एम विश्वैश्वरैया (M Visvesvaraya) के जन्मदिन 15 सितंबर को भारत (India) में इंजीनियिर्स डे या राष्ट्रीय अभियंता दिवस (National Engineers Day) के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने देश की कई बांध परियोजना के निर्माण में अमूल्य योगदान दिया था. इसमें कर्नाटक के तत्कालीन मैसूर राज्य के विकास कार्यों में उनकी अतुलनीय भूमिका की वजह से उन्हें कर्नाटक का भागीरथ कहा जाता है. उन्होंने भारत के अलावा श्रीलंका, तनजानिया, अदन, मिस्र आदि कई देशों में अपना योगदान दिया था.
हाइलाइट्स
एम विश्वेश्वरैया सिंचाई तंत्र के विशेषज्ञ एक बेहतरीन सिविल इंजीनियर थे.
उनके नाम एक ब्लॉक सिस्टम सिंचाई तंत्र का पेटेंट भी था.
उनके जन्मदिन को श्रीलंका और तनजानिया में भी इंजीनियर्स डे मनाया जाता है.
एम विश्वेश्वरैया (M Visvesvaraya) ने भारत के कई बांध और सिंचाई परियोजनाओं के निर्माण में कुशल इंजीनियरिंग नियोजनकर्ता (Engineering Planner) के तौर पर योगदान दिया था. उन्होंने अपने इंजीनियरिंग कार्यकाल में कई जटिल परियोजनाओं को बेहतरीन अंजाम तक पहुंचाते हुए शानदार अधोसंरचनात्मक नतीजे दिए. उन्होंने पुणे के पास खड़कवास्ला जलाशय के सिंचाई सिस्टम की स्थापना कर उसका पेटेंट हासिल किया. इसी सिस्टम को उन्होंने मैसूर और ग्वालियर में भी सफलतापूर्वक लागू किया. देश के कई जगहों पर अपना इंजीनियरिंग हुनर दिखाने के बाद उन्होंने भारत से बाहर भी उल्लेखनीय कार्य किए. हर साल उनके अमूल्य योगदान को याद करते हुए 15 को उनके जन्मदिन पर देश राष्ट्रीय अभियंता दिवस (National Engineers Day) मनाता है.
अपनी शिक्षा के लिए ट्यूशन पढ़ाई
मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म मैसूर राज्य के कोलार जिले के चिक्काबल्लापुर तालुक में तेलुगु परिवार में 15 सिंतबर 1860 को हुआ था. पढ़ाई के लिए पर्याप्त पैसा ना होने पर वे ट्यूशन पढ़ाया करते थे. बेंगलुरू के सेंट्रल कॉलेज से अव्वल रहते हुए बीए करने के बाद उन्होंने पूआ के साइंस कॉलेज से सिविल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा की डिग्री हासिल कर अपने करियर की दिशा बदल ली.
एक विशेष तरह का सिंचाई तंत्र
विश्वैश्वरैया ने बंबई में लोक निर्माण विभाग मे असिस्टेंट इंजीनियर की नौकरी की और बाद में उन्हें भारतीय सिंचाई आयोग से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया गया. उन्होंने दक्कन के पठार में एक विशेष सिंचाई व्यवस्था लागू की और बांध में एक खास तरह के स्वचालित वियर वाटर फ्लडगेट सिस्टम विकसित कर उसका पेटेंट भी हासिल किया. इस सिस्टम को पूणे के पास खड़कवास्ला जलाशय पर 1903 में प्रतिस्थापित किया गया.
देश के अन्य हिस्सों में भी वही सिस्टम
बांध के इन खास तरह के दरवाजों से जलाशय का भंडारण स्तर बढ़ गया और उससे बांध को नुकसान होने की संभावना भी नहीं बढ़ी. इसी सिस्टम को विश्वैश्वरैया ने ग्वालियर में टिगरा बांध और मैसूर के मांड्या के कृष्णासागर बांध पर भी इस्तेमाल किया. 34 साल की उम्र में विश्वेश्वरैया ने सिंधुं नदी के सुक्कुक कस्बे के लिए पानी की आपूर्ति के लिए योजना तैयारी की जिसे हर तरफ से तारीफ मिली.
देश के बाहर भी सफलता
उन्होंने 1906 में भारत सरकार ने उन्होंने जल आपूर्ति और निकासी तंत्रों के अध्ययन के लिए अदन भेजा. उनके द्वारा तैयार की गई परियोजना अदन में सफलता पूर्वक लागू की गई. हैदराबाद शहर के लिए उनकी बाढ़ से सुरक्षा के लिए बनाई गई योजना से उन्हें बहुत शोहरत मिली. उन्होंने विशाखापट्नम के बंदरगाह को समुद्री अपरदन से संरक्षण के लिए विकसित किए जा रहे सिस्टम के लिए भी बहुमूल्य योगदान दिया.
मैसूर के लिए विशेष योगदान
साल 1908 में विश्वेश्वरैया ने स्वैच्छिकसेवानिवृत्ति ले ली और औद्योगिक देशों मेंअध्ययन के लिए दौरे किए. इसके बाद कुछ समय के लिए हैदराबाद के निजाम के लिए उन्होंने काम किया और 1909 में वे मैसूर राज्य के मुख्य अभियंता नियुक्त कर दिए गए इसके तीन साल बाद उन्हें मैसूर का दीवान बना दिया गया. इसके बाद से सात सालों में मैसूर के विकास कार्यों में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान दिया.उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में विशेष प्रयास किए.
देश के कई उद्योगों के लिए योगदान
बेंगलुरू के गर्वनमेंट इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना का श्रेय उन्हीं को जाता है. मैसूर राज्य में कई नई रेलवे लाइन उन्हीं के प्रयासों से बिछाई गई थीं. उन्होंने मैसूर सोप फैक्ट्री, पारासिटाइड लैबोरेटरी, मैसूर आयरन एंड स्टील वर्क्स,स्टेट बैंक ऑफ मैसूर, मैसूर चेंबर ऑफ कामर्स आदि की स्थापना करवा कर मैसूर के चहुंमुखी विकास को गति प्रदान की. उनकी नियोजन और प्रबंधन बहुत ही शानदार माना जाता था. रूस के पंचवर्षीय योजना तैयार करने से पहले उन्होंने 1920 में ही अपनी किताब रीकंस्ट्रक्टिंग इंडिया में नियोजन के महत्व पर जोर दिया था.
एम विश्वेश्वरैया ताउम्र स्वस्थ रहते हुए देश की सेवा करते रहे. आजादी के बाद भी वे देश के लिए अपने सलाहों से योगदान देते रहे. आजादी के बाद उड़ीसा की नदियों की बाढ़ की समस्या से निजात पाने के लिए उनकी पेश की हुई रिपोर्ट के आधार पर ही हीराकुंड तथा अन्य कई बांधों का निर्माण हुआ. 92 साल की उम्र में उन्होंने पटना की गंगा नदी पर राजेंद्र सेतु का निर्माण करवाया. 1955 में उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया. उनके शतायु होने पर उनके सम्मान में एक विशेष डाक टिकट जारी किया गया. 14 अप्रैल 1962 को 101 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया.
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