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देश में शादी से बाहर सेक्स संबंधों पर क्या है एडल्ट्री कानून, क्यों इसमें हुआ बदलाव




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इंडोनेशिया की संसद ने हाल ही में ये कानून बनाया है कि शादी से बाहर सेक्स संबंध बनाने पर सजा होगी हालांकि इस कानून में अविवाहितों के बीच सेक्स संबंध पर भी सजा का प्रावधान है, वैसे अगर भारत की भी बात की जाए तो यहां भी एडल्ट्री को लेकर कड़ा कानून था, जो अब नहीं है.

हाइलाइट्स

पहले हमारे यहां शादी से बाहर जाकर सेक्स संबंध बनाने को अपराध माना जाता है अब नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 को इस कानून को रद्द कर दिया था लेकिन ऐसे संबंध तलाक का आधार जरूर
भारत में करीब 150 सालों तक चला एडल्टरी कानून लेकिन इसे पतियों के खिलाफ मनमाना बताया गया

इंडोनेशिया की संसद ने मंगलवार को नए आपराधिक कानून को मंजूरी दी. इस नए कानून के तहत शादी से बाहर सेक्स को अपराध के दायरे में लाया गया है. इसका उल्लंघन करने पर एक साल की सजा हो सकती है. इंडोनेशिया के इस कानून की चर्चा पूरी दुनिया में है. ये कानून वैसे केवल इंडोनेशिया में ही नहीं है बल्कि भारत में भी लंबे समय से है, जहां शादी से बाहर जाकर संबंध बनाने पर सजा का प्रावधान है.

हमारे देश में एडल्ट्री कानून वैसे 150 सालों से ज्यादा पुराना है. बस इसमें पहले पति को ही ऐसे संबंधों को लेकर अपराधी माना जाता था लेकिन अब इसमें कानून में बदलाव करके महिलाओं को भी शामिल कर दिया गया है यानि कि अगर वो भी ऐसा करती हैं तो अपराधी मानी जाएंगी और पुरुषों की तरह सजा की भागीदार होंगी. बाद में इस कानून को कुछ साल पहले ही रद्द कर दिया गया

क्या है एडल्ट्री या धारा 497?
धारा 497 केवल उस व्यक्ति के संबंध को अपराध मानती है, जिसके किसी और की पत्नी के साथ संबंध हैं. पत्नी को न तो व्यभिचारी और न ही कानून में अपराध माना जाता है, जबकि आदमी को पांच साल तक जेल का सामना करना पड़ता था.

जबकि महिला के खिलाफ न तो कोई केस दर्ज होता था और न ही उसे किसी प्रकार की कोई सजा मिलती थी. इस कानून के तहत पति, पत्नी से संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता था, लेकिन वह पत्नी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करा पाता था.

क्यों इस कानून को रद्द कर दिया गया
2018 में सर्वोच्च न्यायालय में एडल्ट्री (व्याभिचार) कानून को रद्द कर दिया गया था. हालांकि 2018 से

हाइलाइट्स

पहले हमारे यहां शादी से बाहर जाकर सेक्स संबंध बनाने को अपराध माना जाता है अब नहीं
सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 को इस कानून को रद्द कर दिया था लेकिन ऐसे संबंध तलाक का आधार जरूर
भारत में करीब 150 सालों तक चला एडल्टरी कानून लेकिन इसे पतियों के खिलाफ मनमाना बताया गया

इंडोनेशिया की संसद ने मंगलवार को नए आपराधिक कानून को मंजूरी दी. इस नए कानून के तहत शादी से बाहर सेक्स को अपराध के दायरे में लाया गया है. इसका उल्लंघन करने पर एक साल की सजा हो सकती है. इंडोनेशिया के इस कानून की चर्चा पूरी दुनिया में है. ये कानून वैसे केवल इंडोनेशिया में ही नहीं है बल्कि भारत में भी लंबे समय से है, जहां शादी से बाहर जाकर संबंध बनाने पर सजा का प्रावधान है.

हमारे देश में एडल्ट्री कानून वैसे 150 सालों से ज्यादा पुराना है. बस इसमें पहले पति को ही ऐसे संबंधों को लेकर अपराधी माना जाता था लेकिन अब इसमें कानून में बदलाव करके महिलाओं को भी शामिल कर दिया गया है यानि कि अगर वो भी ऐसा करती हैं तो अपराधी मानी जाएंगी और पुरुषों की तरह सजा की भागीदार होंगी. बाद में इस कानून को कुछ साल पहले ही रद्द कर दिया गया

क्या है एडल्ट्री या धारा 497?
धारा 497 केवल उस व्यक्ति के संबंध को अपराध मानती है, जिसके किसी और की पत्नी के साथ संबंध हैं. पत्नी को न तो व्यभिचारी और न ही कानून में अपराध माना जाता है, जबकि आदमी को पांच साल तक जेल का सामना करना पड़ता था.

जबकि महिला के खिलाफ न तो कोई केस दर्ज होता था और न ही उसे किसी प्रकार की कोई सजा मिलती थी. इस कानून के तहत पति, पत्नी से संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ केस दर्ज करा सकता था, लेकिन वह पत्नी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करा पाता था.

क्यों इस कानून को रद्द कर दिया गया
2018 में सर्वोच्च न्यायालय में एडल्ट्री (व्याभिचार) कानून को रद्द कर दिया गया था. हालांकि 2018 से पहले यह भारतीय दंड संहिता की धारा 497 के तहत दंडनीय अपराध था.  इस जुर्म में पाच साल की सजा और जुर्माने का प्रावधान भी था.

27 सितंबर 2018 को  तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस कानून को असंवैधानिक करार देते हुए कहा था, “एडल्ट्री को अपराध की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है और इसे जुर्म होना भी नहीं चाहिए.” ये फैसला सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने जोसेफ शाइनी की जनहित याचिका पर सुनाया था जिसमें विवाहेत्तर संबंध बनाने को अपराध मानने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक ठहराया गया था.

भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 497 को मनमाना और अप्रासंगिक घोषित करते हुए जस्टिस मिश्रा ने जोड़ा, “अब यह कहने का वक़्त आ गया है कि शादी में पति, पत्नी का मालिक नहीं होता है. स्त्री या पुरुष में से किसी भी एक की दूसरे पर क़ानूनी सम्प्रभुता सिरे से ग़लत है.”

साथ ही संविधान पीठ ने यह भी जोड़ा कि व्यभिचार आज भी तलाक़ का एक मज़बूत आधार है, पर आपराधिक जुर्म नहीं.

1860 में बना यह क़ानून लगभग 150 साल पुराना है. आईपीसी की धारा 497 में इसे परिभाषित करते हुए कहा गया है – अगर कोई मर्द किसी दूसरी शादीशुदा औरत के साथ उसकी सहमति से शारीरिक संबंध बनाता है, तो पति की शिकायत पर इस मामले में पुरुष को अडल्ट्री क़ानून के तहत आरोप लगाकर मुक़दमा चलाया जा सकता था.

ऐसा करने पर पुरुष को पांच साल की क़ैद और जुर्माना या फिर दोनों ही सज़ा का प्रवाधान भी था. हालांकि इस क़ानून में एक पेंच यह भी था कि अगर कोई शादीशुदा मर्द किसी कुंवारी या विधवा औरत से शारीरिक संबंध बनाता है तो वह अडल्ट्री के तहत दोषी नहीं माना जाता था.

जब कानून बना तो क्या थी महिलाओं को लेकर हिचकिचाहट
यह वास्तव में दिलचस्प है कि ‘एडल्टरी’ के अपराध को 1837 में थॉमस बाबिंगटन मैकॉले यानि लॉर्ड मैकॉले की अध्यक्षता में तैयार भारतीय दंड संहिता के पहले ड्राफ्ट में स्थान नहीं मिला था. हालांकि, कानून आयोग ने 1847 में दंड संहिता पर अपनी दूसरी रिपोर्ट में फिर इस पर विचार किया और लिखा: “जबकि हम सोचते हैं कि व्यभिचार का अपराध संहिता से नहीं छोड़ा जाना चाहिए, हम विवाहित महिला के साथ व्यभिचार के लिए अपनी संज्ञान को सीमित कर देंगे, और इस बात पर विचार करते हुए कि इस देश में महिला की हालत, इसके प्रति सम्मान में, हम अकेले पुरुष अपराधी को दंड के लिए जिम्मेदार ठहराएंगे.” लेकिन फिर इसे रूप में रखते हुए और महिलाओं को बराबर को दोषी नहीं मानते हुए एडल्ट्री कानून बना, जिसे बाद में धारा 497 के रूप में  जाना गया.

हालांकि इस कानून के बनने के बाद भी इस पर विवाद बना रहा. आखिरकार जब इसे कोर्ट में चुनौती दी गई तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर विचार किया. फिर इसे रद्द कर दिया गया. अब ये एडल्ट्री कानून इतिहास बन चुका है.

पहले सुप्रीम कोर्ट ने ठुकराई थी ये बात
इससे पहले 1954, 2004 और 2008 में आए फैसलों में सुप्रीम कोर्ट आईपीसी की धारा 497 में बदलाव की मांग को ठुकरा चुका था. फिर इसके बाद केरल के रहने वाले जोसेफ शीने से सुप्रीम कोर्ट में पीआईएल दाखिल की कि कोर्ट को धारा 497 की वैधता पर फिर से विचार करना चाहिए क्योंकि यह लिंग के आधार पर भेदभाव करने वाला है.