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महाविकास अघाड़ी में फूट की शुरुआत है अनिल देशमुख का इस्तीफा ? जानें- कैसे संकट में उद्धव सरकार




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महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख के इस्तीफे की वजह से सत्ताधारी गठबंधन महा विकास अघाड़ी (MVA), खासतौर पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी यानी एनसीपी को सोमवार को बड़ी फजीहत झेलनी पड़ी। बॉम्बे हाई कोर्ट ने देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की सीबीआई जांच कराए जाने का आदेश दिया था। जहां एक ओर एनसीपी देशमुख को कैबिनेट से हटाना नहीं चाहती थी तो वहीं दूसरी तरफ हाई कोर्ट ने अपने आदेश में यह कहा कि देशमुख के गृहमंत्री रहते हुए मुंबई पुलिस अपने मुखिया के खिलाफ आरोपों की जांच कैसे कर पाएगी। एनसीपी देशमुख को कैबिनेट में बनाए रखने के पक्ष में दिखी तो वहीं सीएम उद्धव ने देशमुख के खिलाफ जांच के आदेश दे दिए। सरकार में तीसरी पार्टी कांग्रेस अब तक नाराज है कि पूरे प्रकरण में उससे कोई सलाह-मशविरा तक नहीं किया गया। देशमुख मामले में तालमेल की कमी से सवाल उठ रहे हैं कि क्या महाराष्ट्र की महा विकास अघाड़ी सरकार 5 साल तक अपना कार्यकाल पूरा कर पाएगी या फिर देशमुख का इस्तीफा इस गठबंधन में फूट की शुरुआत है। 

जब राज्य की उद्धव सरकार ने देशमुख पर लगाए गए आरोपों की जांच रिटायर्ड जज से कराने की घोषणा की थी, तभी यह अटकलें लगाई जा रही थीं कि अब देशमुख से इस्तीफा मांगा जाएगा। यह न सिर्फ निष्पक्ष जांच के लिए जरूरी था बल्कि इससे लोगों के बीच यह संदेश भी जाएगा कि राज्य सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर गंभीर है। 

एनसीपी नहीं चाहती थी देशमुख का इस्तीफा

पार्टी नेताओं के मुताबिक, एनसीपी का शीर्ष नेतृत्व देशमुख के खिलाफ तत्काल कोई ऐक्शन नहीं चाहता था। हालांकि, इस बात को लेकर सहमति थी कि बाद में देशमुख को गृह मंत्रालय से किसी और विभाग में भेज दिया जाएगा। लेकिन इस बीच हाईकोर्ट के आदेश ने एनसीपी को मजबूर कर दिया कि वह देशमुख का इस्तीफा ले। ऐसे में इस्तीफा लेने में पार्टी की ओर से हुई देरी ने एनसीपी की ही किरकिरी करा दी।

हालांकि, 25 फरवरी को जबसे मुकेश अंबानी के घर के बाहर विस्फोटक से भरी गाड़ी मिली तबसे ही एमवीए सरकार और एनसीपी अलग-अलग दिख रही है। 

सचिन वाझे के मामले पर भी अलग-अलग राहें
इसकी शुरुआत हुई पुलिस अधिकारी सचिन वाझे को लेकर अलग-अलग रुख से। महाराष्ट्र सरकार ने एंटीलिया केस की जांच कर रहे मुंबई पुलिस क्राइम इंटेलिजेंस यूनिट के पुलिस अधिकारी सचिन वाझे को ट्रांसफर करने में अपना वक्त लिया, जबकि विपक्षी नेता देवेंद्र फडणवीस लगातार उनपर सीधे आरोप लगा रहे थे। देवेंद्र फडणवीस की ओर से महा विकास अघाड़ी सरकार पर हमले के जवाब में भी राज्य सरकार अलग-अलग रुख अपना रही थी। स्थिति यह थी कि वाझे की गिरफ्तारी के बाद उन्हें निलंबित किया गया।  

सरकार के अंदर एक राय की कमी उस वक्त भी दिखी जब मुंबई पुलिस कमिश्नर और देवेंद्र फडणवीस ने अनिल देशमुख के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लगाए। इसके पीछे भी वजह मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी चीफ शरद पवार के बीच एकमत न होना ही था। एमवीए नेताओं की मानें तो ठाकरे चाहते थे कि एनसीपी देशमुख को कैबिनेट से हटाए। हालांकि, दूसरी तरफ एनसीपी नहीं चाहती थी कि वह देशमुख पर लगे आरोपों पर तुरंत कार्रवाई करे।

राजनीतिक विशेषज्ञ हेमंत देसाई कहते हैं, ‘सहयोगी पार्टियों के बीच आपसी तालमेल की कमी साफ दिखी। स्थिति को संभालने का रवैया ढुलमुल था। सरकार को बिना देरी मामले की जांच करवाने का आदेश देना चाहिए था और जब जांच की घोषणा की गई थी तो देशमुख से उसी समय इस्तीफा लेना चाहिए था ताकि उन्हें गृह विभाग से दूर रखा जा सके। यह समझना मुश्किल है कि पवार जैसे मंझे राजनेता ने ऐसा क्यों नहीं किया।’

देसाई आगे कहते हैं, ‘सीबीआई की एंट्री के बाद चीजें एमवीए सरकार के कंट्रोल में नहीं रहीं क्योंकि अब केंद्रीय एजेंसी अपनी तरह से जांच करेगी।’

एमवीए के पास अब विकल्प क्या है?
महाराष्ट्र सरकार पिछले करीब एक महीने से नुकसान को कम करने में जुटी हुई है लेकिन ऐसा हो नहीं पाया और हाईकोर्ट के आदेश के बाद अब स्थिति पहले से ज्यादा जटिल हो गई है। एक वरिष्ठ एनसीपी नेता ने बताया कि फिलहाल सबसे पहली योजना सीबीआई जांच वाले हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने की है। हालांकि, महा विकास अघाड़ी इसपर फैसला करेगी कि सुप्रीम कोर्ट में सरकार फैसले को चुनौती देगी या फिर देशमुख खुद इसके खिलाफ अर्जी देंगे।

गठबंधन में शामिल कांग्रेस भी नाराज
महा विकास अघाड़ी में सहयोगी कांग्रेस भी राजनीतिक घमासान और खुद को तरजीह न मिलने से नाखुश है। एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने पूरे घटनाक्रम पर कहा, ‘यह तीन पार्टियों वाली सरकार है। जो भी होता है, सभी सहयोगियों को उसके परिणाम भुगतने पड़ेंगे। हालांकि, वाझे-देशमुख विवाद को एनसीपी का मामला माना जा रहा है। एनसीपी ने सीएम से विचार-विमर्श किया क्योंकि उन्हें करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हमारी राय जानने की जहमत नहीं उठाई। अगर यह एक राजनीतिक लड़ाई है तो तीनों पार्टियों को साथ मिलकर लड़ना होगा। देशमुख के इस्तीफे से एमवीए की समस्याएं खत्म होना मुश्किल है, बल्कि ये और बढ़ेंगी।’