पहली बार वैज्ञानिकों को मिले दो अनोखे बाह्यग्रह, पानी से हो सकते हैं भरपूर
बाह्यग्रहों (Exoplanets) की खोज में पहली बार वैज्ञानिकों ने दो ऐसे बाह्यग्रहों की खोज की है जिनमें भरपूर मात्रा में पानी (Water) है. पृथ्वी से 218 प्रकाशवर्ष की दूरी पर स्थित लाल बौने तारे (Red Dwarf) वाले केप्लर-138 नाम के ग्रहीय तंत्र के दो ग्रहों में वैज्ञानिकों ने यह अनोखी संरचना पाई है. इन ग्रहों की खास बात यह है कि ये इनकी संरचना का अधिकांश हिस्सा तरल और वह भी पानी हो सकता है.
हाइलाइट्स
पहली बार इस तरह के बाह्यग्रहों की खोज हुई है.
दोनों बाह्यग्रह पृथ्वी से 218 प्रकाशवर्ष की दूरी पर हैं.
इनके वायुमंडल में भारी मात्रा में पानी की भाप हो सकती है.
पृथ्वी के बाहर जीवन की संभावनाओं की तलाश में वैज्ञानिकों की प्राथमिकताओं में ग्रह पर पानी की खोज (Exploration of Water on Planet) भी एक होती है. किसी भी ग्रहीय तंत्र में पानी की उपस्थिति बहुत सारे ऐसे कारक होने के संकेत भी देती है जो जीवन के अनुकूल होते हैं. नए अध्ययन में खगोलविदों ने हबल और नासा के स्पिट्जर टेलीस्कोप के आंकड़ों की मदद से दो ऐसे बाह्यग्रह (Twin Exoplanet) खोजे हैं जहां पानी के होने के संकेत मिले हैं. इनके वायुमंडल में भारी मात्रा में भाप के रूप में पानी (Water in Atmosphere) के होने की संभावना पाई गई है. यह खोज खगोलविज्ञानियों के लिए बहुत उत्साह वाली खबर है.
कितनी दूर हैं ये बाह्यग्रह
यह पहली बार है कि किसी भी बाह्यग्रहों के तंत्र मे इस तरह के दो ग्रह खोजे गए हैं. दोनों ग्रह पानी से भरे हुए हैं. पृथ्वी से 218 प्रकाशरवर्ष की दूरी पर लायरा तारामंडल में स्थित इन दोनों ग्रहों की सरंचना इस लिहाज से अनोखी है क्योंकि इनका बहुत सारा हिस्सा तरल पदार्थ है. खगोलविदों ने केप्लर-138सी और केप्लर-138डी नाम के ये बाह्यग्रह हबलऔर स्पिट्जर टेलीस्कोप की मदद से खोजे हैं.
केप्लर टेसीस्कोप ने खोजा था यह तंत्र
नेचर एस्ट्रोनॉमी जर्नल में प्रकाशित यह शोध ट्रॉटियर इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च ऑन एक्जोप्लैनेट की पीएडी छात्रा कैरोलीन प्योलेट की अगुआई में शोधकर्ताओं की टीम ने किया है जिसमें विस्तार से इस केप्लर-138 ग्रहीय तंत्र का अध्ययन प्रस्तुत किया गया है. ये ग्रह पृथ्वी के आकार से डेढ़ गुना ज्यादा बड़े हैं और इसके तारे को नासा के केप्लर स्पेस टेलीस्कोप ने खोजा था.
तरल पदार्थ होने की संभावना
इन ग्रहों पर पानी की उपस्थिति की खोज सीधे तौर पर नहीं की गई है, लेकिन जब शोधकर्ताओं ने आकार और भार के ग्रहों के प्रतिमानों से तुलना की तो वे इस नतीजे पर पहुंचे कि निश्चित तौर पर इस ग्रह का बहुत सारा हिस्सा- करीब आधा, ऐसे पदार्थ से बना है जो पत्थर से तो हलका है, लेकिन हाइड्रोजन और हीलियम से भारी है.
पानी हो सकता है
शोधकर्ताओं का कहना है कि उहोंने सोचा कि ग्रहों पृथ्वी से बड़े होंगे और पत्थर और धातु की गेंद की तरह पृथ्वी के बड़े स्वरूप वाले ग्रह होंगे, जिन्हें सुपर अर्थ की श्रेणी में रखा जाता है. लेकिन विस्तृत अध्ययन में पाया गया है कि केप्लर-138 सी और डी दोनों ग्रह बहुत ही अलग प्रकृति के ग्रह हैं, जिनके बहुत सारा हिस्सा पानी का हो सकता है.
घनत्व पृथ्वी से काफी कम
यह पहली बाह है जब कोई ऐसे ग्रह अवलोकित किया है कि जिनमें पानी होने की इतनी विश्वसनीय संभावना है. सैद्धांतिक तौर पर खगोलविद लंबे समय से मान रहे हैं कि इस तरह के ग्रहों का अस्तित्व हो सकता है. शोधकर्ताओं ने बताया कि इन दोनों ग्रहों का आयतन पृथ्वी से तीन गुना और बार दो गुना ज्यादा है, लेकिन घनत्व पृथ्वी से बहुत कम है.
चौंकाने वाली बात
यह एक चौंकाने वाला तथ्य इसलिए है क्योंकि अब तक पृथ्वी से थोड़े बड़े जितने भी बाह्यग्रहों का अध्ययन किया गया है, वे सभी हमारी पृथ्वी की तरह पथरीले ग्रह ही लगते हैं. लेकिन ये ग्रह वैसे ही हैं जैसे गुरु ग्रह का चंद्रमा यूरोपा और शनि का चंद्रमा एनसेलाडस, दोनों के बड़े संस्करण अपने तारे के पास उसका चक्कर लगा रहे हों और बर्फीली सतह की जगह उनके विशाल में वायुमंडल में भारी मात्रा में पानी की भाप भरी हो.
वैज्ञानिक बार बार इस बात का जिक्र करते हैं अभी हमारी टेलीस्कोप की तकनीक इतनी उन्नत नहीं हुई है कि हम सुदूर बाह्यग्रहों का गहराई से अध्ययन कर सकें. फिलहाल हबल स्पेस टेलीस्कोप ही सबसे शक्तिशाली प्रकाशीय टेलीस्कोप है, लेकिन अब जेम्स वेब स्पेस स्पेस टेलीस्कोप के आने से अब बहुत सारी इंफ्रारेड तरंगों का अवलोकन किया जा सकेगा जिससे बाह्यग्रहों की और विस्तृत अध्ययन अब मुमकिन है. इतजार केवल वेब टेलीस्कोप के इन बाह्यग्रहों पर निगाह पड़ने की है.