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राज्यपाल के आदेश की अवहेलना! ​क्या राष्ट्रपति शासन की दिशा में बढ़ रहा है मध्यप्रदेश ?




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मध्यप्रदेश में सियासी घटनाक्रम जारी है, नित नए दांव पेंच और विधायकों की लुकाछिपी के बीच राज्यपाल लालजी टंडन के आदेश के बावजूद विधानसभा में सोमवार को फ्लोर टेस्ट नहीं हुआ। मध्यप्रदेश विधानसभा अध्यक्ष एनपी प्रजापति ने अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए सदन की कार्यवाई 26 मार्च तक के लिए स्थगित कर दी। इसके बाद गहमागहमी और बढ़ गई है। जिसके बाद अब अटकलों का सिलसिला शुरू हो गया है।

अब आगे क्या होगा? यह बड़ा सवाल बन ही रहा था कि इतने में दिल्ली से खबर आई कि भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। भाजपा ने मामले की तत्काल सुनवाई की मांग की है। जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कल सुनवाई का समय तय किया है। अब आगे सुप्रीम कोर्ट का रुख स्पष्ट करेगा कि मध्यप्रदेश में फ्लोर टेस्ट कब होगा।

बता दें, विधानसभा अध्यक्ष ने कोरोना वायरस का हवाला देते हुए विधानसभा की कार्रवाई आगे बढ़ाई है। कोरोना वायरस का सवाल आएगा तो सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट भाजपा से यह सवाल कर सकता है कि उन्हें इतनी जल्दी क्या है? सर्वोच्च अदालत यह भी कह सकती है कि भाजपा पहले मध्यप्रदेश हाई कोर्ट का रुख करे। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में मामले में तत्काल सुनवाई भी हो सकती है। यह सर्वोच्च अदालत चाहे तो अगले 24 घंटें में सदन की विशेष सत्र फिर से बुलाने का आदेश जारी कर सकती है।

वहीं दूसरी ओर जिस प्रकार से कांग्रेसी हित को ध्यान रखते हुए विधानसभा अध्यक्ष ने अपनी विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए सदन की कार्रवाई 26 मार्च तक स्थगित कर दी है, उसी प्रकार राज्यपाल भी अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करते हुए राज्यपाल के आदेश की अवहेलना का हवाला देते हुए मध्यप्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा कर सकते हैं। ऐसे में दोनों दलों की सियासत धरी की धरी रह जाएगी।

वहीं आज सदन की कार्रवाई स्थगित होने के बाद शिवराज सिंह चौहान ने सीधा राजभवन का रुख किया। भाजपा अपने 107 विधायकों में से 106 विधायकों की परेड भी राजभवन में करा दी है। हालांकि बहुमत या अल्पमत का फैसला विधानसभा के फ्लोर पर ही होगा, लेकिन सरकार को आदेशित करने के लिए विधायकों की परेड पर्याप्त सबूत है।