रतनपुर स्थित भैरव बाबा मंदिर परिसर में बसंत पंचमी के अवसर पर बुधवार को आयोजित सामुहिक विवाह में 12 जोड़े दाम्पत्य सूत्र में बंधे वहीं 62 ब्राह्मण बटुकों का उपनयन संस्कार संपन्न हुआ ।
इस दौरान मंदिर परिसर वैदिक मंत्रोपचार से गूंज उठा। यहां 62 ब्राह्मण बटुकों का उपनयन और 12 जोड़ों का सामूहिक विवाह हुआ। इस दौरान बटुकों की शोभायात्रा भी निकाली गई।
भैरव मंदिर के प्रबंधक व मुख्य पुजारी पंडित जागेश्वर अवस्थी ने
बताया कि भैरव बाबा मंदिर परिसर में हर साल की तरह इस बार भी उपनयन संस्कार संपूर्ण विधि-विधान से किया गया। इसमें ब्राह्मण बटुकों को तेल, हल्दी, मुंडन ब्रह्मभोज, दीक्षा, हवन, भिक्षा, काशीयात्रा आदि सभी संस्कार वैदिक मंत्रोचार के साथ कराया गया।
16 संस्कारों में एक है उपनयन संस्कार
पं जागेश्वर अवस्थी ने बताया कि सोलह संस्कारों में उपनयन, वेदारंभ एवं समावर्तन संस्कार का विशेष महत्व है। सामूहिक उपनयन संस्कार में बटुकों को मंदिर प्रबंधन की ओर उपनयन के पूजन मे लिए आवश्यक सामग्री प्रदान किया गया। उपनयन संस्कार को संपन्न कराने में दो प्रमुख आचार्य पं राजेंद्र दुबे,उप आचार्य पं कान्हा तिवारी, व सामूहिक विवाह को प्रमुख आचार्य महेश्वर पाण्डेय, उप आचार्य पं दीपक अवस्थी ,पं राजेंद्र तिवारी के साथ 11अन्य सहयोगी भी शामिल थे।
बटुकों को दी गई दीक्षा फिर निकली भव्य शोभायात्रा –
भैरव मंदिर के महान पंडित जागेश्वर अवस्थी ने बातया ने बताया कि प्रतिवर्ष यह आयोजन निश्शुल्क किया जाता है। वैदिक धर्म में यज्ञोपवीत दशम संस्कार है। इस संस्कार में बटुक को गायत्री मंत्र की दीक्षा दी जाती है और यज्ञोपवीत धारण कराया जाता है। यज्ञोपवीत का अर्थ है यज्ञ के समीप या गुरु के समीप आना। यज्ञोपवीत एक तरह से बालक को यज्ञ करने का अधिकार देता है। शिक्षा ग्रहण करने के पहले यानी, गुरु के आश्रम में भेजने से पहले बच्चे का यज्ञोपवीत किया जाता था। भगवान रामचंद्र व कृष्ण का भी गुरुकुल भेजने से पहले यज्ञोपवीत संस्कार हुआ था। दीक्षा के बाद गाजे-बाजे के साथ बटुकों की शोभायात्रा भर निकाली गई, जिसमें उनके परिजन सहित अन्य लोग शामिल हुए।