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फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर नौकरी करने वाले हटाए जाएंगे:सरकार ने विभागों से कहा- दोषी कर्मचारी-अधिकारियों को तत्काल हटाएं




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रायपुर– फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी कर रहे लोगों पर कार्रवाई की जाएगी। सामान्य प्रशासन विभाग ने सभी महकमों से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग के फर्जी जाति प्रमाण पत्र पर नौकरी कर रहे कर्मचारी-अधिकारियों की सेवाएं समाप्त करने के निर्देश दिए हैं। बताया जाता है कि प्रदेश में 250 से अधिक ऐसे मामले हैं। इन लोगों को हटाने से पहले उच्च न्यायालय में कैविएट दायर करने को भी कहा गया है। कैविएट का मतलब यह है कि यदि कोई विभाग के इस फैसले के खिलाफ कोर्ट जाता है, तो उस पर कोर्ट डायरेक्ट फैसला नहीं देगा। उसे पहले उसे कैविएट दाखिल करने वाले की भी बात सुननी होगी। इससे पहले आईपीएस जीपी सिंह के मामले में कैविएट दाखिल की गई थी

पिछले दिनों मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात के दौरान सर्व आदिवासी समाज के प्रतिनिधियों ने यह मुद्दा उठाया था। उद्योग मंत्री कवासी लखमा से शनिवार को ही आदिवासी नेताओं की इस विषय पर चर्चा हुई। उसके बाद मुख्यमंत्री ने इसके लिए सामान्य प्रशासन विभाग को निर्देशित किया था। विभाग ने शाम को कार्रवाई के लिए विस्तृत परिपत्र जारी कर दिया। इसमें कहा गया है, मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए निर्देश के अनुपालन में विभागों से संबंधित ऐसे प्रकरण जिनके जाति प्रमाण, जाति प्रमाण-पत्र छानबीन समिति द्वारा फर्जी अथवा गलत पाए गए हैं, उन्हें तत्काल सेवा से पृथक किया जाए।

आदेश में कहा गया है कि ऐसे सभी मामले जो कोर्ट में हैं। उन पर शीघ्र सुनवाई करने के लिए कोर्ट से अनुरोध किया जाए। साथ ही ऐसे मामले जिनमें कोर्ट ने कोई स्टे नहीं लगाया है। उन पर कार्रवाई की जाए। इसके अलावा सेवा समाप्ति का आदेश जारी करने से पहले कोर्ट में कैविएट दायर किया जाए। सामान्य प्रशासन विभाग ने संबंधित फर्जी या गलत जाति प्रमाण-पत्र धारकों के खिलाफ की गई कार्रवाई की जानकारी 07 दिनों के भीतर अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराने को भी कहा है।

250 से अधिक अधिकारी-कर्मचारियों की नियुक्ति फर्जी
आदिम जाति और अनुसूचित जाति विकास विभाग की उच्च स्तरीय छानबीन समिति ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी कर रहे 250 से अधिक अधिकारियों-कर्मचारियों को चिन्हित किया है। ये मामले पिछले 20 वर्षों में खुले हैं। वर्षवार आंकड़ों को देखें तो वर्ष 2001 में 1, 2002 में 4, 2004 में 2, 2005 में 10, 2006 में 5, 2007 से 21, 2008 से 8, 2009 से 6 और 2010 में 6 मामले सामने आए। 2011 से 2020 तक फर्जी जाति प्रमाणपत्र पर नियुक्ति के 186 प्रकरण हैं।

पिछले साल तो सीएम को दी थी 245 की सूची
संसदीय सचिव शिशुपाल सोरी की अगुवाई में आदिवासी नेताओं ने मुख्यमंत्री को ऐसे 245 लोगों की सूची सौंपी थी। जो आदिवासी के फर्जी जाति प्रमाणपत्र पर नौकरी कर रहे हैं। आदिवासी नेताओं ने उस सूची के साथ सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश की प्रति भी जोड़ी थी, जिसमें कहा गया था कि जिनके जाति प्रमाणपत्र जाली साबित हो गए हैं। वे किसी भी विभाग में किसी भी पद पर बने नहीं रह सकते।

ऐसे कई मामलों में कोर्ट का स्टे
जाति प्रमाण पत्रों की जांच के लिए बनी उच्च स्तरीय छानबीन समिति में पकड़े गए लोग कोर्ट से स्टे लेने में सफल रहे हैं। हाईकोर्ट में ऐसे तीन दर्जन से अधिक मामले लंबित हैं। पिछले वर्ष पांच दिसम्बर को भी ऐसा ही एक आदेश निकालकर फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर शासन के उच्च पदों में नौकरी पाने वाले अधिकारियों-कर्मचारियों की सेवाओं को तत्काल खत्म करने के लिए कहा गया था।