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चीन से सिर्फ 100 किमी दूर ताइवान, फिर भी क्यों हमला नहीं कर रहा ड्रैगन, यह डर है किस बात का, जानें सबकुछ




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अमेरिकी संसद के निचले सदन हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स की स्पीकर नैंसी पेलोसी के ताइवान दौरे ने पूरी दुनिया में हलचल मचा दी है। उनके इस दौरे ने चीन को तो आगबबूला कर दिया है। पेलोसी के दौरे के शुरू होते ही चीन ने ताइवान की खाड़ी में युद्धाभ्यास भी शुरू कर दिया। बताया गया है कि चीनी सेना ने इस छोटे से द्वीप को छह जगह से घेर लिया है। हालांकि, इसके बावजूद चीन ने अब तक ताइवान पर हमला नहीं किया। न ही उसके खिलाफ युद्ध छेड़ने से जुड़ा कोई एलान किया है। 

यह पहली बार नहीं है, जब चीन ने ताइवान को डराने के लिए कुछ हथकंडे आजमाएं हों। ड्रैगन इससे पहले भी कभी ताइवान के हवाई क्षेत्र में फाइटर जेट्स तो कभी उसकी समुद्री सीमा में युद्धपोत भेजकर उसे डराने की कोशिश कर चुका है।  

ऐसे में यह समझना जरूरी है कि आखिर चीन और ताइवान के बीच ताकत का अंतर कितना है? दोनों देशों की बनावट और उनके बीच आर्थिक तौर पर कितना फर्क है? यह भी जानना अहम है कि अगर दोनों देशों के बीच कभी युद्ध छिड़ता है तो कौन-किसके साथ खड़ा होगा और आगे के हालात क्या होंगे। आइये जानते हैं…

पहले जानें- चीन और ताइवान की जनसंख्या में कितना फर्क
चीन और ताइवान को बांटने वाली ताइवान की खाड़ी महज कुछ 100 किलोमीटर ही चौड़ी है। इस खाड़ी के जरिए ही चीन की 139 करोड़ लोगों की आबादी ताइवान की 2.36 करोड़ की आबादी से अलग रहती है। यानी अगर आबादी के अंतर को ही आधार बना लें तो ताइवान के एक व्यक्ति के मुकाबले चीन के पास 65 लोगों की ताकत है। 

दोनों के तंत्र और विचारधारा का अंतर?
चीन और ताइवान के तंत्र और उन्हें चलाने वाली विचारधारा की बात करें तो यह दोनों के बीच टकराव की एक बड़ी वजह है। जहां चीन लगभग पूरी तरह एक तानाशाही देश है, वहीं ताइवान दुनिया के सबसे बेहतरीन लोकतंत्र व्यवस्था वाले देशों में शामिल है। ताइवान की इसी खूबी को लेकर चीन अधिकतर चिंतित रहता है। दरअसल, उसका एक डर यह है कि अगर ताइवान के सफल लोकतांत्रिक मॉडल की मांग चीन में उठने लगी तो यह कम्युनिस्ट पार्टी की सत्ता को सीधा चुनौती होगी। ड्रैगन का दूसरा डर यह है कि अगर कुछ और देशों के लिए अगर ताइवान का लोकतंत्र उदाहरण बनता है तो उसके खुद के तानाशाही और मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर दुनिया मुखर हो सकती है। 

चीन-ताइवान की सैन्य ताकत में कितना फर्क?

1. सैन्य बजट
अब बात कर लेते हैं चीन और ताइवान की सैन्य ताकत की। चीन की वन चाइना पॉलिसी के तहत ताइवान उसका ही हिस्सा है। लेकिन यहां का सिस्टम मेनलैंड चीन से बिल्कुल अलग है। इसलिए ताइवान को कई बार एक स्वायत्त क्षेत्र भी कहा जाता है। दोनों क्षेत्रों की ताकत का अंतर उनके रक्षा बजट से ही समझा जा सकता है। जहां 2022 में चीन ने 230 अरब डॉलर (करीब 18.25 लाख करोड़ रुपये) का रक्षा बजट तय किया था, वहीं ताइवान का रक्षा बजट महज 16.8 अरब डॉलर (करीब 1.33 लाख करोड़ रुपये) रहा। यानी दोनों देशों के रक्षा बजट में ही 15 गुना से ज्यादा अंतर रहा। 

2. सैनिकों का आंकड़ा
अब अगर दोनों क्षेत्रों में युद्ध के लिए रखे गए सैनिकों की तुलना की जाए तो सामने आता है कि जहां चीन के पास 20 लाख से ज्यादा सक्रिय सैनिक हैं तो वहीं ताइवान के पास 1 लाख 70 हजार सक्रिय सैनिक हैं। हालांकि, ताइवान के पास रिजर्व सैनिकों की संख्या चीन से तीन गुना है। जहां ताइवान के पास 15 लाख रिजर्व सैनिक हैं तो वहीं चीन के रिजर्व सैनिकों की संख्या 5 लाख 10 हजार है। 

3. युद्धक हथियार
चीन इस वक्त रक्षा बजट के मामले में अमेरिका के बाद दूसरा सबसे बड़ा देश है। इसके चलते दुनिया में युद्धक हथियारों के मामले में चीन काफी आगे है। 

  • चीन और ताइवान के बीच टैंकों का फर्क करीब पांच गुना का है। चीन के पास मौजूदा समय में 5,250 टैंक हैं, वहीं ताइवान के पास 1,110 टैंक हैं। 
  • तोपों के मामले में भी चीन काफी आगे है। ताइवान की 1667 तोपों के मुकाबले चीन के पास 5854 तोपें हैं। 
  • उधर एयरक्राफ्ट की बात की जाए तो फाइटर जेट्स, कॉम्बैट हेलिकॉप्टर, चॉपर और ट्रांसपोर्ट जेट्स को मिलाकर चीन के पास 3285 विमानों का बेड़ा है, जबकि ताइवान के पास 741 युद्धक विमान हैं। अलग-अलग वर्ग में बांट लें तो चीन के पास 1200 फाइटर एयरक्राफ्ट हैं, वहीं ताइवान के पास 288 फाइटर जेट्स हैं। हेलीकॉप्टरों में भी चीन 912 की संख्या के साथ ताइवान के 208 से लगभग चार गुना है। 
  • समुद्र में भी चीन की ताकत ताइवान से ज्यादा है। चीन के समुद्री बेड़े में 777 अलग-अलग तरह के पोत हैं, वहीं ताइवान के पास 117 पोत हैं। इनमें युद्धपोत, विमानवाहक पोत, सबमरीन से लेकर जासूसी पोत तक शामिल हैं।
  • क्या हो अगर चीन-ताइवान के युद्ध में जुड़ जाए अमेरिका?
  • चीन और ताइवान के बीच युद्ध में अगर अमेरिका दखल देता है तो चीन अपने आप ही काफी मुसीबत में पड़ जाएगा। दरअसल, ग्लोबल पावर इंडेक्स के हिसाब से अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है। अकेले उसके बजट को ही ले लिया जाए तो यह चीन से तीन गुना ज्यादा है। उसके सक्रिय और रिजर्व सैनिकों की संख्या तो जरूर चीन से कम है, लेकिन टैंकों, एयरक्राफ्ट के मामले में अमेरिका काफी आगे है। नौसैनिक बेड़े के मामले में भी अमेरिका चीन से पीछे है, लेकिन उसके पास आधुनिक सबमरीन, एयरक्राफ्ट कैरियर और डेस्ट्रॉयर चीन से काफी ज्यादा हैं। अमेरिका और ताइवान की मिलीजुली ताकत चीन पर काफी भारी पड़ सकती है।