मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) के लिए व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) रूसी आन को बचाने वाले एक लीडर हुआ करते थे. पुतिन भी गोर्बाचेव को हमेशा बहुत ही सम्मान देते दिखाई दिए. दोनों ने ही सोवियत संघ (USSR) या रूस के अलग अलग ही युग का समय देखा है. लेकिन दोनों ही नेताओं के बीच संबंध हमेशा से एक ही से नहीं थे. गोर्बाचेव पुतिन की यूक्रेन पर की गई सैन्य कार्रवाई से खुश नहीं दिखाई दिए. वे हमेशा ही बातचीत के पक्षधर रहा करते थे.
हाइलाइट्स
मिखाइल गोर्बाचेव शुरू में व्लादिमीर पुतिन को पसंद करते थे.
धीरे धीरे गोर्बाचेव पुतिन के मुखर आलोचक होते गए.
यूक्रेन मामले में भी गोर्बाचेव पुतिन की नीति से सहमत नहीं दिखे थे.
सोवियत संघ के पूर्व राष्ट्रपति और शीत युद्ध को खत्म करवाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले रूसी नेता मिखाइल गोर्बाचेव (Mikhail Gorbachev) का 91 साल की उम्र में निधन हो गया है. वे मॉस्को के सेंट्रल हॉस्पिटल में लंबे समय से गंभीर रूप से बीमार थे. गोर्बायेव 1985 से 1991 के बीच सोवियत संघ के प्रमुख नेता थे और शीत युद्ध के अंतिम जिवित नेता के रूप में भी जाने जाते रहे थे. उन्हें शीत युद्ध (Cold War) को खत्म करने के लिए उनके योगदान के लिए नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था. सोवियत संघ की विरासत रूस को मिली जिसके शीर्ष पर आज रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) लंबे समय से बने हुए हैं. एक समय में गोर्बाचेव पुतिन को बहुत पसंद करते थे लेकिन दोनों के बीच रिश्ते कई बार, खास तौर पिछले कुछ समय में अच्छे नहीं थे.
बचपन में फसल काटा करते थे गोर्बाचेव
मिखाइल गोर्बाचेव का जन्म 2 मार्च 1931 को सोवियत संघ के स्तावरोपोल क्राइ के प्रिवोलनोए गांव में हुआ था. दिलचस्प बात यह है कि उनका ये गांव उस समय मूल रूसी और मूल यूक्रेनियों में बंटा हुआ था. वे बचपन में फसल काटने का काम करते थे. बाद में पिता के कहने पर उन्होंने कानून की पढ़ाई की लेकिन केवल तीन दिन ही वकालत कर सके. इसके बाद वे कम्युनिस्ट पार्टी से जुड़ गए.
एक बहुत ही प्रभावशाली नेता थे
इसमें कोई शक नहीं कि मिखाइल गोर्बाचेव अपने समय में बहुत ही प्रभावशाली नेताओं में से थे. उनके शासनकाल को सोवियतसंघ में सुधार कार्यों से बदलाव के लिए भी जाना जाता है. सोवियत प्रमुख होते हुए उन्होंने पूर्वी यूरोप को सोवियत संघ के प्रभाव से आजाद कराया था. उन्हें पश्चिमी देशों में कई लोग हीरो की तरह माना जाता है तो वहीं रूस में भी उन्हें नापसंद करने वालों की कमी नहीं है.
गोर्बाचेव की नजरों में शुरू में हीरो थे पुतिन
गोर्बाचेव के लिए पुतिन प्रधानमंत्री बनने के बाद एक हीरो की तरह थे. उन्होंने पुतिन की बोरिस येल्सिन के अराजक शासन के बाद रूस को शक्तिशाली बनाने केलिए पुतिन की तारीफ भी की थी. लेकिन वे पुतिन के बारे में इस तरह के ख्यालात लंबे समय तक कायम नहीं रख सके थे.
फिर होने लगा था ऐतराज
उन्होंने साल 2011 में कहा था, “शायद यह समझा जा सकता है कि शुरुआती दौर में उन्होंने (पुतिन) अपने नेतृत्व कुछ तानाशाही तरीकों का इस्तेमाल किया था. लेकिन इस तरह के तरीकों का भविष्य में एक नीति कीतरह उपयोग करना, मुझे लगता है कि गलत है, मुझे लगता है कि ये गलती है.
मुखर होती गई आलोचना
धीरे धीरे गोर्बाचेव पुतिन की आलोचना करने में ज्यादा खुलने लगे. 2016 में टाइम मैग्जीन में प्रकाशित लेख में उन्होंने पुतिन की नीतियों को विकास के लिए बाधक बताया. उन्होंने पुतिन को तीसरी बार राष्ट्रपति बनने के फैसले की भी आलोचना की और उन्होंने पुतिन पर स्थायित्व और सम्पन्नता का भ्रम पैदा करने का आरोप भी लगाया.
यूक्रेन मामले मे भी
गोर्बाचेव पुतिन के यूक्रेन पर सैन्य कार्यवाही का भी समर्थन नहीं कर सके. बल्कि इस फैसलेकी भी उन्होंने आलोचना ही की. वे बातचीत के पक्ष में ज्यादा दिखाई देते रहे. यूक्रेन हमले पर उन्होंने कहा था कि दुनिया में इंसानी जीवन से कीमती कुछ नहीं है. आपसी सम्मान और रुचियों को पहचान कर की जाने वाली वार्ताएं और बातचीत हरी सबसे परस्पर विरोधाभास और समस्याएं सुलझाने का तरीका है.
यूक्रेन मामले मे भी
गोर्बाचेव पुतिन के यूक्रेन पर सैन्य कार्यवाही का भी समर्थन नहीं कर सके. बल्कि इस फैसलेकी भी उन्होंने आलोचना ही की. वे बातचीत के पक्ष में ज्यादा दिखाई देते रहे. यूक्रेन हमले पर उन्होंने कहा था कि दुनिया में इंसानी जीवन से कीमती कुछ नहीं है. आपसी सम्मान और रुचियों को पहचान कर की जाने वाली वार्ताएं और बातचीत हरी सबसे परस्पर विरोधाभास और समस्याएं सुलझाने का तरीका है.