



साइरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) सिर्फ 44 साल की उम्र में टाटा संस के चेयरमैन बनाए गए तो वह शापूरजी पलोनजी ग्रुप की कंपनियों की अगुवाई कर रहे थे. स्वभाव से एकांत पसंद मिस्त्री अपने काम के जरिये ही बोलने में यकीन रखते थे. इस वजह से उनके बारे में बहुत कम जानकारी ही सामने आ पाती थी.
हाइलाइट्स
एकांत पसंद साइरस मिस्त्री कम बोलते थे
मिस्त्री अपने काम से जवाब देते थे
मुंबई . टाटा संस का चेयरमैन नियुक्त होने के पहले तक साइरस मिस्त्री (Cyrus Mistry) अधिक जाना-पहचाना चेहरा नहीं थे. उस समय तक वह सिर्फ अपने पारिवारिक कारोबार तक ही सीमित थे. वर्ष 2012 में जब मिस्त्री सिर्फ 44 साल की उम्र में टाटा संस (Tata Sons) के चेयरमैन बनाए गए तो वह शापूरजी पलोनजी ग्रुप की कंपनियों की अगुवाई कर रहे थे. इतनी कम उम्र में उन्होंने 100 अरब डॉलर से अधिक कारोबार वाले टाटा समूह के मुखिया के तौर पर रतन टाटा जैसे दिग्गज की जगह ली थी.
ऐसी चर्चा थी कि टाटा समूह की प्रतिनिधि कंपनी टाटा संस की बागडोर संभालने को लेकर मिस्त्री अनिच्छुक थे. लेकिन खुद रतन टाटा ने उन्हें इस चुनौती को स्वीकार करने के लिए मना लिया था. टाटा संस के चेयरमैन के तौर पर वह चार साल तक पद पर रहे और अक्टूबर 2016 में उन्हें अचानक ही पद से हटा दिया गया. अंदरूनी मतभेदों के बाद न सिर्फ मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटाया गया बल्कि खुद रतन टाटा ने कुछ समय के लिए इसकी कमान संभाली. बाद में एन चंद्रशेखरन को टाटा संस का चेयरमैन बना दिया गया. ‘बॉम्बे हाउस के फैंटम’ कहे जाने वाले पलोनजी शापूरजी मिस्त्री भी उस समय अपने बेटे साइरस की मदद नहीं कर पाए थे.
अचानक हटाए जाने के कारण बताए जाएं’
साइरस ने टाटा संस के निदेशक मंडल पर गंभीर आरोप लगाए थे. लेकिन इस मामले ने उस समय तीखा मोड़ ले लिया जब साइरस मिस्त्री ने चेयरमैन पद से अपनी बर्खास्तगी को अदालत में चुनौती दी. उनका कहना था कि टाटा संस का निदेशक मंडल कुछ महीने पहले तक उनके काम की तारीफ कर रहा था लिहाजा उन्हें अचानक हटाए जाने के कारण बताए जाएं. टाटा संस में सर्वाधिक 18 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखने वाले मिस्त्री परिवार ने इस विवाद के गहराने के बाद अपनी समूची हिस्सेदारी की बिक्री तक की पेशकश कर दी थी. इससे टाटा संस के मूल्यांकन को लेकर अटकलें लगने लगी थीं.
टाटा समूह की कमान संभालने के दौरान मिस्त्री महत्वपूर्ण फैसलों के क्रियान्वयन के लिए काफी हद तक एक समूह कार्यकारी परिषद (जीईसी) पर निर्भर थे. इस परिषद में टाटा समूह के भीतर से चुने हुए प्रतिनिधियों के अलावा अकादमिक जगत के भी लोग थे. उस समय मिस्त्री को एक ऐसा गंभीर बैकरूम कार्यकारी माना गया जो तीक्ष्ण बुद्धि रखता है. स्वभाव से एकांत पसंद मिस्त्री अपने काम के जरिये ही बोलने में यकीन रखते थे. इस वजह से उनके बारे में बहुत कम जानकारी ही सामने आ पाती थी. उन्होंने बॉम्बे हाउस में पदासीन रहते समय मीडिया को एक भी साक्षात्कार नहीं दिया था लेकिन पद से हटते ही वह खुलकर बोलने लगे.
एक बार फिर से पुराने अंदाज में चुपचाप रहकर काम करने लगे थे
बॉम्बे डाइंग के नुस्ली वाडिया और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) प्रमुख शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले के अलावा मिस्त्री का साथ देने के लिए कॉरपोरेट जगत का कोई भी बड़ा नाम सामने नहीं आया था. समय बीतने के साथ मिस्त्री भी एक बार फिर से पुराने अंदाज में चुपचाप रहकर काम करने लगे थे. जन्म से आयरिश नागरिक मिस्त्री पलोनजी शापूरजी मिस्त्री के सबसे छोटे बेटे थे. उन्होंने मुंबई से शुरूआती पढ़ाई करने के बाद लंदन के इंपीरियल कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग और लंदन बिजनेस स्कूल से एमबीए की डिग्री ली थी.