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युवा टीचर की जिद ने बदली सरकारी स्कूल की तस्वीर, बनाया गणित गार्डन




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यूपी के पीलीभीत जिले के पूरनपुर इलाके में एक युवा शिक्षक ने अपने प्राथमिक विद्यालय की तस्वीर बदल कर रख दी है. शिक्षक ने बच्‍चों को बेहतर तरीके से समझाने के लिए गणित गार्डन बनवाया है, जिसमें आयत, त्रिकोण, समकोण जैसी तमाम आकृतियां बनी हुई हैं

पीलीभीत: यूपी के पीलीभीत जिले के पूरनपुर इलाके में एक युवा शिक्षक ने अपने प्राथमिक विद्यालय की तस्वीर बदल कर रख दी है. दरअसल पीलीभीत के पूरनपुर ब्लॉक में पड़ने वाली करेलिया ग्राम पंचायत और आसपास का इलाका काफी पिछड़ा माना जाता है. यहां के अधिकांश परिवार अलग-अलग स्थानों पर ईंट भट्ठे में मजदूरी करते हैं और बहुत ही कम बच्चों को स्कूली शिक्षा नसीब हो पाती हैं

वैसे तत्कालीन शिक्षकों व जनप्रतिनिधियों की अनदेखी के चलते प्राथमिक विद्यालय चोखापुरी का हाल काफी बदतर था, लेकिन सन 2015 में मुनीष पाठक की सहायक अध्यापक पद पर तैनाती की गई. मूल रूप से फिरोजाबाद के रहने वाले मुनीष बताते हैं कि उन्होंने प्राथमिक शिक्षा को बेहतर करने के उद्देश्य से ही इस पेशे को चुना था. ऐसे में वे बदहाल पड़े विद्यालय में कुछ बदलाव करने के प्रयास करने लगे, लेकिन पूरी जिम्मेदारी न होने के चलते उनके काम का दायरा सीमित रहा.

2017 में मुनीष पाठक को प्रभारी प्रधानाध्यापक की जिम्मेदारी सौंपी गई, जिसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़ कर नहीं देखा. नतीजतन 5 सालों में प्राथमिक विद्यालय चोखापुरी की तस्वीर पूरी तरह बदल गई. कभी 42 बच्चों को पढ़ाने वाले इस स्कूल के इस सत्र में 111 बच्चों ने दाखिला लिया है. हाल ही में डीएम पुलकित खरे ने भी इस विद्यालय को पुरस्कृत किया है.

आमतौर पर गार्डन नाम सुनते ही हमारे जेहन में फूल या हरियाली आती है, लेकिन प्राथमिक विद्यालय चोखापुरी का यह गार्डन कुछ हटकर है. इस गार्डन में बच्चों के लिए गणित को आसान बनाने के लिए गणित से जुड़ी चीजें बनाई गई हैं. गार्डन में आयत, त्रिकोण, समकोण जैसी तमाम आकृतियां बनी हुई हैं.

मुनीष पाठक ने बताया कि शुरुआत में तो उन्होंने खुद के संसाधनों और दोस्तों की मदद से काम की शुरुआत की थी, लेकिन धीरे-धीरे जब बदलाव की बात लोगों तक पहुंची तब ग्रामीणों व अन्य लोगों ने विद्यालय की काफी मदद की.

इस विद्यालय के शिक्षकों ने मिलकर एक स्लेबस तैयार किया है. इस स्लेबस का किसी कक्षा या उम्र से कोई लेना देना नहीं है. दरअसल सबसे पहले बच्चों की बौद्धिक क्षमता के आधार पर ग्रुप तैयार किए जाते हैं. बाद में ग्रुपों के लिए विशेष स्लेबस तैयार किया जाता है, जिससे उन बच्चों को पढ़ाया जाता है.