यह भी डर है कि उनके लिए रोजगार के मौके घट जाएंगे। दिल्ली, पश्चिम बंगाल और उत्तर प्रदेश के अलीगढ़, लखनऊ, इलाहाबाद में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध की वजह यह है कि इसे मुस्लिमों के खिलाफ माना जा रहा है। लोगों में डर है कि इस बिल के चलते उनकी नागरिकता खतरे में पड़ जाएगी।