भारतीय स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) और अमेरिकी स्पेस एजेंसी NASA एक साथ मिलकर 1.5 अरब डॉलर की कीमत की एक सैटलाइट साल 2022 में लॉन्च करने वाले हैं। NASA को इसके लिए एक खास S-बैंड सिंथेटिक अपर्चर रेडार (SAR) की जरूरत थी जो भारत ने उपलब्ध कराया है। इसके साथ ही SUV के आकार की इस सैटलाइट को पूरा करने की अहम कड़ी को जोड़ लिया गया। इस सैटलाइट में अब तक का सबसे बड़ा रिफ्लेक्टर ऐंटेना लगाया गया है। दिलचस्प बात यह है कि ISRO का जो रॉकेट इस सैटलाइट को लेकर जाएगा 1992 में अमेरिका ने उस पर प्रतिबंध लगाया था।
क्या करेगा काम?
2200 किलो वजन की NASA-ISRO SAR (NISAR) को दुनिया की सबसे महंगी इमेजिंग सैटलाइट माना जा रहा है और यह कैलिफोर्निया में NASA की जेट प्रोपल्शन लैबोरेटरी में तैयार की जा रही है। NISAR धरती की सतह पर ज्वाकामुखियों, बर्फ की चादरों के पिघलने और समुद्र तल में बदलाव और दुनिया भर में पेड़ों-जंगलों की स्थिति में बदलाव को ट्रैक किया जाएगा। NASA ने बयान में कहा है, ‘धरती की सतह पर होने वाले ऐसे बदलावों की मॉनिटरिंग इतने हाई रेजॉलूशन और स्पेस-टाइम में पहले कभी नहीं की गई है।’
0.4 इंच तक सटीक
यह सैटलाइट 40 फुट के तार के जाल वाले रेडार रिफ्लेक्टर ऐंटेना का इस्तेमाल करेगी जो 30 फुट के बूम पर लगा होगा। इससे धरती की सतह से रेडार सिग्नल भेजे जाएंगे और रिसीव किए जाएंगे। NISAR हर 12 दिन में पूरी धरती को स्कैन किया जाएगा और यह एक टेनिस कोर्ट के आधे हिस्से में 0.4 इंच तक मूवमेंट तक को डिटेक्ट कर सकेगा। यह पहला ऐसा सैटलाइट मिशन होगा जो दो अलग-अलग रेडार फ्रीक्वेंसी का इस्तेमाल करेगा और धरती की सतह पर एक सेंटीमीटर दूर तक होने वाले बदलाव को नाम सकेगा।
कभी लगाया था प्रतिबंध
हाई रेजॉलूशन रेडार बादलों और घने जंगल के आर-पार भी देख सकते हैं। इस क्षमता से मिशन दिन हो या रात, बारिश हो या सूरज, कोई भी बदलाव ट्रैक कर सकेगा। अमेरिका और भारत ने 2014 में NISAR समझौता साइन किया था। दिलचस्प बात यह है कि पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश ने 1992 में ISRO पर प्रतिबंध लगाए थे और रूस को दिल्ली के साथ क्रायोजेनिक इंजिन टेक्नॉलजी देने से रोक दिया था। अमेरिका को डर था कि भारत उसका इस्तेमाल लंबी दूरी की मिसाइल बनाने के लिए करेगा। अब उसी Geosynchronous Satellite Launch Vehicle रॉकेट से इस सैटलाइट को लॉन्च किया जाएगा।