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भिलाई- किशोरावस्था जीवन का वह दौर होता है जब व्यक्ति शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से कई बदलावों से गुजरता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 10 से 19 वर्ष की यह अवस्था सबसे संवेदनशील होती है, जिसमें सही मार्गदर्शन न मिलने पर तनाव, अवसाद और हीनभावना जैसी मानसिक समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं। उक्त उदगार मानसिक स्वास्थ पर शोध कार्य कर रहे नेहा प्रजापति ने व्यक्त किए है।
मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है गहरा असर
नेहा प्रजापति ने अपने शोध मे पाया की अनेक शोधों से यह स्पष्ट हुआ है कि किशोरों का मानसिक स्वास्थ्य उनके पारिवारिक, सामाजिक और शैक्षिक जीवन पर सीधा प्रभाव डालता है। माता-पिता का व्यवहार, घर का वातावरण, आर्थिक स्थिति, शिक्षा और समाज की भूमिका किशोरों के मानसिक संतुलन को प्रभावित करते हैं। टूटे हुए परिवारों से आने वाले किशोरों को आत्मसम्मान की कमी और अकेलेपन की भावना का सामना करना पड़ता है, जिससे उनका शैक्षिक प्रदर्शन भी प्रभावित होता है।
समाधान और बेहतर मानसिक स्वास्थ्य के लिए सुझाव
माता-पिता, शिक्षक और समाज के अन्य सदस्यों की जिम्मेदारी
बनती है कि वे किशोरों की मानसिक स्थिति को समझें और उनका सही मार्गदर्शन करें।
बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य को मजबूत करने के लिए कुछ महत्वपूर्ण उपाय
@ खुला संवादः किशोरों से खुलकर बात करें और उनकी समस्याओं को समझें।
@ सकारात्मक वातावरणः घर का माहौल तनावमुक्त और सहयोगी बनाएं
@ मानसिक जागरूकताः योग, ध्यान और खेल-कूद जैसी गतिविधियों को बढ़ावा दें।
@ शैक्षणिक सहयोगः पढ़ाई का अनावश्यक दबाव न डालें, बल्कि उन्हें प्रोत्साहित करें।
@ समाज की भागीदारीः
शिक्षकों, पड़ोसियों और समाज के अन्य लोगों को भी किशोरों का सहयोग करना चाहिए।
मानसिक रूप से स्वस्थ किशोर ही बनाएंगे सशक्त समाज
किशोरावस्था केवल एक उम्र नहीं, बल्कि जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ होती है। यदि इस दौरान सही मार्गदर्शन और मानसिक समर्थन मिले, तो किशोर न केवल अपने शैक्षिक और व्यक्तिगत जीवन में आगे बढ़ सकते हैं, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा भी बन सकते हैं। इसलिए, परिवार और समाज को मिलकर किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य की देखभाल करनी होगी, ताकि वे आत्मविश्वास और खुशहाल जीवन की ओर बढ़ सकें।